पाटलिपुत्र बनाम पटना का आकर्षण

पटना के बारे में जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार इस नगर का इतिहास लगभग 3000 पुराना है। कुछ लोग इसे पटनदेवी से जोड़ते हैं तो कुछ के मतानुसार यह संस्कृत शब्द पत्तन से बना है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनिज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है।
पतितपावनी गंगा के किनारे सोन और गंडक के संगम पर बसा यह ऐतिहासिक नगर कभी पाटलिपुत्र तो कभी पाटलिग्राम, पुष्पपुर, कुसुमपुर और अजीमाबाद के नाम से जाना जाता था। औरंगजेब ने अपने पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में इस शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया था। वर्तमान नाम पटना शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ। वैसे यह नगर तीसरी सदी ईसापूर्व में शक्तिशाली मगध राज्य की राजधानी बना। अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त जैसे अनेक महान शासकों ने इस नगर का गौरव बढ़ाया।
यदि महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्य (चाणक्य) की चर्चा न की जाए तो पटना की बात अधूरी रहेगी। कौटिल्य ने यहीं रहकर अर्थशास्त्र की रचना कि विश्व प्रसिद्ध कथाएं पंचतंत्र के रचनाकार विष्णु शर्मा का भी इस नगरी से संबंध रहा है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक तथागत बुद्ध जिन्होंने अन्तिम दिन यहीं आसपास गुजरे थे, की भविष्यवाणी थी कि इस नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा लेकिन बाढ़ व आग का खतरा बना रहेगा। 
मौर्य-गुप्तकाल, मुगलों तथा ब्रिटिश काल से ही पटना एक प्रमुख वाणिज्यिक शहर रहा है तो पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष इसके ऐतिहासिक गौरव के मूक गवाह हैं। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना के आस-पास हैं सिक्खों के एक अत्यंत पवित्र स्थल पटना साहिब तो भी यहीं है। यह वह स्थान है जहां सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था। पुराने शहर में स्थित श्री हरमंदिर साहब में, जो सिक्खों के पांच प्रमुख तख्तों में शामिल है, देश-विदेश से लाखाें श्रद्धालु मत्था टेकने के लिए पहुंचते हैं। 
गुरु तेगबहादुर जी महाराज प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों की आध्यात्मिक, सामाजिक यात्रओं के बाद 1666 में पटना पधारे तो 22 दिसम्बर 1666 को यहीं गोबिन्दराय जी की जन्म हुआ। उन्हें जो वस्त्र सबसे पहले पहनाये गये थे वे आज भी गुरुद्वारा साहिब में देखे जा सकते हैं। बालक गोविंदराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा हुकुमनामा भी गुरुद्वारे में सुरक्षित है। 
गुरुजी के बचपन के कुछ वर्ष पटना में ही बीते। गुरु साहिब की वाणी से अतिप्रभावित पटना के श्री सलिसराय जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला बनवा दिया। भवन के इस हिस्से को मिलाकर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। वैसे अब आसपास के अनेक भवनों को श्रद्धालु संगतों के सहयोग से खरीदकर सराय और विशाल लंगर भवन बनाये गये हैं।
गांधी मैदान पटना की पहचान है। इस विशाल मैदान को अंग्रेजों के जमाने में पटना लान्स या बांकीपुर मैदान कहा जाता था। इस नगरी में होने वाली हर रैली, सम्मेलन ही नहीं पुस्तक मेला यहीं आयोजित किए जाते हैं तो हर सुबह हजारों लोग सैर और व्यायाम के लिए यहां आते है। इसके चारों ओर अति महत्त्वपूर्ण सरकारी इमारतें, प्रशासनिक तथा मनोरंजन केन्द्र आदि हैं। पास के एक चौराहे पर लगी भारतीय मूल के मारिशस के राष्ट्रपति की मूर्ति इस धरती के गौरव के सात समुद्र पार तक होने का प्रमाण है।
गांधी मैदान से कुछ दूरी पर गोलघर है। 29 मीटर ऊंची इस इमारत का निर्माण 1770 में आए भयंकर अकाल के बाद 1786 में उस समय के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्सि्टन से हजारों टन अनाज भंडारण के लिए करवाया गया था। पटना का प्रतीक बने इस गोलाकार भवन उर्फ गोलघर के आधार से शीर्ष तक दो तरफ बनी घुमावदार सीढ़ियों से ऊपर चढ़ सकते हैं। वैसे यहां इसका उपयोग अनाज भंडारण के लिए नहीं होता।
मुगल बादशाह अकबर की सेना 1574 में अफगान सरगना दाउद को कुचलने पटना आई थी। अकबर के नौरत्न और आइने-अकबरी के लेखक अबुल ़फजल ने इस स्थान को कागज, पत्थर तथा शीशे के औद्योगिक केन्द्र बताया है। आश्चर्य है कि यूरोप में चावल के प्रसिद्ध नस्लों में पटना राइस का नाम आता है। 1620 में  अंग्रेज़ों ने यहां रेशम तथा कैलिको उद्योग की स्थापना की जिससे साल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन कर फ्रेंच और डच लोगों की प्रतिस्पर्धा का केन्द्र भी बन गया। बक्सर की लड़ाई के पटना पर ईस्ट इडिया कंपनी का अधिकार हो गया। हाँ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी इस नगर की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। (उर्वशी)