दो वर्ष की कारगुज़ारी पर फतवा

भारतीय चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की तिथियों की घोषणा से पूर्व ही अलग-अलग पार्टियों की राजनीतिक गतिविधियां बेहद तेज़ हो गई हैं। देश की बड़ी पार्टियों ने अपने ज्यादातर उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है, इनमें सबसे पहले एवं अधिक नामों की घोषणा करने वाली भारतीय जनता पार्टी है एवं दूसरी पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस है। 2 मार्च को भाजपा ने अपनी 195 नामों की पहली सूची की घोषणा की थी, इसमें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश व त्रिपुरा शामिल थे। अब उसने देश भर में 72 उम्मीदवारों की दूसरी सूची भी जारी कर दी है, इस तरह भाजपा ने अब तक 267 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। भाजपा ने सबसे पहले 370 सीटें जीतने की घोषणा की थी, अपनी योजना के अनुसार वह 543 में से 450 सीटों पर चुनाव लड़ेगी एवं शेष सीटें अपने भागीदारों के लिए छोड़ेगी।
कांग्रेस ने भी अब तक दो चरणों में उम्मीदवारों की घोषणा की है। पहली घोषणा में 39 उम्मीदवारों एवं दूसरी घोषणा में देश से 43 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई है। सभी पार्टियां उम्मीदवारों का चयन करते समय स्थानीय स्तर पर स्थिति को ध्यान में रख  रही हैं, जिनमें जाति-बिरादरियों एवं अलग-अलग समुदायों को ध्यान में रखा गया है। भाजपा ने अब तक अपने पहले के सांसदों में से ज्यादातर की टिकटें काट दी हैं, जिससे उसमें पैदा हुये विश्वास का भी पता चलता है। कांग्रेस के लिए एक निराशा वाली बात यह है कि वह अपने अधिक से अधिक यत्नों के बावजूद भी अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के साथ आपसी सूझ-बूझ एवं मेल-मिलाप स्थापित करने में बड़ी सीमा तक असफल रही है। पश्चिम बंगाल तथा केरल में तो उसे इस पक्ष से बड़ी निराशा का मुंह देखना पड़ा है, क्योंकि ‘इंडिया’ गठबंधन की भागीदार होने का दम भरती ममता बैनर्जी ने अकेले ही पश्चिम बंगाल की सभी सीटों के लिए अपने सभी 42 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिस तरह ममता कांग्रेस को 42 में से 2 सीटें देने के लिए ही तैयार थी, उसे स्वीकार करना इस राष्ट्रीय पार्टी के लिए बेहद कठिन था। इसी तरह केरल में मार्क्सवादी पार्टी तथा उसके अन्य वामपंथी भागीदारों ने बड़ी सीमा तक अपने दम पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी एवं कांग्रेस में कोई सन्तोषजनक समझौता पूर्ण नहीं हो सका। चाहे इन दोनों पार्टियों ने लगातार यह घोषणा की हुई है कि वह गठबंधन की भावना को कायम रखते हुए ही समझौते की दिशा की ओर बढ़ेंगी।
विगत दिवस हरियाणा की राजनीति में भी यदि बड़ा भूकम्प आया था तो उसका कारण भी लोकसभा चुनाव ही हैं। वहां भाजपा ने प्रदेश की सत्ता में उसके साथ भागीदार रही जे.जे.पी. को लोकसभा चुनावों में साथ लेने से इन्कार कर दिया था। पंजाब में चाहे बड़ी पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की परन्तु आम आदमी पार्टी ने यहां सबसे पहले अपने 8 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। आश्चर्य इस बात का भी है कि इनमें से 5 उम्मीदवार तो भगवंत मान के मंत्रिमंडल में मंत्री ही हैं। इन मंत्रियों में कइयों का यह प्रभाव भी बना रहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें किसी न किसी तरह मंत्रिमंडल में किनारे ही लगा रखा था। इस तरह पहले ही इनकी कोई ज्यादा पूछताछ नहीं थी। इस घोषणा के पीछे पार्टी की कौन-सी सोच काम कर रही है यह तो वही जान सकती है, परन्तु अन्य पार्टियों के नेताओं ने कई पक्ष से इस घोषणा की कड़ी आलोचना अवश्य की है। विपक्षी पार्टियों के कई वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि क्या पहले ही दृष्टिविगत किये गये मंत्रियों को कहीं बलि का बकरा तो नहीं बनाया जा रहा या यह कि क्या इस पार्टी को 13 हलकों के लिए कोई अन्य उचित एवं योग्य उम्मीदवार ढूंढने में मुश्किल आ रही है, परन्तु यह बात सुनिश्चित है कि इस मामले पर प्रदेश में 92 विधायकों वाली यह पार्टी बचाव की स्थिति आ गई है, क्योंकि इसकी ओर से एक ऐसे उम्मीदवार की घोषणा की गई है, जिसने कुछ दिन पहले ही कांग्रेस को छोड़ कर इस पार्टी में शामिल होने की घोषणा की थी।
प्रदेश से इसका एकमात्र सांसद है, उसे भी कुछ समय पहले हुये लोकसभा के उप-चुनाव से पहले तुरंत ही कांग्रेस से त्याग-पत्र दिलवा कर चुनाव लड़ाया गया था, उस समय भी इस पार्टी के पास कोई योग्य उम्मीदवार नहीं था। जिस उम्मीदवार से यह चुनाव लड़वाया गया, वह पहले से लेकर अब तक विवादों में ही घिरा दिखाई देता रहा है। उम्मीदवारों का ऐसा चयन करके यह पार्टी कितनी सीमा तक सफल हो सकेगी, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं है। आगामी दिनों में प्रदेश की बदलती राजनीतिक स्थिति के अनुसार क्या-क्या राजनीतिक हालात बनते हैं तथा किस तरह के गठबंधन सामने आते हैं, इसका पता शीघ्र ही लग जाएगा। नि:संदेह लोकसभा के ये चुनाव पंजाब में आम आदमी पार्टी की 2 वर्ष की कारगुज़ारी पर लोगों का फतवा भी साबित हो सकते हैं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द