कहानी-ठोकर

घर से दुपहिया वाहन निकालते देख रामनाथ ने बेटा सुरेश को नम्र लहजे में कहा-‘बेटा हेलमेट नहीं लिया?’
‘अभी आ रहा हूं पिताजी। चंद फासले की दूरी पर जाना है।’ इतना कह सुरेश ने गाड़ी को किक मारा और अपने पिता के बातों को नज़रअंदाज कर अपने धुन में मस्त फुर्र से निकल गया।
‘खैर जो करना है करो, हम तो कहेंगे भले के लिए। हेलमेट पहनने से केश का डिजाइन जो बिगड़ जाएगा।’
उसके पिता कुछ और कहते इसके पहले ही सुरेश की मां विफर पड़ी। ‘क्या झूठ-मूठ का लफड़ा झाड़ते रहते हो।’
‘अरे इसे लफड़ा कह रही हो सुरेश की मां।’ वह विनम्र लहजे में बोले- ‘होनी को तो टाला नहीं जा सकता। परंतु अपने तरफ से सावधान व सतर्क रहना तो ज़रूरी है।’
‘सुरेश हमेशा सतर्क रहता है खास कर वाहन चलाते समय।’ मां ने सुरेश का पक्ष ली।
‘गाड़ी चलाने के लिए कुछ नियम, कायदे-कानून भी तो है...’
‘ये कायदे कानून अनुशासन तुमको ही मुबारक।’
‘सुरेश की मां तुम उसको शह देकर बहुत गलत कर रही हो। भले के लिए कहने पर मेरी बातें तुम दोनों को जहर बुझे तीर की तरह लगती है।’
‘अच्छा अब बकबक ही करते रहोगे या खाओगे पियोगे भी। सूरज सर पर सवार हो गया है। एक बज रहा है।’
‘चलो खा लेते हैं।’ इतना कह वह उठ खड़ा हुए- ‘सुरेश दिनानुदिन बद होते जा रहा है। जरा नकेल टाइट रखो उसका।’
‘मेरे बेटे के लिए अपने मुख से बददुआएं न निकला करो जी। हां मैं कहे देती हूं।’ हल्के क्रोध के उपरांत जवाब दी सुरेश की मां।
‘आदत को देखते हुए ऐसे कड़वे शब्द निकल ही जाते हैं। तुम सतर्क होकर गाड़ी दौड़ने की बात करती हो। परन्तु रमन तो कह रहा था कि सुरेश भैया गलत ढंग से गाड़ी चलाते हैं।’ वह मुझसे कह रहा था कि सुरेश को सावधान होकर गाड़ी चलाने के लिए कहें। यह भी कह रहा था कि हम लोग ही उसको शह देते हैं। अब तुम्हीं बताओ इसका जवाब है तेरे पास?’
इस बार सुरेश की मां खामोश रह गई।
‘एक दिन की बात हो तो कोई बात नहीं। उसके पिता जी ने फिर कहना शुरू किया- ‘डॉक्टर नरेश का लड़का सुदर्शन भी यही बात दोहरा रहा था। रोज़-रोज़ का तो उसका यही नियम है। न सर पर हेलमेट न ड्राइविंग लाइसेंस और न ही सही सलामत गाड़ी का कागजात। आदत पड़ा चोर एक दिन पकड़ में आ ही जाता है। इतना कह खाना खाकर अचवन करने लगे थे।
भोजन के पश्चात अभी रामनाथ जी ओसारे में आकर बैठे थे कि महेश दौड़ता हुआ आया। उनका मन सशंकित हो उठा। महेश को कुछ कहने के पहले ही उतावले स्वर में वह बोल पड़े ‘क् ....क्या हुआ सुरेश को?’
‘ख...खुन।’ महेश हकलाते हुए बोला- ‘सुरेश भैया का एक्सीडेंट हो गया है। सर फट गया है। अस्पताल में भर्ती हैं।’
सुरेश के माता-पिता उसी समय हॉस्पिटल की ओर भागे।
सुरेश हॉस्पिटल के बिस्तर पर बेहोश पड़ा था। उसके कपड़े चिथड़े हो गए थे। खून से पूरा बदन लाल दिख रहा था।
उसके पिता तो कुछ क्षण के लिए संयम, धैर्य का प्रतिमूर्ति धारण कर निर्विकार बने रहे। परंतु मां का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था।
डॉक्टर के घंटे भर के अथक प्रयास से सुरेश को होश आया तो बिस्तर के समीप अपने माता-पिता को खड़ा देख उसका सर शर्म से झुक गया था।
‘पिताजी... मां ये क्या हो गया?’ सुरेश ने कराहते हुए कहा।
‘बेटा यह तुम्हारे करनी का फल है। जैसा किया वैसा फल मिला।’ काफी क्षण तक खामोश रहने के पश्चात उसके पिता का स्वर उभरा- ‘यदि तुम्हारे सर पर हेलमेट होता तो यह नौबत नहीं आती।’
‘ये आप क्या कह रहे हैं।’ उसकी मां रोते हुए बोली- ‘अब तो.... अभी सुरेश की मां कुछ और कहती इसके पहले ही वह बोल पड़ा- ‘पिताजी ठीक कह रहे हैं मां।’
 ‘बेटा कायदे कानून अनुशासन के अंदर ही मनुष्य को रहना चाहिए। ‘पिता जी समझाते हुए बोले- ‘जिस तरह युद्ध में जाने के पहले सिपाही अपने हथियार को देख लेता है वह हर मायने में सुरक्षित है कि नहीं। उसी तरह गाड़ी चलाने के पहले हेलमेट, ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ी के कागजात वगैरह देखकर ही रोड पर जाना चाहिए। लेकिन तुम बड़ों की बातों को नज़रअंदाज कर हमेशा अपने धुन में मस्त रहता था।’
‘मुझे माफ कर दीजिए पिताजी।’ सुरेश लगभग रोते हुए बोला- ‘आइंदे से आप लोगों का दिल नहीं दुखाऊंगा।’
और सचमुच उसे दिन के बाद से सुरेश कभी शिकायत का मौका नहीं दिया पहले ठोकर में ही वह संभल गया था।

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