भाजपा से ज्यादा तो प्रशांत किशोर कर रहे ममता पर हमले

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी तेज़ हो चुका है। एक तरफ अगर प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार सत्ता में लौटने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ  विपक्ष भी कड़ी टक्कर देने की कोशिश में है। इस बार बंगाल में भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए ममता ने पूरी तरह से घेराबंदी कर रखी है। इस बीच रणनीतिकार प्रशांत किशोर का एक बयान चर्चा का विषय बन गया है। कहने को समय-समय पर उनकी तरफ से विपक्ष को सुझाव दिए जाते हैं लेकिन इस बार जिस अंदाज में उन्होंने बंगाल में ममता को घेरा है, उसके अलग ही मायने निकाले जा रहे हैं कि क्या वे ममता से अपना बदला निकाल रहे है या भाजपा का प्रचार।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही प्रशांत किशोर ने बयान दिया था कि पश्चिम बंगाल में भाजपा राज्य की सत्ता में बैठी टीएमसी से बेहतर परफॉर्म करेगी। भाजपा पश्चिम बंगाल में सबसे बड़े दल के तौर पर उभरेगी, चौंकाने वाले रिजल्ट के लिए तैयार रहिए। ज्ञात हो कि प्रशांत किशोर विधानसभा चुनाव के दौरान टीएमसी के रणनीतिकार रहे। तब उन्होंने ऐलान किया था कि भाजपा बंगाल में 100 विधानसभा सीट नहीं जीत पाएगी और उनकी भविष्यवाणी सही निकली। दावों के बावजूद भाजपा 77 सीट ही जीत सकी और टीएमसी ने 212 सीटों जीतकर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया। लोकसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी चुनावी पंडितों को भी चकरा रही है। गरीबों को मुफ्त राशन, चुनाव से पहले सीएए लागू होना और बंगाल में इंडिया गठबंधन में दरार के कारण बंगाल में चुनावी उलट-पुलट भी संभव है हालांकि टीएमसी का दावा है कि इस बार भाजपा 2019 से कम सीटें जीतेंगी।
सवाल यह उठता है कि आखिर प्रशांत किशोर ये बातें किस आधार पर कह रहे हैं क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद बंगाल में भाजपा के लिए परिस्थितियां ठीक नहीं रही हैं। चाहे विधानसभा चुनाव हों या स्थानीय निकाय चुनाव सभी में भाजपा की दुर्गति हुई है। उपचुनावों में भी भाजपा को टीएमसी ने पस्त कर दिया। भाजपा के तमाम कद्दावर नेता, मंत्री तक पार्टी छोड़कर टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। तो आखिर किशोर को उम्मीद की किरण कहां से दिख रही है? आइए जानते  हैं कि क्यों प्रशांत किशोर की बातें सच हो सकती हैं?
कहा जाता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा इतिहास रचने को तैयार थी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत आक्षेप भारी पड़ गया था और अंतिम समय में बाजी पलट गई थी। ममता के लिए प्रधानमंत्री मोदी का कहा गया संबोधन ‘दीदी ओ दीदी’ को टीएमसी ने मां-माटी और मानुष के अपमान का मामला बना दिया और देखते ही देखते टीएमसी भाजपा पर भारी पड़ गई। इस बार भाजपा ने रणनीति बदल दी है। ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं किया जा रहा है। हर बात के लिए टीएमसी को जिम्मेदार माना जा रहा है। प्रधानमंत्री अपनी रैलियों में ममता बनर्जी को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतते दिख रहे हैं। भाजपा के अन्य नेता भी ममता के खिलाफ अपमानजनक चुटकुले और संवेदनशील आरोप लगाने से बच रहे हैं ।
अनंत राय राजबंशी समुदाय से आते हैं। मतुआ के बाद ये पश्चिम बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय है। अनंत राय को उम्मीदवार बनाने से भाजपा की उत्तरी बंगाल में अच्छी-खासी पकड़ बन गई है क्योंकि वहां राजबंशी समुदाय का अच्छा-खासा दबदबा है। उत्तरी बंगाल की आठ में से चार लोकसभा सीटों पर राजबंशी ही जीतते रहे हैं। 2019 में भाजपा ने इनमें से सात सीटें जीती थीं। पार्टी को उम्मीद है कि इस बार आठों सीट भाजपा जीत सकेगी।
राज्य में ‘इंडिया’ गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ रही टीएमसी ने अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा को मजबूत होने का एक और अवसर दे दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में ‘इंडिया’ गठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने के टीएमसी के फैसले के चलते टीएमसी विरोधी वोट भाजपा को मिलेंगे। इसके अलावा वोट बंटने का भी फायदा भाजपा को मिल सकता है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ टीएमसी के युसूफ पठान ताल ठोंक रहे हैं। पठान सेलेब्रेटी क्रिकेटर भी हैं और मुसलमान भी हैं। ऐसे में अगर वोट बंटता है तो किसका फायदा होगा। जाहिर है दोनों की लड़ाई में भाजपा अगर मजबूत कैंडिडेट उतारती है तो यहां से जीत भी सकती है।
सीएए बंगाल में भाजपा का चुनावी वादा रहा है। अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री तक ने बंगाल में सीएए लागू करने की बात करते रहे हैं। शायद यही कारण है कि भाजपा ने कानून को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। सीएए लागू होने का सबसे बड़ा फायदा बंगाल में मतुआ समुदाय को मिलेगा। मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि मतुआ वोट जहां भी जाता है उसका पलड़ा भारी पड़ जाता है। बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ समुदाय के मतदाता हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। पश्चिम बंगाल के नादिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना ज़िलों की कम से कम चार लोकसभा सीट में यह समुदाय निर्णायक है। मतुआ समुदाय की तरह राजवंशी समुदाय को भी सीएए का लाभ मिलने वाला है। राजवंशी भी हिंदू हैं। 1971 के बाद से इन लोगों को अब तक नागरिकता नहीं मिली है। इस तरह करीब 10 से 12 सीटों पर सीधे भाजपा बढ़त बनाती दिख रही है। हिंदुओं में अनुसूचित जाति के राजबंशी, मतुआ और बाउड़ी, जो राज्य की जनसंख्या के करीब 23 प्रतिशत हैं, इस बार और बड़े पैमाने पर भाजपा के पक्ष में वोट कर सकते हैं। 
पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं का विशेष महत्व रहा है, शायद यही कारण है कि सीपीएम से लेकर टीएमसी तक तुष्टिकरण की राजनीति करती रही है। भाजपा ने पहली बार राज्य में अलग तरह की राजनीति की है जिसके चलते पिछले चुनावों में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है। राज्य की हिंदू जनसंख्या कुल आबादी का लगभग 71 प्रतिशत है। लोकसभा चुनाव 2019 में बड़ी संख्या में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। कई सर्वेक्षणों के अनुसार करीब 55 प्रतिशत हिंदू वोट भाजपा के पक्ष में गए। शायद यही कारण है कि इस बार भाजपा भावनात्मक मुद्दे पर ही ़फोकस्ड  है। भाजपा सांसद और राज्य के पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि राम मंदिर के मुद्दे ने पहले भी भाजपा को फायदा पहुंचाया है और इस बार भी यह पश्चिम बंगाल समेत देशभर के हिंदुओं को एकजुट करने में हमारी मदद करेगा। सीएए के चलते भी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण और अधिक होने की उम्मीद है।