प्रदूषण के क्षेत्र में पिछड़ा है भारत

देश के बड़े राजनीतिज्ञ बार-बार यह दावा करते आ रहे हैं कि भारत अब आर्थिक पक्ष से दुनिया की पांचवीं महा-शक्ति बन चुका है तथा आगामी दशक में यह इस पक्ष से तीसरा बड़ा देश हो जाएगा। प्रधानमंत्री यह बार-बार दावा करते आ रहे हैं कि उन्होंने पिछले 10 वर्ष में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है। यह भी कि आज देश में 80 करोड़ लोगों को ज़रूरी मुफ्त अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है। हम इन दावों के साथ असहमत नहीं है। इसके साथ ही देश में जो विकास कार्य हो रहे हैं, उनमें भी बड़ी तेज़ी आई है, परन्तु दूसरी ओर कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण पहलू हैं, जिनके संबंध में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। इनमें ही शामिल है देश की लगातार बढ़ रही जनसंख्या के साथ-साथ बढ़ रहा वायु प्रदूषण, जिसने करोड़ों लोगों के शरीर को खोखला करके रख दिया है।
अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कुछ ऐसी संस्थाएं हैं जो लगातार विश्व भर में फैले प्रदूषण का जायज़ा लेती रहती हैं, उनके कारणों पर विस्तारपूर्वक दृष्टिपात करती हैं और उन्हें दूर करने के पुख्ता सुझाव भी देती रहती हैं। उनके आंकड़ों पर किन्तु-परन्तु करना बेहद कठिन है। ऐसी ही एक उत्तम संस्था स्विस यू.ए.आई.आर. है जिसके इस पक्ष से सर्वेक्षणों को कभी भी झुठलाया नहीं गया। वर्ष 2023 के इसके ताज़ा सर्वेक्षण को पढ़ते ही शर्म भी आती है, निराशा भी एवं अफसोस भी होता है। देश के कुछ ऐसे नकारात्मक एवं जन-विरोधी पक्ष हैं, जो कम होने की बजाय हमेशा बढ़ते ही दिखाई दिए हैं। देश की जनसंख्या का लगातार बढ़ना बेहद चिन्ताजनक है परन्तु सरकारें लगातार इस पक्ष से विफल रही हैं। पिछले 75 वर्ष में जनसंख्या को नियन्त्रण में रखने के लिए कभी भी कोई गम्भीर योजनाबंदी सामने नहीं आई तथा न ही कभी किसी सरकार ने इसके प्रति चिन्ता ही प्रकट की है। यही स्थिति देश में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण की है। यह प्रदूषण पानी में भी है। देश की धरती पर स्थान-स्थान पर दिखाई देता है। इसके साथ ही एक सौ चालीस करोड़ के पार हो चुकी देश की जनसंख्या लगातार प्रदूषित एवं ज़हरीली हवा में सांस लेने के लिए भी विवश है, जिससे हर वर्ष लाखों ही लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं तथा करोड़ों के शरीर जर्जर एवं नकारा होकर रह जाते हैं, परन्तु यदि हमारे बड़े-छोटे नेताओं ने इस दिशा में चिन्ता भी प्रकट की हो तो भी, या कुछ यत्न भी किये हों तो भी, समूचे रूप से अब तक वे इन यत्नों में बुरी तरह विफल हुए हैं। बड़ी नमोशी वाली बात यह है कि दशकों से लगातार ऐसे सर्वेक्षण सामने आने के बावजूद समकालीन सरकारें इसका कोई सन्तोषजनक हल नहीं निकाल सकीं तथा समाज इससे पूरी तरह शिथिल हुआ रहा है। पिछले वर्ष के उपरोक्त उच्च संस्था द्वारा किये गये सर्वेक्षण में भारत दुनिया का तीसरा सबसे अधिक प्रदूषित देश है। इस संस्था ने इस पक्ष से दुनिया के 134 देशों की वायु गुणवत्ता के आधार पर करवाये गये सर्वेक्षणों से ये आंकड़े तैयार किये हैं। इसके अनुसार यदि आज हम प्रदूषण के पक्ष से सिर्फ पाकिस्तान एवं बंगलादेश से ही आगे हैं, तो इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या हो सकती है जबकि इसी संस्था के वर्ष 2022 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत 8वें स्थान पर था तथा एक वर्ष में ही यह इतना प्रदूषित हो गया कि अब तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।
इस संबंध में विश्व भर में जो नये प्रयोग किये जा रहे हैं, हम उन्हें भी अपनाने में हिचकिचाहट एवं बड़ी लापरवाही दिखा रहे हैं, जबकि ज्यादातर विकसित देशों ने बिजली उत्पादन के लिए कोयले के स्थान पर हवा एवं पानी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। चाहे अब देश में सौर ऊर्जा पैदा करने की योजनाएं बनाई जा रही हैं, परन्तु इन पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए, उसकी कमी महसूस होती है। देश की हवा में धूल मिली हुई है। निर्माण कार्यों ने हवा दूषित कर दी है। उद्योग में इस्तेमाल किया जाता कच्चा माल भारी प्रदूषण पैदा करने का कारण बनता है। देश में चलते हर तरह के करोड़ों वाहन धुएं की परतों को लगातार बढ़ा रहे हैं। यदि इस ओर से लगातार अध्ययन किया जाए तो देश की 96 प्रतिशत जनसंख्या वायु प्रदूषण में सांस ले रही है। देश के 7800 शहरों में 9 प्रतिशत शहरों की ही वायु गुणवत्ता अच्छी कही जा सकती है। यदि इस पक्ष से ऐसे ही हालात बने रहे तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में   की जाती बड़ी से बड़ी उपलब्धियां भी नकारा हो कर रह जाएंगी। नि:संदेह इस पक्ष से यदि क्रियात्मक रूप में गम्भीर योजनाबंदी न की गई तो यह देश एक ऐसी भट्ठी बन कर रह जाएगा, जिसमें जीने के लिये सांस लेना भी बेहद कठिन हो जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द