भाजपा की वित्तीय शक्ति का एक छोटा-सा हिस्सा है चुनावी दान

चुनावी बॉन्ड योजना 2017 के तहत दानदाताओं और सत्ताधारी दल के बीच लेन-देन भावना को देखते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है।  सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने बॉन्ड्स के कोड नम्बरों की जानकारी चुनाव आयोग को सौंप दी है। इससे अब बॉन्ड खरीदार और राजनीतिक दल के लाभार्थी की पहचान हो जायेगी। पहले उपलब्ध बॉन्ड विवरण से पता चलता है कि 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024  के बीच कुल16492 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स की खरीदारी की गयी थी जिनमें से भाजपा को 8250 करोड़ रुपये मिले यानी कुल राशि का अधिकांश भाग। इसके अलावा 2018 की शुरुआत से 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश जारी होने तक लगभग 4000 करोड़ रुपये के बॉन्ड  खरीदे गये। नि:संदेह उसकी भी अधिकांश राशि भाजपा को मिली होगी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार स्टेट बैंक को छिपे हुए अल्फा न्यूमेरिककोड का खुलासा करने को कहा गया था। 
18वीं लोकसभा के लिए चुनाव सात चरणों में घोषित किए गये हैं, जो 19 अप्रैल से शुरू होकर इस साल 1 जून को समाप्त होंगे। परिणाम 4 जून को घोषित किये जायेंगे। भाजपा 2024 के चुनावों के लिए भारी राशि खर्च करेगी। चुनावी बॉन्ड योजना से एकत्र की गयी राशि इसका केवल एक छोटा-सा हिस्सा है, शायद उसके राजनीतिक युद्ध कोष का 10 प्रतिशत भी नहीं। इसके अन्य स्रोतों में मुख्य रूप से वह धन शामिल है जो विदेशों से भाजपा वॉरचेस्ट को आता है, मुख्य रूप से  अमरीका और एंटवर्प में हीरा बाजार से, जहां गुजराती भारतीयों का वर्चस्व है। अधिकांश मध्यस्तों के भाजपा से घनिष्ठ संबंध हैं और वे बहुत अमीर हैं। इसके अलावा पारम्परिक व्यापारी और व्यापारिक घराने भी हैं जो दशकों से भाजपा के प्रति मित्रवत रहे हैं।
जमीनी हकीकत यह है कि भाजपा और संघ परिवार के संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का भारतीय प्रवासियों में बहुत बड़ा समर्थन आधार है। उनकी तुलना में कांग्रेस का समर्थन आधार बहुत छोटा है। विहिप और कुछ अन्य हिंदू संगठन अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप के अन्य हिस्सों और हाल ही में मध्य पूर्व के देशों में हिंदू मंदिरों और ट्रस्टों के प्रबंधन को नियंत्रित करते हैं। मंदिरों और ट्रस्टों के पास भारी धन है। भाजपा जो खुद को दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करती है और उसकी सदस्यता 10 करोड़ से अधिक है, उसे अलग-अलग स्रोतों से फंडों की सुविधा हमेशा मिल सकती है। चूंकि केंद्र में भाजपा का शासन है, इसलिए किसी कानूनी उल्लंघन होने पर भी केन्द्रीय जांच एजेंसियों से पार्टी को कोई खतरा नहीं है। विदेशों से धन की इस दौड़ में कांग्रेस कहीं भी भाजपा के सामने नहीं टिकती। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेतृत्व ने तत्कालीन सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति के कुछ विधायकों को रुपये की कथित पेशकश की थी। भाजपा को क्रॉसओवर करने के लिए प्रत्येक को 100 करोड़ रुपये का लालच देने की रपटें प्रकाशित हुई थीं। इससे राज्य की राजधानी हैदराबाद में हंगामा मच गया और हमेशा की तरह भाजपा नेताओं ने इसका खंडन किया। 
2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से पिछले पांच वर्षों में भाजपा ने कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में राज्य सरकारों को अस्थिर करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये हैं और गोवा और मणिपुर में राज्य सरकारें बनाने के लिए विधायक खरीदे हैं। महाराष्ट्र में  एकनाथ शिंदे समूह के दलबदल करवा कर वहां शिंदे-भाजपा की सरकार बनाई।
भाजपा अपने विपक्षी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में दस गुना से अधिक खर्च करने की स्थिति में है और पार्टी के पास जरूरत पड़ने पर एक बड़ी राशि का खजाना है। भाजपा शासन के पिछले दस वर्षों में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में धन का असामान्य संकेंद्रण हुआ है। एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि भारत की बीस सबसे अधिक लाभदायक कम्पनियों ने 1990 में कुल कॉर्पोरेट मुनाफे का 14 प्रतिशत, 2010 में 30 प्रतिशत और 2019 में 70 प्रतिशत कमाया। इसका मतलब है कि केवल पांच वर्षों के दौरान कुछ व्यावसायिक घरानों में मुनाफे की एकाग्रता में भारी उछाल आया है। नरेंद्र मोदी शासन के पिछले पांच वर्षों में यह प्रक्रिया और भी तेज़ हुई। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख औद्योगिक घरानों के बीच कथित सांठगांठ और गहरी हो गयी प्रतीत होती है।
अब ये मुनाफ कैसे हुआ? एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के विश्लेषण से पता चलता है कि ये लाभ कोई नयी प्रौद्योगिकी या उत्पादकता वृद्धि के कारण नहीं बल्कि मुख्य रूप से बाज़ार की शक्ति के कारण थे। इसका मतलब यह है कि प्रधानमंत्री ने भारतीय बाज़ार को इन चुनिंदा घरानों के लिए ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए अनुकूल बना दिया है।  
‘द इकोनॉमिस्ट’ में दिये गये आंकड़ें दर्शाते हैं कि 2016 से 2021 के बीच भारतीय अरब पतियों की सम्पत्ति 29 से बढ़ कर 43 प्रतिशत हो गयी है और उनकी कमाई रॉयल्टी और निवेश से आने वाली आय से है न कि विनिर्माण या रिटेल आदि क्षेत्रों में सीधी बिक्री से।  (संवाद)