इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर उठते सवाल 

लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी हैं कांग्रेस सहित देश के तमाम राजनीतिक दलों ने इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन  (ईवीएम) की विश्वसनीयता पर पुन: सवाल उठाने शुरू कर दिये हैं। 1999 से लगातार चुनाव आयोग द्वारा इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन का उपयोग लोकसभा निर्वाचन और राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचन मे किये जाने और इस दौरान वोटिंग मशीन मे कोई भी गड़बड़ी न पाये जाने के बावजूद भारत के विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम पर शक और संशय व्यक्त किया जा रहा है। 
2023 में कुछ राज्यों मे हुए मतदान पर कांग्रेस हिमाचल और तेलंगाना राज्य के चुनावों में ईवीएम पर प्रश्न नहीं उठाती  जहां पर इनकी सरकारें निर्वाचित हुई हैं। सवाल और संदेह छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों की वोटिंग मशीन पर है जहां पर इन्हे बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी और सत्ता से वंचित होना पड़ा। एक बार फिर से कांग्रेस सहित ‘इंडिया’ गठबंधन के अन्य सदस्यों ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा 16 मार्च, 2024 को लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से मतदान पर संदेह उठा कर इसकी जगह मत पत्रों से चुनाव कराने की मांग शुरू कर दी है।
यूं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह इंजीनियरिंग विषय से स्नातक हैं, परन्तु उनका यह कथन कि उन्हे ईवीएम पर भरोसा नहीं, वह 2003 से ही मांग कर रहे हैं कि चुनावी मतदान ईवीएम की जगह मत पत्रों से किया जाये। उनका मानना है कि किसी भी चिप वाली मशीन को हैक किया जा सकता है। उनके इस ज्ञान और कौशल ने विज्ञान और तकनीकी विषय पर बड़ा सवालिया निशान लगाया है। बसपा से अमरोहा के सांसद 2019 मेें स्वयं वोटिंग मशीन से हुए चुनाव में जीते लेकिन ईवीएम के बारे मे बारे में लम्बे समय से उठाए जा रहे सवाल के समर्थक हैं।  
यह बात भी उतनी ही सही है कि 2009 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण अडवाणी ने कई राज्यों में चुनावी हार के बाद ईवीएम पर सवाल किये। इसी तरह 2014 मे जब भाजप रिकार्ड मतों से चुनाव जीती तो असम के तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री ने सबसे पहले ईवीएम पर शंका ज़ाहिर की। 2017 में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो ईवीएम पर चुनाव आयोग को घेरा। उनके विधायक सौरभ भारद्वाज ने ईवीएम को खुले आम हैक का डेमो दिया, परन्तु चुनाव आयोग की चुनौती का सामना न कर सके। 2017 में उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनावों में हार का मुंह देखने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजप की जीत के लिए ईवीएम से छेड़-छाड़ को ज़िम्मेदार ठहराया। 2017 में ही गुजरात के विधानसभा चुनावों के नतीजों के पूर्व ही राजनीति मे नए-नए आए पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने तो भाजपा की जीत का श्रेय ईवीएम को देने का हल्ला ज़ोर शोर से उठाया। 
विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के आरोपों के जवाब मे चुनाव आयोग द्वारा सभी दलों को मई 2017 में अपने दावों को साबित करने तथा वोटिंग मशीन को हैक करने की खुली चुनौती दी। 12 मई, 2017 को ईवीएम के बारे में मिली शिकायतों के संबंध मे आयोजित सर्वदलीय बैठक के बाद चुनाव आयोग ने खुली चुनौती देते हुए मई माह के 10 दिनों तक किसी भी राजनीतिक दल, उसके विशेषज्ञ, इंजीनियर या तकनीशियन को मशीन हैक करने के प्रदर्शन करने का खुला आमंत्रण दिया। यही नहीं, चुनाव आयोग ने मशीन को खोलकर उसमे कांट-छांट कर छेड़-छाड़ कर के हैक करने की चुनौती दी। इस हेतु 12 विधान सभाओं मे इस्तेमाल की गयी 14 मशीनों को हैक करने के लिए उपलब्ध कराया था लेकिन चुनाव आयोग की इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए कांग्रेस सहित ज़्यादातर राजनीतिक दल तैयार नहीं हुए। हां, दो दलों—एनसीपी और सीपीएम  ने चुनौती तो स्वीकार की परन्तु हैक करने में अपनी अक्षमता और असमर्थता प्रकट की।
जब सपा सहित अनेक राजनीतिक दल ईवीएम में किसी भी तरह की गड़बड़ी पकड़ने में असफल रहे तो ईवीएम मशीन के स्टोर करने, स्ट्रॉंग रूम मे रखने की प्रक्रिया पर ही सवाल शुरू कर दिये। अभी तक हर ज़िले की कुछ ईवीएम मशीनों पर वीवीपीएटी अर्थात मतदाता द्वारा प्रमाणित मत पत्र पर्ची का मिलान ईवीएम मशीन से कराये जाने का प्रावधान चुनाव आयोग द्वारा किया जाता हैं। 
पिछले चुनावों मे इन मत पत्र पर्ची का मिलान ईवीएम मशीन के मतदान आंकड़ों से 100 प्रतिशत तक सही पाया गया लेकिन विपक्षी दलों का 100 प्रतिशत ईवीएम मशीन के आंकड़ों का मिलान वीवीपीएटी से कराने की मांग बेतुकी और अव्यवहारिक है क्योंकि तब चुनावी प्रक्रिया मेें मशीन के आंकड़ों और मतदान पर्ची दोनों से ही मतदान की गिनती कराई जाएगी अर्थात वही पुरानी प्रक्रिया जो कि काफी समय लेने वाली प्राचीन चुनावी कार्यप्रणाली ही होगी। (अदिति)