असमंजस की कवायद में तिहाड़ भेजे गए केजरीवाल

18वीं लोकसभा के ऐन चुनावों के बीच, एक ऐसा राजनीतिक माहौल बन गया है, जैसा आजादी के बाद अभी तक कभी नहीं रहा। यहां तक कि 1977 के आम चुनावों में भी राजनीतिक लिहाज से देश में इतना अनिश्चित और कमजोर आत्मविश्वास वाला माहौल नहीं था, जैसा मौजूदा आम चुनावों के दौरान देखा जा रहा है। गुजरे रविवार (31 मार्च, 2024) की सरकार और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप की गहमागहमी के बाद लग रहा था, थोड़ा ग्रे ही सही, लेकिन दोनों ही तरफ  से अचकचाए और अनिश्चित से भाव-भंगिमाओं वाली प्रतिक्रियाओं से आगे बचा जा सकेगा और चुनावों का पहला चरण विशुद्ध लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा वाले माहौल में सम्पन्न होगा, ताकि चुनावों के दौरान एक लोकतांत्रिक गरिमा का माहौल दिखे। 
लेकिन अरविंद केजरीवाल जो कि इस समय सामूहिक विपक्ष की राजनीति की धुरी बन गये हैं, लग रहा है कुछ ज्यादा ही सजग हो गए हैं, इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा जनसहानुभूति हासिल करने के लिए अपने राजनीतिक फैसलों में एक अजीब किस्म की जिद बढ़ाते जा रहे हैं। निश्चित रूप से उनके प्रति, खासकर जब से ईडी (इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट) ने उन्हें गिरफ्तार किया है, दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश की राजनीतिक स्वाभाव वाली आम जनता में सहानुभूति पैदा हो गई है। लेकिन दिक्कत यह है कि केजरीवाल इस सहानुभूति को इतनी बड़ी पूंजी मान बैठे हैं कि वह मौजूदा केंद्र सरकार की मशीनरी को ब्रिटिश मशीनरी जैसा साबित करने की कोशिश में हैं और सरकारी एजेंसियां इस सबसे डर कर जल्दबाजी में फैसले कर रही हैं। 
इस बात को जानने और समझने के लिए कानूनी विशेषज्ञ होने की ज़रूरत नहीं है कि अगर ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया है, तो वह अपनी इस कार्रवाई को सही साबित करने के लिए हर संभव साक्ष्य तो जुटायेगी ही। इसलिए अरविंद केजरीवाल लगातार इस बात के लिए मौन रहकर या टालमटोल करके स्थितियों को बदल नहीं सकते कि वह अपने ज़ब्त किए गये मोबाइल फोनों के पासवर्ड नहीं देंगे। पहले वह कह रहे थे कि वह अपने वकीलों से पूछ कर देंगे लेकिन अब उन्होंने जांच एजेंसियों की इस मांग को इस तरह अनदेखा कर देना शुरू कर दिया है, जैसे वे गैर-ज़रूरी मांग कर रही हों जबकि हकीकत यह है कि केजरीवाल द्वारा मोबाइल फोनों के पासवर्ड न दिए जाने के कारण कई तरह की गलतफहमियां पैदा हो रही हैं।
भला लोगों को उनकी इस जिद पर आशंका क्यों न पैदा हो कि अगर केजरीवाल ने कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिसके उन पर आरोप लगाये जा रहे हैं तो उन्हें उन मोबाइलों का पासवर्ड देने में क्या दिक्कत है? हां, अगर उन्हें यह लग रहा हो कि पासवर्डों के ज़रिये उन्हें विलेन बनाने की कोशिश कर रही जांच एजेंसियां उनके फोन में कुछ ऐसी बातें फीड कर देंगी, जो उन्हें अपराधी बनाने के लिए पर्याप्त हों, तो केजरीवाल को अदालत में यह मांग करनी चाहिए कि वह अपने मोबाइल फोन तो दे देंगे, लेकिन वह चाहेंगे कि उनके लोगों की मौजूदगी में उन फोनों के डाटा की छानबीन हो। लेकिन इस आशंका के बावजूद वह जांच एजेंसियों की इस मांग को गैर-जरूरी और सियासत से प्रेरित नहीं कह सकते, क्योंकि जांच एजेंसियों का मुख्य काम ही होता है, अपराध के साक्ष्य जुटाना।
अपने को निर्दोष साबित करने के लिए तो दिल्ली के मुख्यमंत्री तार्किक बातें करते हैं, लेकिन जब उनसे जांच पड़ताल में भी तार्किक ने रहने की उम्मीद की जाती है, तब वह या तो किसी ज़िद्दी टीनएजर की तरह का व्यवहार करने लगते हैं या एक ऐसा डर प्रकट करते हैं, जिससे यह आशंका फलीभूत होती है कि ज़रूर इस घोटाले में उनकी हिस्सेदारी है? आखिरकार जब आप तरह तरह के बहाने बनाकर तिकड़में खड़ी करके जांच एजेंसियों को संतोषजनक ढंग से जांच करने में अड़ंगे लगाएंगे तो और क्या सोचा जा सकता है? आखिरकार कल को यह भी तो रिकॉर्ड में रहेगा कि बार-बार रिक्वेस्ट करने के बाद भी केजरीवाल आखिर जांच एजेंसियों की मदद क्यों नहीं कर रहे? उन्हें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि देश में मतदाताओं के बीच अगर उन्हें कोई सहानुभूति मिली है, तो उनके तार्किक और विनम्र व्यवहार के लिए मिली है। लेकिन अब अगर वो अपने को पीड़ित दिखा कर सहयोग न करने के लिए लोगों से सहानुभूति लेना चाहते हैं तो वह नहीं मिलेगी।
1 अप्रैल, 2024 को सुबह 11 बजे जिस तरह से ईडी की राउज एवेन्यू कोर्ट ने उन्हें महज 5 मिनट की सुनवाई के दौरान ही 15 दिनों के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया है, उससे साफ है कि ईडी कोर्ट उनकी ज्यादा ही सजगता से परेशान है। 21 मार्च, 2024 से जेल में बंद दिल्ली के अरविंद केजरीवाल को जब 1 अप्रैल को राउज एवेन्यू कोर्ट में कावेरी बवेजा की अदालत में पेश किया गया तो ईडी की तरफ  से एडिशनल सॉलिस्टिर जनरल राजू ने कहा कि केजरीवाल हम लोगों के साथ सहयोग नहीं कर रहे। वो हमें गुमराह कर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने पूछा कि ज्यूडिशियल कस्टडी के लिए ये दलीलें कितना सही हैं, तो इस पर एएसजी राजू ने अपनी बात को और स्पष्ट करने के लिए कहा, ‘केजरीवाल हमें अपने उन तीन फोनों के पासवर्ड नहीं बता रहे, जिनकी जांच करना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है।’ अदालत ने ईडी के इस आरोप के बाद बिना देर और बिना कोई अतिरिक्त बहस किए केजरीवाल को 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि केजरीवाल के वकील रमेश गुप्ता ने कोर्ट में जमानत पाने के प्रयास तक नहीं किए। सिर्फ यह कहा कि अरविंद केजरीवाल को जेल में पढ़ने के लिए गीता, रामायण और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी की हाल में आयी मशहूर हुई किताब ‘हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ की मांग की। मानो केजरीवाल यह संदेश देना चाहते हों कि इस हिरासत ने उन्हें आध्यात्मिक बना दिया हो और अब वह प्रतिस्पर्धी राजनीति के बजाय मानव कल्याण के लिए दार्शनिक अध्ययन करना चाहते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस तरह से ऐन आम चुनावों के बीच दिल्ली के सिटिंग मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया है, और उसके पहले इसी क्रम में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को इस्तीफा दिलावा कर गिरफ्तार किया गया, उस सबसे बिखरा हुआ विपक्ष किसी हद तक एकजुट हुआ है और उसमें अब जान आयी भी महसूस हो रही है, लेकिन केजरीवाल जैसे चतुर राजनेता को यह समझना चाहिए कि हाल के दशकों में भारतीय राजनेताओं और राजनीति ने अपने चरित्र को इस कदर गिराया है कि लोगों को अब राजनेताओं पर बहुत हल्का-सा भरोसा या उनके लिए इतनी-सी सहानुभूति ही पैदा होती है वरना उनकी हर चाल को लोग एक नाटक ही समझते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि केजरीवाल सहानुभूति हासिल करने के लिए लोगों की भावनाओं के तारों को इतना न खींचें कि उनके प्रति कोई लय पैदा होने की बजाय राग ही बेसुरा हो जाए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर