लोकसभा चुनाव : अभी भी जटिल स्थिति बनी हुई है पंजाब में


इतने आयाम हैं इस बेव़फा सियासत के,
आंख तो आंख इसे सोच भी न समझ सके। 
(लाल फिरोज़पुरी)
कभी-कभी राजनीतिक समुद्र के शांत पानी की भांति होती है और सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है, परन्तु कभी-कभी जब समुद्र के पानी में तूफान उछा हो तो कुछ भी साफ दिखाई नहीं देता, बल्कि क्या है, कैसे है और क्या होगा? कुछ भी समझ नहीं आती। वैसे तो इस समय समूचे भारत की राजनीति का यही हाल है, परन्तु पंजाब की राजनीति के इतने आयाम दिखाई दे रहे हैं और उनमें से भी अधिकतर आपस में इस प्रकार गडमड हैं कि इन्हें समझना सोच से भी दूर प्रतीत हो रहा है। जहां तक अकाली दल-भाजपा समझौते की बात है, एक ओर तो भाजपा के प्रमुख सिख नेता मनजिन्दर सिंह सिरसा अकाली दल के दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के सदस्यों को तोड़ कर अपने पाले में ले गए हैं। अकाली दल के प्रमुख की पत्नी बीबी हरसिमरत कौर बादल भी भाजपा पर तीव्र हमले कर रही है। ये दोनों ऐसे संकेत हैं कि जैसे भाजपा तथा अकाली दल बादल में कोई समझौता होने के आसार नहीं हैं। फिर पंजाब भाजपा पर काबिज़ गुट तथा भाजपा में हावी सिख गुट भी अकाली दल के साथ समझौते के पक्ष में नहीं है। वैसे भी भाजपा नेतृत्व ने एक बार तो ‘इंडिया’ गठबंधन में इतनी दरारें डाल दी हैं कि भाजपा के लिए जैसे जीत का माहौल बन ही गया प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए अकाली दल से समझौता उसकी ज़रूरत नहीं प्रतीत होता, अपितु यह कहा जा रहा है कि भाजपा को 2024 में पंजाब में हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ेगा और उसकी आंखें तो 2027 के विधानसभा चुनावों पर हैं। इसलिए अब वह सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ कर पंजाब के प्रत्येक गांव तथा प्रत्येक वार्ड में बूथ स्तर पर अपना काडर बनाने में सफल हो जाएगी। 
परन्तु ये सभी पहलू या आयाम एकतरफा हैं। तस्वीर का दूसरा पक्ष भी है। दूसरी ओर अकाली दल तथा भाजपा के बीच समझौते के कई संकेत भी मिल रहे हैं। पहला संकेत तो यही है कि चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में अकाली दल ने भाजपा का साथ दिया और चर्चा है कि यह वोट अकाली दल ने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के कहने पर दिया। यदि बातचीत पूरी तरह टूट चुकी होती तो अकाली दल इस चुनाव में किसी भी पक्ष को वोट न देता। फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में तो ऐसी पार्टियों को भी शामिल करने के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है, जिन्होंने कभी लोकसभा की एक सीट भी नहीं जीती जबकि अकाली दल के तो लोकसभा तथा राज्यसभा में कई-कई सदस्य रहे हैं। अब भी दो लोकसभा सदस्य हैं, परन्तु इससे बड़ी चर्चा तो इस बात की है कि आर.एस.एस. तथा पंजाब की हिन्दू लॉबी अकाली दल के कमज़ोर होने को पंजाब के हिन्दू वर्ग के लिए खतरनाक मान रही है, क्योंकि जितना अकाली दल कमज़ोर होगा, उतना ही सिखों में गर्म-दलीय मज़बूत होंगे। ऐसी स्थिति संघ के अनुसार भाजपा के लिए ही नहीं, हिन्दुओं के लिए ही नहीं, अपितु एक सीमांत प्रदेश होने के कारण पंजाब एवं देश के हित में भी नहीं है। इससे सिखों में परायेपन की भावना भी उभर सकती है। हालांकि मोदी सरकार तथा भाजपा ने प्रत्यक्ष रूप में सिखों को साथ जोड़ने के लिए कई प्रभावशाली पग उठाए हैं, परन्तु इनके परिणाम अभी भी आशा के अनुसार नहीं निकले। 
जबकि अकाली दल बादल का सिख मांगों तथा सिख आशाओं की ओर मुड़ना अकाली दल को फिर से मज़बूत कर रहा है। सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाली ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ को माझा में जो समर्थन मिल रहा है, वह शायद स्वयं अकाली दल की आशा से भी अधिक है। वास्तव में आम आदमी पार्टी के बदलाव से नौजवानों का मोह भंग होता दिखाई दे रहा है। इस प्रकार की परिस्थितियों में यदि चार-कोणीय मुकाबला होता है तो अकाली दल के लिए कुछ सीटें जीतना संभव भी हो सकता है, क्योंकि अकाली दल का काडर अभी भी अकाली दल के साथ खड़ा है और अकाली दल के आंतरिक जत्थेदार संता सिंह उमैदपुरी जैसे चुप बैठे नेता भी फिर से सक्रिय हो गए हैं। विचारधारा के तौर पर नाराज़ मनप्रीत सिंह इयाली तथा उनके समर्थक चाहे पूरी ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ में शामिल नहीं भी हों, परन्तु उनके अपने-अपने क्षेत्रों में इस यात्रा में शमूलियत की संभावनाएं भी अकाली दल के लिए अच्छे संकेत हैं। 
जिस प्रकार की जानकारी है कि चाहे निम्न स्तर पर भाजपा अकाली दल के साथ समझौते के विरोध में है, परन्तु  कहा जा रहा है कि आंतरिक तौर पर सुखबीर सिंह बादल की भाजपा उच्चकमान के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता फिर से शुरू हो चुकी है। वैसे सुखबीर सिंह बादल समझौता न होने की स्थिति में अकेले बसपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की तैयारी भी साथ-साथ करते दिखाई दे रहे हैं। हमारी जानकारी के अनुसार इस समय भाजपा चंडीगढ़ सहित 7 सीटें मांग रही है किन्तु अकाली दल 6 सीटें देना चाहता है ताकि वह बसपा को अपने कोटे में से सीटें देकर अपने साथ रख सके, परन्तु इस समझौते के इतने आयाम हैं कि प्रत्येक नई सूचना पहली सूचना को काट रही है, परन्तु इस समय अकाली दल समझौता हो या न हो पांच ऐसी सीटें चुन रहा है जहां जीतने के लिए वह ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाएगा। इनमें खडूर साहिब, फिरोज़पर तथा बठिंडा आदि सीटें शामिल हैं। यह भी चर्चा है कि बीबी हरसिमरत कौर को इस बार खडूर साहिब से खड़ा किया जा सकता है, परन्तु इससे पहले कुछ आंतरिक विवाद भी निपटाये जाने हैं। 
कांग्रेस-‘आप’ समझौता वार्ता अभी भी जारी
हालांकि पंजाब में कांग्रेस तथा ‘आप’ में चुनाव समझौता होने के आसार एक प्रतिशत से भी कम हैं, परन्तु अभी भी कांग्रेस तथा ‘आप’ हाईकमान में बातचीत जारी है। वास्तव में ममता बनर्जी को पुन: ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए मनाने हेतु कांग्रेस को ‘आप’ के साथ पंजाब में भी समझौता करने का दबाव सहना पड़ रहा है। दूसरी ओर चाहे ‘आप’ के मुख्यमंत्री 13 की 13 सीटें जीतने के दावे कर रहे हैं, परन्तु जिस प्रकार लाखों काटे गये कार्ड बहाल करने, रजिस्ट्रियों के लिए एन.ओ.सी. की शर्त समाप्त करने जैसी घोषणाएं की जा रही हैं, यह ‘आप’ की घबराहट को साफ व्यक्त करते हैं। इस संदर्भ में अकाली-भाजपा समझौता होता है या नहीं, यह भी अपना प्रभाव डालेगा, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार दोनों पार्टियों के हाईकमान जो दिल्ली, हरियाणा, गोवा, गुजरात तथा कुछ अन्य राज्यों में सीटों के विभाजन पर सहमत हो चुकी हैं, संबंधी बातचीत अभी भी जारी है।  
जबकि कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू ्रशायद अब कांग्रेस हाईकमान की बात मान चुके हैं और वह पार्टी नेताओं के विरुद्ध बयान देने बंद कर देंगे। ऐसे संकेत हैं कि उन्होंने कांग्रेस हाईकमान द्वारा दी गई सलाह मानने का फैसला कर लिया है। इस बात की भी चर्चा है कि उनकी पत्नी को लोकसभा सीट पर लड़ने के लिए कहा जा रहा है और स्वयं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए चुनाव प्रचार हेतु भी कहा जा रहा है, परन्तु उनके साथ पुन: पंजाब की बागडोर संभालने के संबंध में अभी किसी प्रकार का वायदा नहीं किया जा रहा। यह भी पता चला है कि कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें पार्टी से निकालने बारे कोई फैसला नहीं लिया, परन्तु 11 तारीख को पंजाब में होने वाली कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की रैली में नवजोत सिंह सिद्धू  आते हैं या नहीं, तथा यदि आते हैं तो उन्हें कोई महत्व मिलता है या नहीं, या इसके बाद उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी, यह स्थिति काफी सीमा तक साफ हो जाएगी जबकि जो लोग सिद्धू के एक बयान को लेकर उसके भाजपा की ओर लौटने की बात करते हैं, उनके अनुसार सिद्धू यह चाहते हैं कि कांग्रेस उन्हें पार्टी से निकाले और वह स्वयं पार्टी छोड़ने का इल्ज़ाम न लें। खैर, कुछ भी हो, अभी एक बात पक्की है कि 2024 के चुनावों से पहले सिद्धू चाहे कांग्रेस में रहते हैं, चाहे नहीं, परन्तु वह अपनी नई पार्टी बनाने की स्थिति में दिखाई नहीं देते। हालांकि पंजाब कांग्रेस पर काबिज़ गुट के बारे नेता इस समय सिद्धू को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की बात कर रहे हैं। यदि सिद्धू को कांग्रेस से निकाला जाता है तो उनका भाजपा में जाना कोई अधिक अद्भुत बात नहीं होगी। 
यूसीसी तथा सिख
हम आम तौर पर भाजपा की ‘एक देश, एक कानून’ की सोच के खिलाफ ही रहे हैं और इसकी अधिकतर बातों के अब भी विरोधी हैं क्योंकि यह देश को तानाशाही की ओर तथा स्पष्ट रूप में संघवाद से दूर लेकर जाने वाली हैं। ये भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की संस्कृति तथा भाषाओं के भी विरुद्ध हैं, परन्तु उत्तराखंड में जिस प्रकार एक समान कानून अर्थात यूसीसी लागू किया गया है, यह कम से कम सिखों के लिए एक धर्म या पंथ के रूप में किसी प्रकार का नुकसान करने वाला नहीं प्रतीत होता। हालांकि सिख धार्मिक तथा राजनीतिक संस्थानों ने आश्चर्यनक रूप में इसके लागू होने से पहले इस पर न तो कोई विचार किया और न ही कोई टिप्पणी की जबकि कौम को इससे होने वाले संभावित लाभ-हानि पर विचार करना इनका फज़र् है, परन्तु जो कानून उत्तराखंड में लागू किया गया है, चाहे उसका मुस्लिम अल्पसंख्यक पर्सनल लॉ पर प्रत्यक्ष प्रभाव अवश्य पड़ेगा। यह किसी भी अल्पसंख्यक चाहे मुसलमान हों, सिख हों, ईसाई हों या बोधी-जैनी या अन्य कोई हों, के पूजा करने के अधिकारों या ढंग-तरीकों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता। हां, मुसलमानों में बहु-विवाह प्रथा, नाबालिग लड़कियों के विवाह (बाल विवाह) और सम्पत्ति के विभाजन तथा कुछ अन्य बुराइयां, जो महिलाओं के अधिकारों पर स्पष्ट डाका प्रतीत होती हैं, के खात्मे वाला पग है, परन्तु उनकी पूजा पद्धति में हस्तक्षेप नहीं है। सभ्य समाज में 50 प्रतिशत आबादी से भेदभाव तथा अन्याय समाप्त करना अच्छी बात है, परन्तु भाजपा को यहां कर ही सीमित रहना चाहिए, नहीं तो ‘एक देश, एक कानून’ अल्पसंख्यक को नाराज़ ही करेगा।
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी, 
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह।  
(सुल्तान नाज़मी)
-मो. 92168-60000