हवा-हवाई नहीं है ‘चार सौ पार’ की भाजपाई महत्वाकांक्षा

जब 23 करोड़ मतदाताओं के समर्थन से भाजपा को 303 सीटें मिल सकती हैं तो यदि उसने सिर्फ 7 करोड़ मतदाताओं का समर्थन और जुटा लिया तो 378 या कहें कि 75 अन्य सीटें क्यों नहीं हासिल कर सकती? वास्तव में भाजपा बड़े आराम से अपनी सीटों में 75 का इजाफा कर सकती है यानी यह इतना असंभव नहीं है, जितना कि विपक्षी बुद्धिजीवी इसे अपने भारी-भरकम मेहनत से किये गए विश्लेषणों से बनाये देने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा विरोधी बुद्धिजीवी जिस तरह से अनगिनत किंतु-परन्तु ढूंढकर इसे असंभव दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं, इससे विपक्षी राजनीतिक दल, उनके कट्टर समर्थक और खुद वे भले तात्कालिक तौर पर खुश हो लें, लेकिन इससे भाजपा का कुछ नहीं बिगड़ेगा उल्टे उसे फायदा होगा। 
पूरे देश और विपक्ष के मन में इस समय एक ही सवाल और जिज्ञासा है कि लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा 400 के पार कैसे निकलेगी या निकल भी पायेगी? यह देखना दिलचस्प तो होगा, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं। विपक्ष के पास अभी तक तो भाजपा को रोकने की न तो कोई तैयारी है, न ही कोई ठोस योजना है, न मनोबल। दूसरी तरफ भाजपा और उसका आत्मविश्वास से भरपूर बूथ स्तर का कार्यकर्ता मैदान पकड़ चुका है। उसका तो ध्येय वाक्य ही है, अपने बूथ पर 370 मतदाता बढ़ाना। यह एक ऐसा आंकड़ा है, जो केवल भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि देशवासी से भी भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। इसका सीधा संबंध जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति से होने के कारण यह हर भारतीय के मन में शंखध्वनि की तरह गुंजायमान होता है।
भाजपा के रणनीतिकारों के बीच से कार्यकर्ताओं तक पहुंचे संदेश के अनुसार 400 पार का लक्ष्य असंभव नहीं है। उसे एक बूथ पर 370 मतदाता अपने पक्ष में बढ़ाने की जो ज़िम्मेदारी दी गई है, वह बेहद सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा है। पहले तो इस पर बात कर लें कि भाजपा 370 या 400 के पार कैसे निकलेगी? भाजपा के लिये यह कोई शेखचिल्ली का सपना नहीं है। भाजपा की कार्यपद्धति की जो भी थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं,वे समझ सकते हैं कि संघ पृष्ठभूमि वाले राजनीतिक दल भाजपा को संस्कार, सीख, समझ और सलाह भी संघ से निरन्तर मिलती ही है। उस अनुशासन व कार्य प्रणाली की वजह से चुनावी तैयारियां भी भाजपा समय पूर्व करती है। उसी के मद्देनज़र भाजपा ने सबसे पहले वे सीटें चिन्हित की हैं, जो पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में हारे थे। ऐसी 146 सीटें हैं, जहां भाजपा दूसरे क्त्रम पर रही थी। उन सीटों पर अतिरिक्त ध्यान केंद्रित कर भाजपा सीटें बढ़ाने पर जोर दे रही है।
अब संभवत: आप भाजपा की इस घोषणा (400 पार) व लक्ष्य के पीछे की मंशा को ठीक से समझ सकेंगे। इस बार टिकट वितरण से लेकर तो प्रत्येक बूथ पर 370 मतदाता बढ़ाने के अभियान के पीछे की भावना का आकलन कर सकेंगे। भाजपा ने अपने करीब 35 प्रतिशत (101) वर्तमान सांसदों के टिकट काटकर नये चेहरों को मौका दिया है। पिछली बार भी अपने इसी तरीके से वह 272 सीटों से 303 तक पहुंच चुकी है। कहने का मतलब यह है कि उसे पिछली बार भी कमज़ोर, अलोकप्रिय, विवादित, उम्रदराज या ऐसे ही किसी कारण से प्रत्याशी बदलने का लाभ मिला था, यह सच हमें स्वीकारना होगा। इन्हीं कारणों से इस बार भी बदले गये प्रत्याशियों का उसे फायदा मिलेगा,ऐसा प्रारंभिक अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। इस पर अंतिम और प्रामाणिक मुहर तो जनता ही लगायेगी।
भाजपा को इस बात पर पूरा भरोसा है कि 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का स्वाभाविक लाभ उसे विशेष तौर से हिंदीभाषी इलाकों यथा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड सहित गुजरात, महाराष्ट्र, ओड़िसा, हिमाचल, पंजाब, व कर्नाटक में भी मिलेगा जबकि अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये वह पहले से ही आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल आदि में ज़बरदस्त अभियान छेड़े हुए है। भाजपा को आशा है कि वह दक्षिण भारत में भी इस बार उल्लेखनीय सीटें बढ़ा लेगी। यह चुनाव देश के जनमानस पर राम मंदिर के निर्माण के असर को भी रेखांकित करेंगे। यह कोई ऐसी घटना नहीं है, जिसका असर तात्कालिक तौरपर ही हो। भाजपा ने पूरे मनोयोग और योजनाबद्ध तरीके से इस बात को जन-जन के मन तक पहुंचाने का अभियान चलाया है कि देश में इस समय सनातन मूल्यों की ध्वज वाहक सरकार है, जो बहुसंख्यक वर्ग के हितों को संरक्षित करेगी।
इस एक बात से तो देश-दुनिया के तमाम राजनीतिक विश्लेषक और अंतरिक तौर पर विपक्षी दल भी सहमत होंगे कि केंद्र में तीसरी बार भी भाजपा की सरकार बनेगी,जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। बस, देखना इतना भर है कि 400 के जादुई आंकड़े को छू पाती है या नहीं? भाजपा की कार्यप्रणाली में मुगालते को कोई स्थान नहीं होता है। उत्साह के अतिरेक से भी वह बचती है। फिर,कोई लाख उसके 400 पार के दावे की हंसी उड़ाये, लेकिन उसके रणनीतिकारों का मानना है कि भाजपा का कार्यकर्ता बड़े लक्ष्यों के साथ ही काम करता है और उसने लोकसभा में 2 सीटों से 303 सीटें भी हासिल करके बताया ही है। कुछ आंकड़ेंबाज यह भी कहते हैं कि देश में करीब 10 लाख बूथ पर यदि भाजपा प्रत्येक पर 370 मतदाता बढ़ा लेगी यो क्या वह 37 करोड़ अतिरिक्त मतदाता के समर्थन की उम्मीद करती है जबकि 2019 के चुनाव में भाजपा को 23 करोड़ मत ही मिले थे। इस बारे में मेरा यह मानना है कि जब 23 करोड़ मतदाताओं के समर्थन से भाजपा को 303 सीटें मिली थी, तब 37 करोड़ न सही, यदि 7 करोड़ जनता का समर्थन भी उसने बढ़ा लिया तो भाजपा की 75 सीटें बढ़ सकती है। क्या यह उतना मुश्किल आंकड़ा है? यानी 370 पार तो वह हो ही सकती है। साल 2024 के चुनाव में करीब 96 करोड़ मतदाता होंगे। यदि मतदान 70 प्रतिशत रहा और भाजपा को 30 करोड़ ( 37.5 प्रतिशत) मत भी मिले तो वह अपने लक्ष्य को पा लेगी।
खैर, चुनाव परिणाम से पहले इन सारे मसलों पर चिंतन तो किया ही जा सकता है। भाजपा के पास जहां इस जादुई आंकड़े को छूकर सफलता पाने का स्वर्णिम अवसर है, तो वहीं विपक्ष के पास उसके अश्वमेध के रथ को रोकने के भी पर्याप्त मौके हैं ही। जो जितना सामर्थ्यवान होगा, वह उतना सफल होगा। इस बार के चुनाव परिणाम हर हाल में एक नये भारत का उदयकाल साबित होंगे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर