क्यों विलुप्त हो रहे हैं हमारे विरासती वृक्ष ?

वृक्षों के बिना इस धरती पर मानवीय जीवन संभव नहीं है। इस तरह महसूस होता है कि जैसे-जैसे मनुष्य तरक्की कर रहा है, वैसे-वैसे मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है। हम प्रकृति के निकट होने का दिखावा तो बहुत करते हैं, लेकिन वास्तव में हम इससे बहुत दूर हैं। तरक्की की आड़ में मनुष्य ने प्रकृति का इतना विनाश किया है कि पशु-पक्षियों, वृक्षों, पौधों की बहुत सारी प्रजातियां या तो बहुत कम हो गई है या खतरे के निकट हैं। यदि हमने उनको न बचाया तो आने वाले समय में सिर्फ तस्वीरों में ही ये प्रजातियां दिखाई देंगी। सुंदर फूलों से भरे वृक्ष किन्हें सुंदर नहीं लगते। ये सुंदर फूल-पौधे-वृक्ष हमारी धरती का श्रृंगार हैं।
यदि हम विगत समय से लेकर अब तक पीछे की तरफ देखें को बहुत सारे वृक्षों की प्रजातियों की संख्या पंजाब में कम हो गई है। सड़कों के किनारों पर, गांवों के संयुक्त स्थानों की ओर देखें तो पहले के मुकाबले वृक्ष बहुत कम हैं। मौजूदा पीढ़ी के साथ बात करके देखो, किसी को आसान से वृक्षों के नाम ही नहीं आते। हमारे विरासती (पुराने) वृक्षों के बारे में तो उनको कोई जानकारी ही नहीं। आज के बच्चों के साथ बात करके देखो, उनको विरासती वृक्षों के बारे में कुछ भी पता नहीं।
शोहरत और लालच में पड़ कर हम अपने विरासती वृक्षों को नष्ट करते जा रहे हैं। जो वृक्ष कभी पंजाब की धरती पर आसानी से मिलते थे, वे आज बहुत कम देखने को मिलते है, जो विलुप्त ही हो गए है। आज हम वृक्षों के जंगल नहीं, कंकरीट के जंगल बना रहे हैं। वृक्ष हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ जुड़े हुए हैं। हम इनकी पूजा भी करते हैं परन्तु पूजा का वास्तविक मकसद क्या है, यह हम जानने से चुक गए हैं। हमारे विरासती वृक्ष बोहड़, पीप्पल, जंड, वण, निगुंडी अथवा संभालू, रहूड़ा, फलाही, ढक्क, फरमांह, करीर, रेरू की संख्या बहुत कम हो गई है। हम टी.वी. चैनलों पर प्रकृति को देखना पसंद करते हैं लेकिन वास्तव में हम प्रकृति से बहुत दूर हो चुके हैं। यदि यही हाल रहा तो ये वृक्ष जिनकी संख्या आज बहुत कम है, एक दिन पंजाब की धरती से खत्म ही हो जाएंगे। हमें जागरूक होना पड़ेगा, हमें नौजवान पीढ़ी को, विद्यार्थियों को जागरूक करना पड़ेगा। क्या कारण है कि हमारे विरासती वृक्ष खत्म हो रहे हैं? एक तो हमारी जीवन प्रणाली ऐेसी बन चुकी है कि हम घर तो चाहते हैं कि पूरा घर पक्का हो, बिल्कुल भी कच्चा स्थान न हो। घर में मिट्टी न हो। मिट्टी से हम दूर होते जा रहे हैं। हम प्रकृति को गमले में कैद करके रखना चाहते हैं। प्रकृति को अपने अनुसार मोड़ना चाहते हैं। वास्तविक रूप में हमें प्रकृति प्रेमी बनना पड़ेगा, कथित वातावरण प्रेमी बनने का कोई फायदा नहीं। बोहड़ और पीप्पल कभी गुरुद्वारों, डेरों, मन्दिरों की शान होते थे परन्तु आजकल इनको लगाने से परहेज़ किया जाता है। कारण बताया जाता है कि यह स्थान बहुत घेरते हैं। बोहड़ की ठंडी छांव के नीचे लोग बैठते थे, बातें करते थे लेकिन आजकल लोग फाईबर की छोटी सी छत के नीचे बैठना अधिक पसंद करते हैं।
निगुंडी या संभालू (वनस्पति नाम विटिकस निंगुडो) पंजाब में डेरों, गुरुद्वारों में प्राय: मिलते थे, क्योंकि इससे अनेक दवाइयां तैयार की जाती थीं लेकिन आजकल यह पौधा भी बहुत कम मिलता है। रेरू (वनस्पति नाम अकेशीया लियोकोफलीया) का वृक्ष भी पंजाब में कम हो रहा है। किक्कर की तरह दिखने वाला यह वृक्ष कहीं-कहीं मिलता है। लसूड़ा (वनस्पति नाम कारडीया डाईकोटोमा) पूरे पंजाब में पाया जाने वाला वृक्ष है लेकिन आज इसकी संख्या बहुत कम हो गई है। किसी समय लसूड़ियां (लसूड़े वृक्ष का फल) के साथ भरा वृक्ष पक्षियों और आम लोगों को अपनी तरफ खींचता था। इसके फल में से निकलने वाला लेसदार पदार्थ दवाईयों के रूप में प्रयोग होता था। फलाही को मार्च से मई माह तक क्रीम (सफेद) रंग के फूल लगते हैं। आज की नौजवान पीढ़ी में से शायद ही किसी ने यह वृक्ष देखा हो। यह वृक्ष पंजाब में बहुत कम दिखता है। इसके छोटे-छोटे कांटे होते हैं लेकिन छोटे-छोटे पत्ते दो से छ: पिनों के रूप में होते है।
रहूड़ा (टिकोमैला अंडूलेटा) रेतीली धरती पर पाया जाने वाला बहुत ही सुंदर वृक्ष कभी मालवा के बठिंडा क्षेत्र में आम ही मिलता था, लेकिन आजकल दिखाई नहीं देता। भारत सरकार द्वारा जारी किए विलुप्त हो रहे वृक्षों की सूची में इसका नाम शामिल है। फरमांह (वनस्पति नाम टैमरिकस एफाईला) मध्यम कद का सीधे तने वाला वृक्ष है। कोई समय था जब पश्चिमी पंजाब के दक्षिणी-रेतीले इलाकों में यह वृक्ष आम देखने को मिलता था लेकिन आजकल बहुत ही कम दिखाई देते है। विरासती वृक्षों के कम होने का वास्तविक कारण यह है कि हमारे जीवन की प्राथमिकताओं में विरासती वृक्ष हैं ही नहीं। नई पीढ़ी को इन वृक्षों के बारे जागरूक करने की आवश्यकता है। हमें बनावटी जीवन छोड़ कर वास्तविकता को जानने की ज़रूरत है। अमीरी का घमण्ड हमारी मानसिकता में बसा हुआ है। इसको मन से निकालकर वास्तव में प्रकृति प्रेमी बनने की ज़रूरत है। हम प्रकृति से कभी भी मुकाबला नहीं कर सकते। हम प्रकृति की नज़रों में बहुत छोटे जीव हैं। मनुष्य को यह कभी भी नहीं समझना चाहिए कि वह प्रकृति का मालिक है। वह प्रकृति को काबू कर लेगा। इस भ्रम में फंसा हुआ मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। मनुष्य ने भ्रम को पाल लिया है कि यह धरती सिर्फ उसकी है। आज मनुष्य की सोच इतनी बदल गई है कि वह समझता है कि जीव-जन्तु, पौधे, कीट-पतंगे, जंगल सब व्यर्थ हैं। मनुष्य वृक्षों, जंगलों, जीव-जन्तुओं को नष्ट करना अपना अधिकार समझने लग गया है।
आओ, नई पीढ़ी को साथ लेकर चलें। उसको जागरूक करें। स्कूलों, कालेजों, कार्यालयों में अधिक से अधिक विरासती वृक्षों की तस्वीरें लगाकर नौजवान पीढ़ी को जागरूक करें। विरासती वृक्ष लगाएं। वृक्ष लगाना ही काफी नहीं, उनकी देखभाल करनी भी ज़रूरी है। बच्चों की तरह उनकी देखभाल करें। आओ, मिल कर यत्न करें और पंजाब के कम हो रहे, विलुप्त हो रहे विरासती वृक्षों के बारे में यदि किसी को कोई जानकारी मिलती है तो वह सांझी करनी चाहिए ताकि विलुप्त हो रही विरासत को संभाला जा सके।
-लेक्चरार, जीव विज्ञान, गांव आकलीया कलां, ज़िला बठिंडा
मो-9780715208