‘दक्षिण विजय’ की तैयारी कर रही है भाजपा 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए 370 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे भाजपा अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश तेज़ कर रही है। वह अपने समीकरण बैठाने में बड़ी शिद्दत से लगी हुई है और अपने गठबंधन में नए साथियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। मोदी जानते हैं कि उनका लक्ष्य बहुत मुश्किल है, इसलिए उन्होंने अभी से अपने लक्ष्य को पाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। भाजपा ने उत्तर और पश्चिम भारत में अपनी चरम अवस्था प्राप्त कर ली है। 
उत्तर-पूर्व के राज्यों में पार्टी और सीटों के जुड़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकती। पश्चिम बंगाल से उसकी उम्मीद बढ़ गई है क्योंकि संदेशखाली की घटना के बाद ममता बनर्जी बैकफुट पर हैं। पंजाब में भाजपा अकाली दल के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है क्योंकि अकेले उसे दो से ज्यादा सीटें मिलती दिखाई नहीं दे रही। बेशक भाजपा कितने ही आत्मविश्वास से भरी हो, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि अगर किसी वजह से भाजपा को उत्तर-पश्चिम भारत में कुछ सीटों का नुकसान हो जाए तो वह बहुमत से दूर भी हो सकती है। हालांकि अभी इसकी कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही। जनता के मन में क्या है, निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता। मोदी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए वह 2019 में अपने कार्यकाल के शुरू होने के बाद से ही दक्षिण भारत पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। मोदी अच्छी तरह से जानते हैं कि बिना ‘दक्षिण विजय’ के 400 सीटें जीतना संभव नहीं है। ऐसा करना सिर्फ चार सौ सीट जीतने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी नहीं है, बल्कि उत्तर और पश्चिम भारत में संभावित नुकसान की भरपाई के लिए भी ज़रूरी है ।
भारतीय राजनीति में कभी दक्षिण भारत कांग्रेस का मज़बूत गढ़ था। आपात् काल के बाद हुए चुनावों में भी दक्षिण भारत से कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिली थी। 2019 के चुनावों में भी कांग्रेस को अपनी अधिकांश सीटें दक्षिण भारत से ही मिली थीं। भाजपा सिर्फ कर्नाटक में कांग्रेस को पटकनी देते हुए 28 में से 26 सीटें जीतने में सफल रही थी। इसके अलावा भाजपा को तेलंगाना से चार सीटें मिली थी। तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में भाजपा के हाथ बिल्कुल खाली रह गए थे। दक्षिण के पांच राज्यों में 130 सीटें दांव पर लगी हुई हैं। ॒2019 में इसमें से सिर्फ 30 सीटें ही भाजपा जीत सकी थी। 
भाजपा ने दक्षिण भारत के लिए विशेष रणनीति बनाई है। उसकी की कोशिश है कि इन चुनावों में वह दक्षिण के सभी राज्यों में खुद को स्थापित कर ले। इसलिए मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में लगातार दक्षिण भारत के दौरे कर रहे हैं। अपने कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से वह जनता से संवाद स्थापित करते आ रहे हैं। योजनाबद्ध तरीके से केन्द्रीय मंत्री भी दौरे करते रहते हैं। इन कोशिशों का नतीजा हमें चुनाव परिणामों में देखने को मिल सकता है। इस साल भाजपा ने देश में 50 प्रतिशत वोट हासिल करने के लक्ष्य रखा है और इसमें दक्षिण भारत बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए इन चुनावों में भाजपा दक्षिण में बहुत मेहनत कर रही है। अयोध्या मं राम मंदिर निर्माण का भी कुछ असर दक्षिण राज्यों में देखने में आ रहा है। राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्त्रम से पहले मोदी ने एक योजनाबद्ध तरीके से दक्षिण भारत के राज्यों का दौरा किया था। उन्होंने दक्षिण के कई मंदिरों में पूजा अर्चना की थी। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राम मंदिर का असर दक्षिण भारत में पड़ने वाला नहीं है। भाजपा का आंध्र प्रदेश में जनाधार कम है लेकिन टीडीपी और जनसेना के साथ गठबंधन के बाद उसकी ताकत बढ़ गई है।
तमिलनाडु में मोदी और प्रदेश भाजपा प्रमुख अन्नामलाई का करिश्मा कुछ बड़ा होने की उम्मीद जगा रहा है। उनकी रैलियों और यात्राओं में जुटने वाली भीड़ बता रही है कि जनता उनके साथ जुड़ रही है। अन्नाद्रमुक का एक गुट भाजपा के साथ गठबंधन में आ सकता है। इससे भी भाजपा को मदद मिल सकती है। डीएमके की राजनीति भी बता रही है कि वह अन्नाद्रमुक से ज्यादा भाजपा को महत्व दे रही है। दक्षिण भारत की राजनीति में चेहरे का बहुत महत्व है। भाजपा के पास दो चेहरे हैं और इसका असर आने वाले चुनावों में दिखाई दे सकता है। ऐसा लगता है कि इन चुनावों में भाजपा दक्षिण भारत में कांग्रेस से बड़ी ताकत बन सकती है। भाजपा का दक्षिण विजय अभियान क्या रंग दिखाता है, यह आने वाला वक्त बतायेगा। (युवराज)