यूसीसी को लेकर उत्तराखण्ड की बड़ी एवं सार्थक पहल

उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड)विधेयक को चार दिवसीय विशेष सत्र के दौरान बुधवार को पारित कर दिया है। इस प्रकार आज़ाद भारत के इतिहास में उत्तराखंड विधानसभा समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बन गई है। इससे पहले गोवा में यह लागू है। यह उत्तराखण्ड ही नहीं, समूचे भारत की बड़ी ज़रूरत है। समानता एक सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक लोकतांत्रिक मूल्य है। इस मूल्य की प्रतिष्ठापना के लिये समान कानून की अपेक्षा है। समान नागरिक संहिता देश की राजनीति के सबसे विवादित मुद्दों में रहा है। हालांकि संविधान में भी नीति निर्देशक तत्वों के रूप में इसका उल्लेख है। 
इस लिहाज़ से राजनीति की सभी धाराएं इस बात पर एकमत रही हैं कि देश में सभी धर्मों, आस्थाओं से जुड़े लोगों पर कानून एक समाल लागू होने चाहिएं। राष्ट्र का कोई भी नागरिक, वर्ग, सम्प्रदाय, जाति जब तक कानूनी प्रावधानों के भेदभाव को झेलेगा, तब तक राष्ट्रीय एकता, एक राष्ट्र की चेतना जागरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। उत्तराखण्ड एवं गोवा के बाद असम और गुजरात जैसे राज्य भी समान नागरिक संहिता को लागू करने की तैयारी में हैं। भारतीय जनता पार्टी एवं नरेन्द्र केन्द्र सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग ज़ोरदार तरीके से करती आ रही हैं और इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाया है। भारतीय न्यायपालिका की तरफ  से भी बार-बार इसे लागू करने की ज़रूरत बताई जा रही है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि देश में इसे लेकर जागरूकता हाल के दिनों में बढ़ी है और इसका श्रेय भाजपा को दिया जाना चाहिए।
समान नागरिक संहिता दरअसल ‘एक देश एक कानून’ की अवधारणा पर आधारित है। समान नागरिक संहिता के अंतर्गत देश के सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के लिए एक ही कानून की व्यवस्था का प्रस्ताव है। भारत के विधि आयोग ने राजनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील इस मुद्दे पर देश के तमाम धार्मिक संगठनों से सुझाव आमंत्रित किए थे। समान नागरिक संहिता में सम्पत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह, उत्तराधिकार, तलाक और गोद लेना आदि को लेकर सभी के लिए एकसमान कानून बनाया जाना है। लिहाज़ा एक-एक करके अलग-अलग राज्यों में इसे लागू करने और वहां के अनुभव के आधार पर आगे बढ़ने का ख्याल गलत नहीं कहा जा सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड विधानसभा में इसे पेश किए जाने और वहां बहस होने के बाद इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर रोशनी पड़ेगी और सभी दुविधाएं, शंकाएं एवं संदेह दूर हो जाएंगे जो अन्य राज्यों के लिये इसे लागू करने का आधार बनेगा।
भारतीय संविधान के मुताबिक भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है, जिसमें सभी धर्मों व संप्रदायों को मानने वालों को अपने-अपने धर्म से सम्बन्धित कानून बनाने का अधिकार है। भारत में दो प्रकार के पर्सनल लॉ हैं। पहला है हिंदू मैरिज एक्ट 1956 जो कि हिंदू, सिख, जैन व अन्य संप्रदायों पर लागू होता है। दूसरा, मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिए लागू होने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ। ऐसे में जबकि मुस्लिमों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों व संप्रदायों के लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत बनाया गया हिंदू मैरिज एक्ट 1956 से लागू है, तो मुस्लिम धर्म के लिए भी समान कानून लागू होने की बात की जा रही है, जो प्रासंगिक होने के साथ नये बन रहे भारत की ज़रूरत है। अभी मीडिया में छन-छन कर जो सूचनाएं आ रही हैं, उनके मुताबिक विवाह, तलाक, गोद लेने से जुड़े कानूनों में एकरूपता के जो प्रावधान हैं, वे समान नागरिक संहिता की मूल अवधारणा के अनुरूप ही हैं। बहरहाल, उत्तराखण्ड सरकार की यह एक बड़ी पहल है और इस पर क्रियान्वयन की प्रक्रिया ही नहीं, इसके नतीजों पर भी पूरे देश की नज़र रहेगी।
 विश्व के कई देशों में समान नागरिक संहिता का पालन होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमरीका, आयरलैंड आदि शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं, लेकिन भारत में राजनीतिक लाभ के लिए तुष्टिकरण का ऐसा खेल खेला गया, जो विविधता में एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को तार-तार कर रहा है। निजी कानूनों के कारण कहीं-कहीं विसंगति के हालात भी पैदा हो रहे हैं। देश का मुस्लिम भी समाज का एक हिस्सा है, जिसे इसी रूप में प्रस्तुत करने की परिपाटी चलन में आ जाए तो भेद करने वाले विचारों पर लगाम लगाई जा सकती है, लेकिन हमारे देश के कुछ राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को ऐसे भ्रम में रखने के लिए प्रेरित किया कि वह भी ऐसा ही चिंतन करने लगा, जबकि सच्चाई यह है कि आज के मुसलमान बाहर से नहीं आए, वे भारत के ही हैं। 
लेकिन देश के राजनीतिक दल अपने राजनीतिक लाभ एवं वोट बैंक के कारण सरकार के कुछ फैसलों का विरोध करने लगते हैं। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी इसका असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा। (अदिति)