शुभ नहीं हैं कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के संकेत

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, कांग्रेस के लिए अशुभ खबरें ही प्रकाशन में आ रही हैं। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ी। बिहार में नितीश कुमार राजग का हिस्सा बन गए। झारखंड में यात्रा के पहुंचने से पहले ही हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसे में ‘इंडिया’ गठबंधन तो चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही बिखरता और टूटता दिख रहा है। यहां तक तो ़गनीमत थी, किन्तु हालात अब इस हद तक पहुंच गए हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल घटक दल ही कांग्रेस की राजनीतिक क्षमता और शक्ति पर सवालिया निशान लगाने लगे हैं। 
जनवरी के आखिर में राहुल गांधी जब बिहार में न्याय यात्रा लेकर पहुंचने वाले थे, तो इस बात की चर्चा थी कि इसमें नितीश कुमार भी शामिल होंगे। किन्तु बिहार में राहुल की एंट्री से पहले ही नितीश कुमार अपनी पार्टी जद-यू संग पाला बदलते हुए राजग में शामिल हो गए। नितीश भी ममता की तरह ही सीट बंटवारे में हो रही देरी की वजह से नाराज़ थे। राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि नितीश ‘इंडिया’ गठबंधन के संयोजक नहीं बनाए जाने से भी नाराज़ चल रहे थे। नितीश के जाने के बाद बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है, जिससे उबरने में काफी वक्त लगने वाला है।
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते ही ममता बनर्जी ने राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले लड़ने की घोषणा कर दी। वह इस बात से नाराज़ बताई जा रही हैं कि न्याय यात्रा के पूर्व उनके आग्रह के बावजूद राहुल गांधी ने उनसे फोन पर बात तक नहीं की। विपक्षी मोर्चा बनने के बाद उन्होंने कांग्रेस से साफ कह दिया कि वह उसके लिए वही दो सीटें छोड़ेंगी जिन पर 2019 में वह जीती थी। वास्तव में, भारत जोड़ो न्याय यात्रा से उनकी खुन्नस इसलिए भी बढ़ी क्योंकि उसमें वामपंथी शामिल हुए। नितीश कुमार के पाला बदल लेने के बाद ममता ही ‘इंडिया’ गठबंधन की सबसे बड़ी नेता कही जा सकती हैं जिनका पश्चिम बंगाल के अलावा एक दो राज्यों में कुछ प्रभाव है। 
महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस छोड़ने से यह सवाल उठ रहा है कि क्या उनके इस कदम से पार्टी पर प्रभाव पड़ सकता है? इस समय कांग्रेस इंडिया अलायंस में शामिल अन्य दलों के साथ सीट-बंटवारे की योजना पर चर्चा कर रही है। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों से ज्यादा हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में मिलिंद का पार्टी से अलग होना महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) के साथ सीट शेयरिंग में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर सकता है। इसके अलावा पार्टी राजस्थान में सचिन पायलट के विद्रोह जैसी शर्मनाक स्थितियों से बचने की कोशिश कर रही है। मिलिंद देवड़ा राज्य में कांग्रेस की रणनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। उनके जाने से यहां न सिर्फ कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट मजबूत हुआ है। शिंदे गुट को एक अनुभवी राजनेता मिला है। इतना ही नहीं, मिलिंद के रूप में कांग्रेस ने एक ऐसा नेता खोया है, जो अपने चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड के हिसाब से 2024 में एक संभावित सांसद हो सकते थे।
‘इंडिया’ गठबंधन के लिए ताजा मुसीबत झारखंड में पैदा हुई है। कांग्रेस और जेएमएम झारखंड में सहयोगी हैं और जेएमएम ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा भी है। राहुल की यात्रा के झारखंड में आने से पहले ही हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी की वजह से ‘इंडिया’ गठबंधन को काफी नुकसान पहुंचा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन अपने राज्य के अलावा पुडुचेरी तक ही सिमटे हैं। एनसीपी के दिग्गज शरद पवार का करिश्मा भी ढलान पर है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार विपक्षी गठबंधन के तमाम घटक जिस प्रकार ‘अपनी ढपली, अपना राग’ लेकर घूम रहे हैं, वह उसके भविष्य को लेकर आशंकित कर रहा है। ममता के सभी सीटों पर लड़ने के ऐलान के बाद जब राहुल ने सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत चलने जैसी टिप्पणी करते हुए उनकी नाराज़गी दूर करनी चाही तो तृणमूल नेत्री ने कांग्रेस को 40 सीटें भी न मिलने की भविष्यवाणी कर दूध में नींबू निचोड़ दिया। 
महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी कांग्रेस को बड़ा भाई मानने को राजी नहीं हो रहे। आम आदमी पार्टी ने पंजाब के बाद हरियाणा में भी अकेले लड़ने की धौंस दिखा दी। 22 जनवरी को अयोध्या स्थित राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर समूचे देश में जो स्वत:स्फूर्त वातावरण निर्मित हुआ, उसने कांग्रेस को पिछले पैरों पर धकेल दिया। 
हैरान करने वाली बात यह है कि विपक्षी गठबंधन में आ रही दरारों को भरने की फुरसत किसी नेता को नहीं है। नितीश कुमार इसमें सक्षम थे किन्तु वह कांग्रेस के रवैये और ‘इंडिया’ गठबंधन में ज्यादा भाव न मिलने के चलते भाजपा के साथी बन गए हैं। शरद पवार अपना घर ही नहीं संभल पा रहे हैं। ममता के साथ भी किसी की पटरी नहीं बैठती। मल्लिकार्जुन खड़गे का पूरा ध्यान न्याय यात्रा पर है। वह ‘इंडिया’ गठबध्ांन के मसलों को सुलझाने और विपक्षी एकता के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं। देश की संसद को सर्वाधिक 80 सीटें देने वाले राज्य में अभी कांग्रेस और सपा के बीच सीटों का बंटवारा अंतिम निर्णय तक पहुंच नहीं पाया है। ऐसे में राहुल की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का फल क्या होगा, यह तो आने वाला कल ही बताएगा।