चिन्ताजनक है वित्तीय मोर्चा

पंजाब के कुछ दिनों से चल रहे बजट सत्र में जो बात सबसे अधिक एवं बार-बार उभर कर सामने आई है, वह है प्रदेश की डावांडोल हो रही आर्थिक स्थिति। पिछले कुछ दशकों से पंजाब के सिर पर ऋण का भार लगातार बढ़ रहा है और बढ़ता ही जा रहा है, जिसके प्रति व्यापक स्तर पर चिन्ता तो पैदा हुई है परन्तु इस संबंध में सरकार की ओर से कोई ठोस यत्न नहीं किया जा रहा। इस कारण सभी की ज़ुबान पर यह बात ज़रूर आ गई है कि, क्या प्रदेश आर्थिक आपात् काल की ओर तो नहीं बढ़ रहा? इस बारे में सभी ने चिन्ता प्रकट करनी शुरू कर दी है।  बजट पर बहस में भाग लेते हुए विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने यह कहा है कि सरकार ने दो वर्ष में ही ऋण लेने के सभी रिकार्ड तोड़ दिये हैं, और यदि यही गति रही तो इस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही यह ऋण पौने पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
बजट के संबंध में बहुत संक्षिप्त समय के लिए हुई बहस में भी ऐसी ही बात उभर कर सामने आई है। इस संबंध में चर्चित नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि पंजाब के इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ कि किसी सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक ऋण लिया हो, परन्तु मौजूदा सरकार ने पिछले वर्षों के रिकार्ड को तोड़ते हुये एक वर्ष में 36,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया है। नवजोत सिंह सिद्धू ने यह भी आरोप लगाया है कि अपने दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान सरकार 67,000 करोड़ रुपये तक का ऋण ले चुकी है। यदि यही हालात रहे तो पांच वर्ष में यह सरकार पंजाब के सिर पर एक लाख, 70 हज़ार करोड़ रुपये का ऋण और चढ़ा देगी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह ऋण विकास कार्यों पर नहीं, अपितु व्यर्थ के एवं ऐश-ओ-आराम के कामों पर खर्च किया जा रहा है। उन्होंने रेत, शराब एवं केबल कारोबार के क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी के नेताओं की ओर से जो पहले दावे किये जाते थे, उनकी ओर भी ध्यान दिलाया है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल पहले यह दावा करते थे कि खनन से 20,000 करोड़ रुपये वार्षिक कमाये जाएंगे, जबकि एक वर्ष में इससे सरकारी खज़ाने में मात्र 247 करोड़ रुपये ही आये हैं।
कुछ मास पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को केन्द्र द्वारा रोके गये फंडों संबंधी पत्र लिखा था तथा उन्हें इस संबंध में केन्द्र सरकार को पत्र लिखने के बारे में भी कहा था। इसके जवाब में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को यह लिखा था कि उन्हें केन्द्र को पत्र लिखने के लिए कहने से पहले सरकार पिछले समय में  लिये गये ऋण एवं उसके खर्च करने का विस्तारपूर्वक विवरण उन्हें भेजे, जिसे लेकर दोनों में मन-मुटाव भी हो गया था परन्तु प्रतीत होता है कि आर्थिक पक्ष से शिकंजे में फंसी सरकार के पास भारी ऋण लिये बिना और कोई विकल्प नहीं रहा। इस वर्ष जनवरी, फरवरी में उसने 3,899 करोड़ का ऋण लिया और मार्च मास में यह 3,800 करोड़ का और ऋण लेने जा रही है। इसी कारण यह विपक्षी नेताओं के निशाने के पर आ चुकी है। सुनील जाखड़ के अनुसार सरकार सिर्फ विज्ञापनों द्वारा लोगों को गुमराह करने का यत्न कर रही है। रजिन्दर कौर भट्ठल ने कहा है कि पंजाब में वित्तीय आपात् काल लगने की सम्भावना बन गई है एवं बिक्रम सिंह मजीठिया ने पंजाब के दीवालिया होने की बात कही है। इसके साथ ही पूर्व की सरकारों एवं मौजूदा सरकार की ओर से घोषित सब्सिडियों का भार उठाना भी सरकार के लिए असहनीय होता जा रहा है। इस सरकार ने अप्रैल, 2022 से जनवरी 2024 तक की अवधि में लगभग 60,000 करोड़ रुपये का ऋण ले लिया है। एक अनुमान के अनुसार इसकी कुल आय में से 22 प्रतिशत से भी अधिक ब्याज के रूप में ही चला जाता है और 25 प्रतिशत से अधिक बिजली सब्सिडी के भुगतान में चला जाएगा और बिजली सब्सिडी की यह राशि वार्षिक 18,000 करोड़ के लगभग पहुंच चुकी है। केन्द्र द्वारा भी अब इसकी ऋण लेने की सीमा को कम करने के लिए पग उठाये जा रहे हैं।
यदि पिछले आंकड़ों के देखा जाए तो वर्ष 2006-07 में ऋण लगभग 52,000 करोड़ रुपये था। आगामी 10 वर्षों में यह एक लाख, 52 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2020-21 में यह 2 लाख, 81 हज़ार करोड़ रुपये से पार हो गया था। यदि हालत यही रही तो वर्ष 2026-27 तक यह बढ़ कर 4 लाख, 50 हज़ार करोड़ रुपये हो जाएगा। मौजूदा सरकार की ऋण कम करने तथा वित्तीय स्रोतों का समुचित इस्तेमाल करने संबंधी कोई योजना सामने नहीं आ रही। यदि सरकार स्वयं कह रही है कि पौने 3 हज़ार करोड़ रुपये प्रति मास ऋण लेना पड़ रहा है, तो इसके कंगाल हो जाने में अधिक समय नहीं लगेगा। चाहे आज हर कोई उत्पन्न हुए ऐसे हालात पर चिन्ता व्यक्त कर रहा है, परन्तु सरकार की नित्य-प्रति की कारगुज़ारी में से ऐसी चिन्ता पैदा होने का प्रभाव नहीं मिलता, न ही उसकी ओर से कोई ऐसी गम्भीर योजनाबंदी सामने आ रही है जो पंजाबियों को किसी प्रकार का हौसला देने के सक्षम हो सके, अपितु इसकी ओर से अपनाई गई विभिन्न योजनाओं तथा विज्ञापनबाज़ी पर व्यापक स्तर पर धन लुटाया जा रहा है। आज चिन्ता वाले इन हालात से बाहर निकलने का कोई भी समाधान दिखाई नहीं दे रहा। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द