गर्मी के मौसम में फलों की सफल काश्त करने संबंधी कुछ सुझाव

ग्रीष्म ऋतु आ गई है। आगामी दिनों में तापमान के 38-42 डिग्री सैंटीग्रेड तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। बागबान तथा घरेलू स्तर पर बागीचियों में फलों के पौधे लगाने वाले व्यक्ति घबराहट में हैं कि प्रत्येक वर्ष की भांति फलों पर कीड़े-मकौड़ों तथा बीमारियों का हमला होगा, जिससे फल जल्दी गल-सड़ जाएंगे। बागबानों को मंडी में भी उनका सही मूल्य नहीं मिलेगा। फल फटने की अधिक समस्या गर्म ऋतु में आती है या घरेलू स्तर पर वहां जहां फलदार पौधे घरों की दीवारों के निकट लगे होते हैं। ऐसे स्थानों पर गर्म हवाएं आम तौर पर उन पौधों को प्रभावित करती हैं, जिसके  बाद फल फट जाते हैं। 
गर्मियों में ज़मीन तथा पौधों से पानी का वाष्पीकरण अधिक होता है। पानी की कमी के कारण फलों का छिलका सख्त हो जाता है। जब पौधे को तुरंत पानी मिलता है आर्टीफिशियल सिंचाई के रूप में या बारिश होने के रूप में, पानी अधिक आने के बाद ऐसे समय में पौधों की जड़ें पानी अधिक मात्रा में अपने में समा लेती हैं। इसके परिणामस्वरूप फलदार पौधा एकाएक बढ़ना शुरू हो जाता है और छिलका सख्त होने के कारण फल फट जाता है। फल फटने की समस्या बड़ी गम्भीर है। कई घरेलू स्तर पर पौधे लगाने वाले व्यक्तियों ने बताया कि कीटनाशकों का स्प्रे करने के बाद भी यह समस्या हल नहीं होती। उन्हें कौन-सी दवाई का स्प्रे करना चाहिए, इस संबंध में भी पता नहीं होता और न ही कहीं से नेतृत्व मिलता है। परिणामस्वरूप फल फट जाते हैं और बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। 
बागबानी विभाग के सेवा-निवृत्त डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि फल सिर्फ गर्मी के मौसम में गर्मी के कारण ही नहीं फटते, उनके फटने का कारण पौष्टिक तत्वों की कमी भी होती है, जैसे कैल्शियम, पोटाशियम तथा बोरान की आवश्यक मात्रा पौधे को न मिलना। रेतली ज़मीनों में तो यह कमी और भी अधिक होने के कारण पौधों को प्रभावित करती है। घरेलू स्तर पर तो यह समस्या और भी बड़ी बात है, क्योंकि मकान बनाते समय रेतली मिट्टी के भरत पड़ते हैं और रेतली मिट्टी में इन तत्वों की कमी अधिक होती है। डा. मान एक और कारण बताते हैं कि फलदार पौधों पर कीड़े-मकौड़ों तथा बीमारियों का हमला होना तथा बागबानों को पौध सुरक्षा की जानकारी न होने के कारण भी फलों का खराब होना या फटना भी संभव है। 
डा. मान तथा बागबानी विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार अब गर्मी में आम, अनार, लीची, अमरूद तथा नींबू जाति के फलदार पौधों के फलों को फटने से बचाने के लिए अब अप्रैल, मई और जून के महीने में पौधों को पानी नियमित तौर पर देना चाहिए। अमरूद तथा नींबू जाति के 3-4 वर्ष के पौधों को सप्ताह-सप्ताह के अंतराल से तथा इन्हीं फलों के पुराने पेड़ों को 15 दिनों के बाद पानी देना सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए। आम तथा अनार के पौधों को 10-12 दिन के बाद पानी देना चाहिए। लीची के पौधों को गर्मी के मौसम के दौरान सप्ताह में दो बार पानी देने की सिफारिश की गई है, परन्तु यदि इस दौरान बारिश हो जाए या अधिक अधिक वर्षा हो जाए तो काफी हद तक पानी कम कर देना चाहिए और अधिक बारिश होने की स्थिति में परहेज़ ही करना बेहतर होगा। घरेलू स्तर पर पौधों के फल फटने से रोकने के लिए सुबह-शाम पानी का छिड़काव किया जा सकता है। 
घरेलू स्तर पर तो फलदार पौधे दीवार से 10-12 फुट की दूरी पर लगाए जाएं। इसके अतिरिक्त ‘ग्रीन शैड नैट’ का इस्तेमाल करना भी लाभदायक रहेगा। बाग लगाते समय बागों के आस-पास बागबानों को हवा रोकने वाली बाड़ जैसे आम, जामुन, बिल्ल तथा शहतूत आदि के पेड़ लगा देने चाहिएं। ये पेड़ गर्मियों की गर्म हवाओं को और सर्दियों की सर्द हवाओं से फलदार पौधों को बचाएंगे। पौधे लगाते समय फल की सही किस्म का चयन करना ज़रूरी है, जैसे लीची की कलकत्तिया किस्म, अनार की गणेश या कंधारी किस्म तथा आम की अम्रपाली, मल्लिका, अरुणिमा, श्रेष्ठ, प्रतिभा, लालिमा, पितम्बर, सूर्या आदि किस्में लगानी चाहिएं। पौधों में सिफारिशशुदा अंतर रखना चाहिए, जैसे मल्लिका आम में 6 मीटर * 6 मीटर, अम्रपाली में 2.5 मीटर * 2.5 मीटर तथा अरुणिमा, सूर्या किस्मों में 6 मीटर * 6 मीटर अंतर रखा जाए। अर्ध पहाड़ी क्षेत्रों में आम, लीची तथा नींबू के फल सफलता से लगाए जा सकते हैं। पटियाला ज़िले में अमरूद सफलता से लग सकता है। नाशपाती के बाग अमृतसर और तरनतारन ज़िलों में तथा नींबू जाति के पौधे फिरोज़पुर और फाज़िल्का ज़िलों में अधिक सफल रहेंगे। 
फलदार पौधों में पौष्टिक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए ज़िंक सल्फेट 1.5 प्रतिशत, कॉपर सल्फेट 0.1 प्रतिशत, बोरैक्स 0.1 प्रतिशत तथा केल्शियम हाईड्रोऑक्साइड एक प्रतिशत का स्प्रे फल के विकसित होते समय कर देना चाहिए। इसके  अतिरिक्त फलदार पौधों को समय पर रासायनिक खाद तथा रूढ़ी की खाद एवं केंचुए की खाद अवश्य डाल देनी चाहिए। ऐसा करने से फल बीमारियों से भी बचे रहेंगे, उनके फटने की समस्या भी कम होगी और उत्पादन के रूप में फलों की संख्या भी अधिक मिलेगी। फलों के पौधों पर बागबानी विशेषज्ञों की सलाह से कीटनाशक तथा फफूंदनाशक दवाई का स्प्रे तो करना ही पड़ेगा, ताकि फलों को पूरी तरह स्वस्थ बनाया जा सके।