अधिक मुनाफे के लिए किसान बासमती की काश्त करें

इस वर्ष खरीफ के सीज़न में किसानों की अधिक रुचि बासमती किस्मों की काश्त करने में है। इसके पीछे कारण गत वर्षों में बासमती का मंडी में लाभदायक दाम मिलना है। पी.बी.-1121 किस्म का दाम तो 5000 रुपये क्ंिवटल तक चला गया था। बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक तथा आल इंडिया राइस एक्पोर्ट्स एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन विजय सेतिया जो उन देशों जिनमें भारत की बासमती का निर्यात होता है, का हाल ही में दौरा करके आए हैं, के अनुसार इस वर्ष भी बासमती के दाम गत वर्ष से बेहतर नहीं तो बराबर रहने की सम्भावना है। 
पश्चिम एशिया मध्य यूरोप के देशों में भारत की बासमती की मांग बढ़ रही है। इनके अतिरिक्त खाड़ी के देशों में भी भारत की बासमती का बड़ी मात्रा में निर्यात होता है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार गत वर्ष पंजाब में 5.96 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त की गई थी, जिसे विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह के अनुसार विभाग द्वारा इस वर्ष बढ़ा कर 8 लाख हैक्टेयर रकबे तक ले जाने का प्रयास किया जाएगा। इससे पंजाब में फसली विभिन्नता की प्राप्ति होगी, जो गत 25 वर्षों से सभी प्रयास करने के बावजूद भी नहीं हुई। 
किसानों द्वारा की जा रही बीज की खरीद तथा मांग से स्पष्ट है कि वे आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) द्वारा विकसित की गईं बासमती की नई किस्मों जैसे पूसा बासमती-1885 (पी.बी.-1121 का संशोधित रूप), पूसा बासमती-1886 (पी.बी.-6 का विकल्प), पूसा बासमती 1847 (पी.बी.-1509 तथा पी.बी.-1692 का बेहतर विकल्प) तथा पूसा 1401 आदि की बढ़चढ़ कर काश्त करेंगे। इन किस्मों की उत्पादकता 20-22 क्ंिवटल से लेकर 26-29 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक की है। आईएआरआई (पूसा) द्वारा विकसित बासमती की किस्में ही भारत में जियोग्राफिक इंडीकेशन (जी.आई.) ज़ोन में लगभग 90 प्रतिशत रकबे पर काश्त की जाती हैं। बासमती सिर्फ जी.आई. ज़ोन के सात राज्यों जिनमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी) तथा जम्मू-कश्मीर के कुछ जिले शामिल हैं, में काश्त की जाती है। बासमती का निर्यात इस वर्ष (सन् 2024-25) में 50 लाख टन तक किये जाने का अनुमान है। इसकी कीमत लगभग 46 करोड़ रुपये से भी अधिक बनती है। यह मात्रा गत सभी वर्षों से अधिक है। भारत से चावल का निर्यात कम हो रहा है और बासमती का बढ़ रहा है। 
इस वर्ष विदेशी मुद्रा कमाने का भी बासमती के माध्यम से अच्छा भविष्य है। बासमती सिर्फ भारत तथा पाकिस्तान में पैदा की जाती है। चाहे पाकिस्तान से निर्यात की जा रही बासमती भारत के निर्यात के मुकाबले बहुत कम है, परन्तु पाकिस्तान भारत के मुकाबले में खड़ा तो होता है। पाकिस्तान ने आईएआरआई द्वारा विकसित अधिक उत्पादन देने वाली बासमती की किस्में गैर-कानूनी ढंग से अपनानी शुरू कर दी हैं। पूसा बासमती-1121 किस्म जिसकी भारत में सबसे अधिक रकबे पर बिजाई की जाती है, और सबसे अधिक मात्रा में निर्यात की जाती है, यहां वर्ष 2003 में रिलीज़ हुई और पाकिस्तान ने ‘तैनात 1121 बासमती’ के लेबल के अधीन इसे वर्ष 2013 से बेचना शुरू किया है। अब पाकिस्तान में नई किस्में पी.बी.-1847, पी.बी.-1885, पी.बी.-1886 आदि भी चर्चा में होने की रिपोर्टें हैं। पूसा बासमती के लेबल के तहत रिलीज़ की गईं बासमती की किस्में सिर्फ भारत के सात जी.आई. ज़ोन के राज्यों में ही काश्त की जा सकती हैं। इन किस्मों में से पाकिस्तान में काश्त की जा रहीं किस्में जैसे पी.बी.-1121 वहां गैर-कानूनी तौर पर अपनाई गई हैं। आईएआरआई (पूसा) की अधिक उत्पादन देने वाली इन किस्मों ने पुरानी परम्परागत बासमती की किस्मों जैसे तरोड़ी बासमती, देहरादूनी, सीएसआर-30 तथा बासमती-370 आदि को भी लगभग काश्त से बाहर निकाल दिया है, क्योंकि इन किस्मों का प्रति एकड़ उत्पादन सिर्फ 9-10 क्ंिवटल था। 
पंजाब के किसानों को सलाह दी जाती है कि वे फसल पर ज़हरीली दवाओं का पूरे ध्यान से तथा कम से कम इस्तेमाल करें ताकि वह सफलता से निर्यात की जा सके और उन्हें लाभदायक दाम मिले।