राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रदर्शन

हरियाणा मंत्रिमंडल का विस्तार

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपने लगभग एक सप्ताह पुराने मंत्रिमंडल में पहला विस्तार कर नि:संदेह जातीय एवं क्षेत्रीय संतुलन को बनाये रखने के लिए तराजू की डंडी को अधिकाधिक संतुलित रखने की भरपूर कोशिश की है। इससे पूर्व इसी मास 12 मार्च को, प्रदेश में एकाएक हुए शक्ति एवं सत्ता-परिवर्तन के दृष्टिगत मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी के साथ पांच वरिष्ठ विधायकों कंवरपाल गुर्जर, मूल चन्द शर्मा, जय प्रकाश दलाल, चौधरी रणजीत सिंह और डा. बनवारी लाल ने शपथ ग्रहण की थी। ये पांचों विधायक प्रदेश की पूर्व मनोहर लाल खट्टर की सरकार के समय में भी मंत्री पद पर रहे थे। अब नौ दिन बाद ही मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार में पहला विस्तार किया तो राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने आठ नये मंत्रियों को शपथ दिलाई जिनमें हिसार से विधायक डा. कमल गुप्ता मंत्री बनाये गये हैं। डा. गुप्ता पूर्व की खट्टर सरकार में भी मंत्री थे। पहले विस्तार में शपथ ग्रहण करने वाले शेष सातों विधायकों में से राज्य मंत्री बनीं सीमा त्रिखा पूर्व की सरकार में मुख्य संसदीय सचिव थीं। सर्वश्री सुभाष सुधा, संजय सिंह, महिपाल ढांडा, अभय सिंह यादव, बिशम्बर वाल्मीकि और असीम गोयल सभी नये और पहली बार शपथ ग्रहण करने वाले बने हैं। इस प्रकार सैनी मंत्रिमंडल के कुल सदस्यों की संख्या मुख्यमंत्री समेत 14 हो गई है। इसका अभिप्राय यह भी हुआ, कि अब खट्टर सरकार के समय दूसरे सबसे शक्तिशाली कहलाते गृह मंत्री अनिल विज मंत्रिमंडलीय गाड़ी में सवार होने से पूरी तरह चूक गये हैं। विज बड़ी देर से अपनी सरकार और मुख्यमंत्री से नाराज़ रहे हैं, यह प्रदेश की राजनीति में सभी को पता है। जन-नायक जनता पार्टी की ओर से गठबन्धन के आधार पर बने उप-मुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला, पंचायत मंत्री देवेन्द्र सिंह बबली और राज्यमंत्री अनूप सिंह, धानक गठबन्धन की टूट के साथ ही स्वत: मंत्रिमंडल से रुख्सत हो गये थे। सिरसा से विधायक गोपाल कांडा को भी मंत्री-पद न मिलने से उनके समर्थक निराश हुए हैं। मंत्रिमंडल में किसी भी निर्दलीय को पद न देना बेशक चौंकाता है हालांकि प्रदेश के छह निर्दलीय विधायक सरकार के पाये बने हैं।
राजनीतिक दल जाति-हित समाज की संख्या के बेशक हज़ार वायदे करते रहें, किन्तु सत्य यही है कि सत्ता हासिल करने हेतु जोड़-तोड़ करने और फिर इस सत्ता को अपने पास बनाये रखने के लिए प्राय: सभी दल जातिगत और क्षेत्रीयता-आधारित समीकरणों की तलाश करते रहते हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी अपनी सरकार में ब्राह्मण, जाट, पंजाबी, राजपूत, वैष्य, पिछड़े और अनुसूचित समुदाय सहित 13 ज़िलों को प्रतिनिधित्व दिया है जबकि भिवानी और फरीदाबाद को दो-दो मंत्री-पदों से नवाज़ा गया है। तथापि, कैथल, करनाल और रोहतक इस श्रेय से वंचित रह गये हैं। हरियाणा में शेष देश के साथ लोकसभा चुनाव तो घोषित हुए ही हैं, प्रदेश में इसी वर्ष अक्तूबर में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। अत: अपनी पार्टी की चुनावी सम्भावनाओं को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री सैनी का इस प्रकार के जोड़-तोड़ हेतु उद्यत होना बहुत स्वाभाविक समझा जा सकता है। नि:संदेह उनके इन यत्नों को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का सतत् समर्थन एवं सम्बल प्राप्त हुआ है। दोनों के अपनी कठोर भीतरी अनुशासनवादी पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ता होने के कारण उनसे यह अपेक्षा भी थी।
इन दोनों नेताओं द्वारा हरियाणा के मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग जी.टी. रोड से सम्बद्ध विधानसभा सीटों पर अधिक ध्यान केन्द्रित किये जाने से यह भी पता चलता है कि उन्होंने विधानसभा चुनावों को मुख्य केन्द्र-बिन्दू में रखा है। इसीलिए उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को भी इसी आधार पर प्रतिनिधित्व देकर अपने साथ गांठे रखा है। मंत्रिमंडल में हालांकि एक ही महिला को प्रतिनिधित्व दिया गया है, किन्तु उनको पदोन्नत कर पुरस्कार का प्रतीक भी बनाया गया है। हम समझते हैं कि नि:संदेह मुख्यमंत्री सैनी ने अपने पहले ही सत्ता-काल में, मंत्रिमंडलीय गठन और फिर किये गये विस्तार में अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ एवं परिपक्वता का प्रदर्शन तो किया ही है, अपनी पार्टी भाजपा उच्च कमान के दरबार में ज़ोर के साथ अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराई है।