विपक्षी गठबंधन पर है भाजपा की नज़र 

भाजपा भले ही 400 पार का हल्ला मचा रही है, लेकिन हकीकत यह है कि वह विपक्षी गठबंधन से बेहद डरी हुई है। उसने उम्मीदवारों की पहली सूची में उन राज्यों के उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिन राज्यों में विपक्षी गठबंधन मज़बूत नहीं है यानी भाजपा जहां मज़बूत स्थिति में है और पिछले चुनाव में लाखों वोट के अंतर से ज्यादातर सीटों पर जीती हैं, उन्हीं सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा हुई है। पहले कहा जा रहा था कि भाजपा कमज़ोर सीटों पर पहले उम्मीदवार घोषित करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। असल में भाजपा कमज़ोर सीटों पर विपक्ष के उम्मीदवार का इंतज़ार कर रही है। वह विपक्षी गठबंधन की पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे पर नज़र रखे हुए है और उस हिसाब से अपने उम्मीदवार तय करेगी। भाजपा ने बिहार में उम्मीदवार घोषित नहीं किए, क्योंकि वहां भाजपा का अपना गठबंधन तय नहीं है और दूसरी ओर राजद, कांग्रेस व लेफ्ट के बीच भी सीटों का बंटवारा घोषित नहीं हुआ है। भाजपा इंतज़ार कर रही है कि विपक्षी पार्टियां उम्मीदवार घोषित करें तो वह अपना फैसला करे। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा ने अपने गठबंधन में जैसे-तैसे सीटों का बंटवारा तो कर लिया है, लेकिन उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। वहां भी भाजपा की नज़र कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के बीच सीटों के बंटवारे पर है। पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश की भी जो सीटें रोकी गई हैं, उनका फैसला विपक्षी गठबंधन तय होने के बाद ही होगा।
भर्ती की आकर्षक योजना 
इस समय तो भाजपा ने दूसरी पार्टी के नेताओं के लिए एक तरह से भर्ती मेला लगाया हुआ है। मेले में एक योजना यह भी है कि ‘जब भी आओ, टिकट पाओ।’ इसका मतलब है कि यह ज़रूरी नहीं कि दूसरी पार्टी छोड़ कर भाजपा में आने वाले नेता पहले कुछ साल पार्टी के लिए काम करे, फिर उन्हें टिकट दिया जाएगा। अब आते ही टिकट मिलने की सुविधा है। दरअसल पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने रात तीन बजे तक जागते हुए 195 उम्मीदवारों नाम तय किए, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद पार्टी में शामिल होने वाले वाले एक नेता का नाम भी उम्मीदवारों की सूची में शामिल था। ज़ाहिर है कि पार्टी में शामिल होने से पहले ही उस नेता टिकट देने का फैसला हो गया था। यह नेता हैं तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति के सांसद बी.बी. पाटिल, जो गत शुक्रवार को भाजपा में शामिल हुए थे। उनसे एक दिन पहले भाजपा में शामिल हुए उन्हीं की पार्टी के सांसद पी. रामुलू का नाम भी भाजपा उम्मीदवारों की सूची में था। इसी तरह झारखंड में कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और राजस्थान के कांग्रेस नेता महेंद्र मालवीय को भी भाजपा में शामिल होने के तत्काल बाद पार्टी का उम्मीदवार बना दिया गया। उम्मीदवारों की अंतिम सूची आते-आते ऐसे नामों की फेहरिस्त लम्बी हो जाएगी, जो पार्टी में शामिल होने से पहले या शामिल होने के 24 घंटे के अंदर ही टिकट पा जाएंगे। 
केंद्रीय सचिव को सच बयानी की सज़ा
जब किसी सरकार का पूरा कामकाज झूठे और फर्जी आंकडों के सहारे चल रहा हो और सरकार का मुखिया हर दिन लोगों के सामने झूठ बोलता हो, तो उस सरकार में किसी नौकरशाह का सच बोलना अपराध ही माना जाएगा। केंद्र सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी को भी सच बोलने की सज़ा मिली है। उन्हें आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से हटा कर ग्रामीण विकास मंत्रालय के भू-संपदा विभाग में भेज दिया गया है। उन्हें दी गई इस सज़ा की वजह यह है कि उन्होंने 29 फरवरी को प्रैस कान्फ्रैंस करके पहले पेयजल स्वच्छता पुरस्कार का ऐलान किया था। उन्होंने प्रैस कान्फ्रैंस में बताया था कि था कि देश के 485 शहरों में पानी का नमूना जांच के लिए दिया गया था, जिसमें से सिर्फ 46 शहरों का नमूना ही सौ फीसदी पास हुआ यानी 439 शहरों का पानी जांच में फेल हो गया। बताया जा रहा है कि पांच मार्च को ही पुरस्कार दिया जाना था, लेकिन सरकार ने उसे टाल दिया और उसके बाद सच बोलने की सज़ा के तौर पर मनोज जोशी का तबादला कर दिया गया। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले सर्वेक्षण और पानी के नमूनों का रिकॉर्ड जनता के सामने आने की संभावना से सरकार पीछे हट रही थी। 
थैलों के 15 करोड़ के टेंडर 
दो साल पहले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय यह देखने को मिला था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फोटो वाले थैले बड़ी संख्या में खरीदे गए थे और उनमें गरीबों को राशन बांटा गया था। अभी लोकसभा चुनाव से पहले फिर एक बार ऐसा ही देखने को मिल रहा है। अलग-अलग राज्यों में राशन बांटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों वाले थैले खरीदे जा रहे हैं। गौरतलब है कि अलग-अलग योजना का लाभार्थी वर्ग भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग है। पांच किलो मुफ्त अनाज की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और अन्य योजनाओं के तहत गरीबों को मिलने वाला राशन मोदी के फोटो वाले थैले में दिया जाएगा। इसके लिए राज्यों में टेंडर जारी करने की होड़ मची है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के पांच राज्यों में टेंडर जारी हो गए हैं, जिनमें से चार राज्य पूर्वोत्तर के हैं। सूचना के अधिकार कानून के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता अजय बोस ने आरटीआई कानून के तहत जानकारी मांगी थी, जिसमें बताया गया है कि पूर्वोत्तर के चार राज्यों—मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम के अलावा राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाले थैले खरीदने के टेंडर जारी किए गए हैं। इन पांच राज्यों में कुल 15 करोड़ रुपये के टेंडर जारी हुए हैं।
दंडित करने का मोदी का अंदाज़
इतना ‘साहस’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही दिखा सकते हैं! वे हर मंच पर खड़े होकर सीना ठोक कर कहते हैं कि वे भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं को छोड़ेंगे नहीं और उसके तुरंत बाद कोई न कोई ऐसा नेता भाजपा मे शामिल हो जाता है, जिस पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे होते हैं। इसीलिए सोशल मीडिया में यह मज़ाक चलता है कि प्रधानमंत्री जब कहते है कि छोड़ेंगे नहीं तो उनका मतलब यह होता है कि बाहर नहीं छोड़ेंगे, उसको भाजपा में शामिल करा लेंगे। ऐसी ही चर्चा मुम्बई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे कृपाशंकर सिंह के भाजपा में शामिल होने और उत्तर प्रदेश की जौनपुर सीट से टिकट पा जाने को लेकर है। कृपाशंकर सिंह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के 10 साल के शासन के समय बहुत चर्चा में आए थे और उसके बाद वह और उनका पूरा परिवार काला धन जमा करने और धन शोधन के आरोप में फंस गया। झारखंड के पूर्व मंत्री कमलेश सिंह उनके समधी हैं और उन पर भी धन शोधन के आरोप लगे थे। दोनों एक साथ आरोपी थे। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद कृपाशंकर सिंह के बेटे नरेंद्र मोहन को ई.डी. ने गिरफ्तार कर लिया था। रांची से मुम्बई तक उनके खिलाफ मुकदमे चले और भाजपा ने इसे लेकर कांग्रेस पर ज़ोरदार हमला भी किया। हालांकि कृपाशंकर सिंह बाद में सबूत की कमी के कारण बरी हो गए। अब भाजपा ने उन्हें जौनपुर से उम्मीदवार बनाया है। 
चुनाव आयोग को भाजपा का सुझाव
वैसे तो अब आमतौर पर चुनाव आयोग वही करता है जैसा उसे सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से करने को कहा जाता है। फिर भी यह दिखाने के लिए कि वह तटस्थ है, कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है। सो, भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मिल कर कुछ सुझाव दिए हैं। उसका एक सुझाव तो ठीक है कि सभी मतदान केंद्रों पर वीडियोग्राफी कराई जानी चाहिए। अभी जो नियम हैं, उसके हिसाब से 50 फीसदी मतदान केंद्रों पर वीडियोग्राफी होती है। अगर भाजपा का बहरहाल भाजपा का दूसरा सुझाव अजीबो-गरीब है। भाजपा ने आशंका जताई है कि मतदान केंद्रों पर बोगस वोटिंग होती है, इसलिए मतदाताओं की दोहरी पहचान की जाए। हालांकि मतदाताओं की पहचान के लिए पहचान पत्र के अलावा हर पार्टी के पोलिंग एजेंट भी बैठे होते हैं। महानगरों और कुछ बड़े शहरों को छोड़ दें तो ज्यादातर पोलिंग एजेंट मतदाताओं को पहचान रहे होते हैं। गौरतलब है कि अभी मतदानकर्मी मतदाता पहचान पत्र की फोटो और मतदाता सूची की फोटो के साथ मतदाता का मिलान करते हैं। उसके बाद उसकी उंगली पर स्याही लगाई जाती है और फिर उसे ईवीएम बूथ में भेजा जाता है। इसलिए सवाल है कि जब मतदाता सामने है तो सीधे उसकी शक्ल का मिलान करने की बजाय फोटो खींचने की क्या तुक है? अगर फोटो खींची गई तो उसमें अतिरिक्त समय लगेगा, जिससे मतदान की प्रक्रिया धीमी हो जाएगी। इस तरह के सुझाव का कोई मकसद भी समझ में नहीं आ रहा है।