स्व-राज से रामराज्य की ओर बढ़ता भारत

ऋषियों के प्रताप से यह देश सांस्कृतिक भारत, आध्यात्मिक भारत, संस्कारित भारत, सनातनी भारत, प्राचीन भारत, अद्वितीय भारत, विश्वगुरु भारत सहित अनेक नामों से प्रतिष्ठित है। केवल अध्यात्म ही नहीं, विज्ञान सहित हर क्षेत्र में दुनिया को बहुत कुछ देने वाला भारत ही है। विश्व के अनेक यात्रियों ने आज से सैंकड़ों-हजारों वर्ष पूर्व भारत का दौरा कर इसे धरती पर स्वर्ग कहा तो किसी ने इसे सोने की चिड़िया कहा। इसीलिए ज्ञान की चाह में भारत आने वालों से अधिक सोने की चिड़िया के पंख नोंचने वाले यहां आये। इन दुष्टों ने सोमनाथ के मंदिर सहित अनेक स्थानों पर लूटपाट तो की ही, हमारी श्रद्धा के केन्द्रों को भी नष्ट-भ्रष्ट किया। अयोध्या, मथुरा, काशी ही नहीं, देश के भिन्न-भिन्न भागों में ऐसे असंख्य स्थान मौजूद हैं जो आक्रांताओं के अमानुष होने के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी कुतुब मीनार परिसर में बनी कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के खण्डहर आज भी आक्रांताओं के अत्याचार की गवाही देते हैं।
मेरा भारत केवल अपने मंदिरों की वास्तुकला के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है। सत्य, श्रम, सेवा, साहस, शौर्य हमारी पहचान है इसीलिए भारतीय जीवन दर्शन पूरे विश्व को आकर्षित करता रहा है। महात्मा चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य ने बार-बार आने वाले आक्रांताओं से भारत की सीमाओं को सुरक्षित किया। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी ने अपने अद्वितीय शौर्य से जन-जन के हृदय में स्वराज्य का भाव पैदा किया तो श्री गुरु तेगबहादर जी ने स्वधर्म के लिए बलिदान की प्रेरणा दी। भारत पुत्र अपने पूर्वजों की पुण्य धरा की प्रतिष्ठा बहाल करने के लिए प्राण-प्रण से संकल्पित हैं। उनके हृदय में यहां रामराज्य स्थापित करने की इच्छा हिलोरें ले रही है।
इतिहास से सबक ले देश के भविष्य को संवारने का जज्बा मन में लिए भारत का जन-मन नये उत्साह और उमंग के साथ प्रयासरत है। सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवम्बर 2019 को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में निर्णय दिया तो पांच सदियों के संघर्ष में आत्मोसर्ग करने वाले भारतपुत्रों की आत्माएं भी हर्षित थीं। जन-जन के आराध्य प्रभु श्री राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण आरंभ होकर जब 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो केवल भारत नहीं, पूरे विश्व में फैले हर भारतवंशी के हृदय में उल्लास हिलोरें ले रहा था। सदियों के इतिहास की इस ऐतिहासिक दिवाली ने जिस वातावरण का निर्माण किया, वह अद्वितीय था। सदियों से हर भारतपुत्र के हृदय में शूल की तरह चुभने वाले आक्रांताओं के काले निशानों से मुक्ति की आकांक्षा प्रत्येक भारतीय के मन में रही है। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के बाद भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी भी गौरव प्राप्त की ओर अग्रसर है।
निश्चित रूप से बाबर के अत्याचार की निशानी का हटना और रामजन्म भूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, स्वर्णिम और विकसित भारत का शंखनाद है। आज भारत अनेक महाशक्तियों को पछाड़ विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज भारत की वैज्ञानिक क्षमता का लोहा पूरा विश्व मान रहा है। देश निर्मित तेजस के बाद अग्नि मिसाइल के नये अति मारक संस्करण, मंगलयान, चन्द्रयान और मिशन आदित्य की सफलता अंतरिक्ष में भारत की सशक्त उपस्थिति को दर्शाती हैं। भारत के कदम चांद तक तो पहुंचे ही, आज हम रक्षा निर्यात के क्षेत्र न केवल आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं बल्कि नौ साल में हमारा रक्षा निर्यात 23 गुना बड़ा है। भारत की बढ़ती शक्ति की एक झलक विश्व ने डोकलाम में देखी। भारत का अहित करने वाले भिखारी बने दुनिया से सहायता मांग रहे हैं तो भारत की विदेश नीति की प्रशंसा विरोधी भी करने को मजबूर हैं।
टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, इंजीनियर स्मार्ट डिजिटल तकनीक  से उत्पादन और औद्योगिक विकास के आधुनिकीकरण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष जैसे अग्रणी क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त कर भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा कर रहे हैं। ये संकेत भारत के पुन: विश्व का सिरमौर बनने के हैं। इसका श्रेय वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ इसे अवसर देने वाले करोड़ों भारतीयों को है।भारतीयता के पर्याय हिन्दुत्व में राष्ट्रभक्ति सर्वोपरि है। राष्ट्र को स्वाभिमान, स्वाधीनता, स्वावलम्बन तथा संस्कृति को स्थिरता एवं सुदृढ़ता प्रदान करने वाले आचार्य चाणक्य जैसे अनन्त ऋषि हमारे प्रेरणा स्रोत रहे हैं तो भगवा युगों-युगों से हमारी पहचान है। ‘वयं पंचाधिक शतम्’ सदियों से हमारी नीति है। जब भी समाज संगठित होकर खड़ा हुआ, सेल्युकस जैसे आक्रांता को भी भारत के समक्ष मस्तक झुकाना पड़ा। यह सत्य है कि स्वराज प्राप्त करना भी सरल न था परंतु स्वराज को सुराज अर्थात रामराज्य बनाना एक चुनौती है। स्वराज को रामराज्य बनाने की प्रथम और अनिवार्य शर्त सामाजिक समरसता है। समाज की एकता है। यह कार्य केवल समाज की एकता से ही संभव है।