राजनेताओं में बढ़ती अनैतिकता लोकतंत्र के लिए ़खतरा

देश में इसी माह लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं। हज़ारों प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। चुनाव लड़ना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन चुनाव में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत आचरण करना राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा है। चुनाव भले ही महाविद्यालय के हो, पंचायत स्तर के हो, विधानसभा या लोकसभा के क्यों न हो लेकिन जब नैतिकता एवं मर्यादा को ताक में रखकर चुनाव लड़े जाते हैं तो चुनाव दंगल का रूप ले लेता हैं। वहां एक दूसरे के प्रति सम्मान, सद्भाव एवं देश विकास की बात गौण हो जाती है जबकि चुनाव में नैतिक आचरण बहुत ज़रूरी है। नैतिक मूल्यों की रक्षा एवं विकास के लिए ऐसे उम्मीदवारों को आगे आना होगा जो देश के विकास में सहभागी बनना चाहते है। तभी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश की जनता के साथ समुचित न्याय किया जा सकता है। देश में जब-जब भी चुनावी आते हैं, तब-तब राजनेताओं का बड़बोलापन व भाषा की मर्यादा सीमा लांघ जाती है। इस माहौल में देश में जाति, धर्म, लिंग-भेद के नाम पर तरह-तरह के जुमले चलते है। चुनावों में अनैतिकता बढ़ जाती है। चुनाव में बढ़ते अनैतिक आचरण से लोकतंत्र की मर्यादा तार-तार हो रही है। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे उन लोगों को टिकिट दें जो नैतिक व ईमानदार छवि के वाले हों।
चुनाव शुद्धि देश की जनता के सामने बहुत बड़ा विकल्प है। अगर जनता चुनाव शुद्धि को सफल बनाती है तो देश को एक स्वस्थ सरकार मिल सकती है जिसके परिणामस्वरूप देश का बहुपक्षीय विकास होगा। चुनाव शुद्धि के लिए उम्मीदवार यह संकल्प लें कि वे चुनाव में विजयी हों या न हों, परन्तु किसी भी हालत में भ्रष्ट व अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल चुनाव में नहीं करेंगे। इसी प्रकार सता पर आसीन दल की बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है कि चुनाव में सरकारी सम्पत्ति एवं साधनों का उपयोग किसी भी प्रकार नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है जनता जर्नादन की जो जागृत होकर लोभ, भय आदि में आकर लोकतंत्र को दूषित न करें। 
वर्तमान हालात के दृष्टिगत योग्य एवं ईमानदार लोग या नेता स्वयं ही चुनावों से किनारा कर लेते हैं जो देश में सही लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास के लिए अच्छी बात नहीं है। देश की जनता को सजग व जागरूक होना होगा, योग्य एवं ईमानदार उम्मीदवार का चयन करना होगा। तभी इस चुनाव की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। जब यह व्यवस्था लोकतंत्र में प्रभावी होगीए तभी उम्मीदवार यह संकल्प ग्रहण कर पायेगा कि मैं चुनावों में अनैतिक आचरण नहीं करूगां।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जनता का जागरूक होना बहुत ज़रूरी है। जब जनता जागरूक होगी, तभी सही मायने में लोकतंत्र की जीत होगी। लोकतंत्र की नीव अभय पर टिकी है। जब भी जनता में भय का भाव पैदा होगा, देश का लोकतंत्र खतरे में होगा। बुद्धि-जीवी वर्ग, मीडिया आदि जब तक इस कार्य के लिए सक्रिय नहीं होंगे, तब तक चुनाव-शुद्धि की कामना नहीं की जा सकती। 
देश भर में नैतिकता के आधार पर चुनाव शुद्धि अभियान चलाना चाहिए। राष्ट्रीय संत आचार्य तुलसी.महाप्रज्ञ ने कहा था कि हमारे बहुमूल्य वोट का अधिकारी वहीं व्यक्ति होना चाहिए जो ईमानदार होए चरित्रवान होए कार्य में निपुण होए जाति सम्प्रदाय से बंधा हुआ न हो तथा आर्थिक पवित्रता में संलग्न हो। वोट देने की प्रक्रिया जितनी सहज और शुद्ध होगी, लोकतंत्र उतना ही स्वस्थ होगा। जब मानवीय चेतना पर स्वार्थ हावी होता है और अनैतिकता के बीज अंकुरित हो जाते हैं तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता हैं। हमें इस खतरे को रोकना होगा। हमें स्वार्थ हो हावी होने से रोकना होगा। मैत्री, प्रेम व समता का विकास कर देश के हित को ध्यान में रखते हुए ही हमें मतदान करना होगा। तभी देश का कायाकल्प संभव है। (युवराज)