सरकारें धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न करें

लगभग छ: मास पूर्व महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार की ओर से तख्त सचखंड श्री हज़ूर साहिब (नांदेड़)का नया प्रशासक नियुक्त किया गया था। उस समय किसी ़गैर-सिख को यह पद सौंपने से सिख समाज में भारी रोष पैदा हुआ था तथा सरकार से यह मांग की गई थी कि वह किसी गुरु सिख को इस पद पर नियुक्त करे क्योंकि तख्त सचखंड श्री हज़ूर साहिब सिखों का पांचवां तख़्त है, जिसके साथ करोड़ों सिखों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। प्रशासक पद की भावना को बनाये रखने के लिए ऐसा किया जाना ज़रूरी था। इसके बाद देश भर से बहुत-सी सिख संस्थाओं के सदस्य महाराष्ट्र सरकार में अहम पदों पर बैठे व्यक्तियों से मिले थे, जिसके बाद सरकार ने सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी डा. विजय सतबीर सिंह को नया प्रशासक नियुक्त कर दिया था, परन्तु विगत दिवस शिंदे सरकार की ओर से श्री हज़ूर साहिब प्रबंधकीय बोर्ड के सदस्यों की नियुक्तियों संबंधी नियमों में किये गये बदलावों ने एक बार फिर सिख जगत में चिन्ता एवं भारी रोष पैदा किया है। इस पांचवें तख्त के प्रबन्ध हेतु नांदेड़ सिख गुरुद्वारा सचखंड श्री हज़ूर साहिब अबिचल नगर एक्ट-1956 बनाया गया था, जिसमें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के सदस्य, च़ीफ ़खालसा दीवान एवं हज़ूरी सचखंड दीवान के प्रतिनिधि प्रबंधकीय बोर्ड में शामिल होते थे। दो सिख सांसद भी बोर्ड के सदस्य बनाये जाते थे, परन्तु महाराष्ट्र सरकार ने अब 17 सदस्यीय इस बोर्ड में अब 12 सदस्य स्वयं नामज़द करने का फैसला किया है। प्रबन्धकीय बोर्ड में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी का प्रतिनिधित्व करने वाले चार सदस्यों को कम करके दो कर दिया गया है। च़ीफ खालसा दीवान एवं हज़ूरी सचखंड दीवान के बोर्ड में एक-एक सदस्य पर आधारित प्रतिनिधित्व भी समाप्त कर दिया गया है। दो सिख सांसदों की नियुक्ति भी खत्म कर दी गई है। सरकार ने ऐसा करते हुये प्रतिनिधि सिख संस्थाओं के साथ पहले कोई विचार-विमर्श नहीं किया। स्वत: ऐसे बड़े बदलाव करके उसने सिख मनों में पहले ही पैदा हुए संशयों को और भी बढ़ा दिया है।
दशकों पहले सिख जगत यह मांग करता आ रहा था कि ऑल इंडिया शिरोमणि गुरुद्वारा एक्ट बनाया जाना चाहिए परन्तु धीरे-धीरे ऐसा करने की बजाय प्रतिनिधि सिख संस्थाओं को सरकारों की ओर से कमज़ोर करने का यत्न ही किया गया। जिस तरह हरियाणा में अलग गुरुद्वारा कमेटी का गठन किया गया, उस घटनाक्रम को घटित हुए भी अभी अधिक समय नहीं हुआ। इसी तरह शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी एवं अन्य सिख संस्थाओं को भी अपने ढंग-तरीकों से कमज़ोर किये जाने का यत्न किया जा रहा है। अब महाराष्ट्र सरकार के इस कदम के प्रति हर तरफ से भारी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। इसे सिखों के धार्मिक मामलों में प्रत्यक्ष रूप से सरकारी हस्तक्षेप कहा गया है, जिसे सिख जगत कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। नि:संदेह ऐसा कदम महाराष्ट्र सरकार की ओर से सिख समाज  के साथ किया गया बड़ा धक्का माना जायेगा।
अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए शिरोमणि कमेटी को यह आदेश दिया है कि वह महाराष्ट्र सरकार से इस संबंध में बातचीत करके उससे लिया गया यह सिख विरोधी फैसला वापिस करवाये। हम महसूस करते हैं कि  समय की सरकारों को सिख समुदाय के धार्मिक मामलों में इस तरह हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और हर परिस्थिति में पैदा हुये ऐसे संशयों को दूर करने के लिए शीघ्र कदम उठाये जाने चाहिएं। ऐसे कदम जो सिख समाज को ढाढस बंधाने में सहायक हों।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द