बेरोज़गारी का बड़ा कारण युवाओं में कुशलता का अभाव

लोकसभा चुनावों के ठीक पहले आयी ‘इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट-2024’ ने हंगामा खड़ा कर दिया है। दरअसल इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जितने बेरोज़गार हैं, उनमें 83 फीसदी युवा हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डिवेल्पमेंट की इस इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट से यह भी ज़ाहिर होता है कि देश में ज्यादा पढ़े लिखे युवाओं में बेरोज़गारी की दर ज्यादा है। जिन युवाओं ने कम से कम सेकेंडरी एजुकेशन ले रखी है, उनमें बेरोज़गारी की दर पिछले दो दशकों में लगातार बढ़ी है। साल 2000 में जहां यह 35.2 फीसदी थी, वहीं साल 2022 में यह बढ़कर 65.7 फीसदी तक पहुंच गई है। निश्चित रूप से चुनावों के पास इस तरह की रिपोर्टों को लेकर विश्लेषक भी ज्यादा कुछ सोचते नहीं और सीधे-सीधे इसके लिए सरकार को दोषी ठहरा देते हैं। एक तरह से यह गलत भी नहीं हैं, लेकिन इस पूरी रिपोर्ट को इतने श्याम-श्वेत ढंग से देखने पर हकीकत का पता नहीं चलेगा। 
दिसम्बर 2023 में मानव संसाधन विकास परामर्श फर्म टीमलीज सर्विसेज ने भारत में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर एक जबरदस्त विरोधाभास दर्शाने वाली रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में देश में 15 करोड़ कुशल श्रमिकों की बेहद कमी थी, ठीक इसी समय इस आंकड़े को भी देखा जा सकता है कि साल 2022-23 में 15 साल और उससे ज्यादा की उम्र के भारतीयों में 13.4 फीसदी बेरोज़गारी थी। अगर देश में कुल ग्रेजुएट बेरोज़गारों की बात करें तो साल 2022-23 में इनकी तादाद 42.3 फीसदी थी। यह बेहद चिन्ताजनक विरोधाभास है कि एक तरफ जहां देश में इतनी जबरदस्त बेरोज़गारी है, वहीं दूसरी तरफ इतने बड़े पैमाने पर अपने देश में कुशल श्रमिकों की भी कमी है। 
देश को कुशल मजदूरों की इस कमी का जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। दो साल पहले मानव पूंजी प्रबंधन और कार्यबल प्रबंधन सेवाएं प्रदान करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनी क्रोनोस इनकार्पोरेट ने एक सर्वे किया था कि आखिर भारत में कुशल मजदूरों की कमी का अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान है? तो सर्वे में हिस्सा लेने वाले 76 फीसदी संस्थानों और संगठनों ने इस बात को माना था कि भारत में कुशल मजदूरों की कमी के कारण उनके मुनाफे में जबरदस्त कमी आयी है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें हमारी ज़रूरत भर के कुशल मजदूर उपलब्ध हों। वास्तव में इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि देश में महज 4 से 5 फीसदी श्रमिक ही कुशल और प्रशिक्षित हैं, बाकी 95 फीसदी अकुशल मजदूर हैं। जबकि दूसरी तरफ हमारी तुलना में चीन में 84 फीसदी और यूरोप में 75 फीसदी कुशल या प्रशिक्षित मजदूर हैं। अमरीका, जर्मनी में तो कुशल मजदूरों का प्रतिशत 95 या इससे भी ऊपर है। 
लेकिन यह तथ्य भी कोई पहली बार पिछले साल ही उजागर नहीं हुआ था। अतीत में हमारी कई महत्वपूर्ण शख्सियतों ने अपने सुर्खियां बनने वाले बयानों के जरिये इस तरफ ध्यान खींच चुके हैं। कांग्रेस सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे जयराम रमेश ने कई साल पहले यह कहकर सनसनी मचा दी थी कि देश के महत्वपूर्ण तकनीकी संस्थानों आईआईटी में भी महज 15 फीसदी छात्र ही योग्य और काम के लायक होते हैं। जयराम रमेश को अपने इस बयान के पीछे भले कितनी ही आलोचना झेलनी पड़ी हो, लेकिन यह सच था। इसीलिए बाद में इंफोसिस के पूर्व निदेशक एन. नारायण मूर्ति को भी यह बात दोहरानी पड़ी कि हमारे यहां प्रशिक्षित कामगारों की बहुत बड़ी समस्या है। नारायण मूर्ति का भी मानना है कि आईआईटी जैसे संस्थानों में भी महज 15 से 20 फीसदी ग्रेजुएट काम के योग्य होते हैं। इससे पता चलता है कि देश में कुशल श्रमिकों की कितनी बड़ी समस्या है। मगर इस समस्या के लिए केवल सरकार ज़िम्मेदार नहीं है और न ही सरकारी नीतियां। 
लेकिन ऐसे में क्या होगा, जब देश में 55 करोड़ से ज्यादा कार्यशील श्रमबल हो, लेकिन फिर भी देश में 15 करोड़ कुशल श्रमिकों की कमी हो। कहने का मतलब यह कि अगर भारत में कुशल श्रमिकों की कमी को भारत में मौजूद बेरोज़गारी से तुलना करें तो कुशल श्रमिकों की कमी भारी पड़ती है। दो साल पहले शिक्षा प्रौद्योगिकी कम्पनी स्किल सॉफ्ट ने आईटी दक्षता और वेतन सर्वेक्षण-2023 के निष्कर्ष जारी करते हुए कहा था कि देश के आईटी सेक्टर को अपनी योजनाओं और महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप प्रतिभा तलाशने में जबरदस्त संकट का सामना करना पड़ रहा है। 
विशेषज्ञों के मुताबिक भविष्य में उच्च प्रशिक्षित कामगारों और एआई के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होने वाली है, क्योंकि  एआई भले प्रौद्योगिकी का कमाल का विस्तार हो, लेकिन यह अपने आप में कुछ नहीं, जब तक इसे संचालित करने के लिए योग्य मानव श्रमबल न हो। योग्य मानव श्रम के अभाव में एआई अपने आप में किसी तरह की उपलब्धि नहीं बल्कि बोझ होगी और भारत की अनुमानित विकास दर में दुनिया भर के तकनीकविदों को जो सबसे बड़ी खामी नज़र आ रही है, वह यही है कि देश में अकुशल बेरोज़गारों की तो बहुत बड़ी फौज है, लेकिन रोज़गार पाने के लिए कुशल श्रमिकों का जबरदस्त अभाव है। अगर गहराई से देखें तो 2024 की इस बेरोजगारी रिपोर्ट में पूरी तरह से अकुशलता की छाया है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर