भारत के चुनाव और पड़ोसी देश

भारत में चुनावी बुखार तेज़ी से चढ़ना शुरू हो गया है। भीषण गर्मी के मौसम में होने जा रहे इन चुनावों ने माहौल में गर्मी के साथ-साथ बेहद कटुता भी पैदा कर दी है। इस दौरान अलग-अलग पार्टियों के बड़े से बड़े नेता एक-दूसरे पर कई प्रकार के गम्भीर आरोप लगा रहे हैं। इस पक्ष से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नेताओं ने विपक्ष के खिलाफ अपनी बयान रूपी तोपों के मुंह पूरी तरह खोल दिये हैं। इन नेताओं द्वारा लोगों को हर प्रकार से भावुक करने के लिए कई दूसरे देशों को भी कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। इस संबंधी अमरीका तथा कनाडा में बैठी खालिस्तानी लॉबी भी उनके निशाने पर है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने वर्ष 1974 में भारत द्वारा आपसी समझौते के आधार पर श्रीलंका को दिये गये एक छोटे से द्वीप कच्चातीवू संबंधी भी तत्कालीन प्रमुख नेताओं के साथ-साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा श्रीमती इंदिरा गांधी को भी निशाने पर लिया है। इसी क्रम में पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की पाकिस्तान के संबंध में की गई टिप्पणी को भी देखा जा सकता है। पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध इस समय बेहद खराब दौर से गुज़र रहे हैं। चाहे वहां बनी नई सरकार ने भारत के साथ मिल कर चलने के लिये भी बयान दिये हैं, परन्तु दोनों देशों में आपसी संबंध इस सीमा तक बिगड़ चुके हैं कि शीघ्रता में इन्हें राह पर लाना अभी बहुत कठिन ही प्रतीत होता है। जहां तक आपसी सहयोग तथा व्यापार का संबंध है, पड़ोसी होने के बावजूद यह बहुत कम हो चुका है। 
हम इसके लिए बड़ी सीमा तक पाकिस्तान को ज़िम्मेदार समझते हैं, जिसने कश्मीर के मामले को लेकर भारत को अक्सर रक्त-रंजित किये रखा है। विगत कई दशकों से उसकी धरती पर प्रशिक्षण लेकर तथा आधुनिक हथियार प्राप्त करके ये आतंकवादी संगठन प्रतिदिन भारत की प्रभुसत्ता को चुनौती दे रहे थे। अब तक इस मामले पर दोनों देशों की आपस में हुई लड़ाइयों प्रतिदिन चल रही रक्तिम कशमकश में कुल मिला कर जहां लाखों ही लोग मारे जा चुके हैं, वहीं दोनों देशों का इस आपसी संघर्ष में अब तक खरबों रुपये का नुकसान हो चुका है, जिससे इनकी आर्थिकता तथा विकास पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है। भारत तो लगातार अपनी तत्कालीन सरकारों के यत्नों से इस अवस्था से उभरने का यत्न करता रहा है और बड़ी सीमा तक वह सफल भी हुआ है, परन्तु पाकिस्तान आज अपने ही बुने ताने-बाने में न सिर्फ पूरी तरह उलझ ही चुका है, अपितु आज उसकी हालत आर्थिक पक्ष से बेहद दयनीय हो चुकी है। एक प्रकार से वह भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है, जिसमें से निकल सकना उसके लिए बेहद कठिन है। हम समझते हैं कि भारत की ओर से भी अब पुन: ऐसे यत्न किये जाने की ज़रूरत होगी जो आपसी तनाव को कम करने में सहायक हों, परन्तु सत्तारूढ़ भाजपा को ऐसा प्रतीत होता है कि चुनावों के गर्माये माहौल में पाकिस्तान के खिलाफ निर्धारित नीति एवं सोच के तहत बयानबाज़ी करने से चुनावों में उसे लाभ हो सकता है। इसी दिशा में पिछले दिनों रक्षा मंत्री के इस बयान को देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने यह कहा कि यदि आतंकवादी कार्रवाइयां करके पाकिस्तान में भाग जाते हैं, तो हम भी उन्हें पाकिस्तान में घुस कर मारेंगे। इस बयान पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह कहा है कि उसने हमेशा शांति के लिये अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह अपनी प्रभुसत्ता की रक्षा नहीं कर सकता। वहां के विदेश मंत्रालय ने यह आरोप भी लगाया कि भारत की ओर से ऐसे बयान चुनावों में लाभ प्राप्त करने के लिये दिये जाने लगे हैं और यह भी कि पाकिस्तान के भीतर भारत द्वारा घोषित आतंकवादियों के विरुद्ध विगत समय में की गई कार्रवाइयों में भी भारत की शमूलियत साफ दिखाई देती है। लगभग पिछले एक वर्ष से भारत के खिलाफ लगातार कार्रवाइयां करने वाले पाकिस्तान में रह रहे आतंकवादियों पर अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा हमले करके उन्हें मारा जाता रहा है। 
विगत वर्ष मई मास में खालिस्तान कमांडो फोर्स का प्रमुख परमजीत सिंह पंजवड़ जो कई दशकों से पाकिस्तान में रह रहा था, की लाहौर में हत्या कर दी गई थी। इसी प्रकार भारत द्वारा घोषित किये गये जिन आतंकवादियों की समय-समय पर हत्या की गई थी, उनमें हफीज़ सैय्यद के करीबी मुल्ला सरदार हुसैन अरेन के अतिरिक्त मुहम्मद रियाज़ उर्फ अब्बू कासिम कश्मीरी तथा हिज़बुल कोआर्डिनेटर ज़िया-उर-रहमान, लश्कर-ए-तायबा का सरगना मुफ्ती केसर फारूख तथा पठानकोट सैन्य हवाई अड्डे पर हमले के लिए नामज़द शाहिद लतीफ आदि शामिल हैं। पाकिस्तान में इन आतंकवादियों की हत्याओं ने बहुत चिन्ता पैदा कर दी है, परन्तु पाकिस्तान अब तक लगातार अपनी सेना की शह पर इन आतंकवादी संगठनों के माध्यम से प्रत्येक ढंग-तरीके से भारत पर हमला करवाने की कोशिशें करता रहा है। आज चाहे दोनों देशों के संबंध कैसे भी हों, चुनावों के दौरान ऐसी बयानबाज़ी किये जाने से दोनों देशों के आपसी विरोध में और भी वृद्धि होगी, परन्तु हमारी राय है कि चुनावों के बाद आने वाली किसी भी सरकार की पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारना प्राथमिकता होनी चाहिए।
   


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द