चुनाव से पहले ही जीत का बिगुल

किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाने तक किसी एक पार्टी की जीत के बारे में घोषणाएं बेमानी कही जा सकती हैं क्योंकि अंतिम क्षणों तक यह अनिश्चित रहता है कि जनता किसको मौका दे रही है या किसका मौका छिन रहा है। भारत विशाल देश है। यहां 96 करोड़ मतदाता हार-जीत का फतवा जारी करते हैं वह भी 12 लाख मतदान केन्द्रों पर। आज तक जितने भी चुनाव हुए हैं अनिश्चय की तलवार अंत तक लटकी रही है परन्तु यह दृश्य पहली बार देखने में आ रहा है। (ज़ोरदार चर्चा के कारण) कि भाजपा को तीसरी बार जनता चुन सकती है और नरेन्द्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बनने की शपथ ले सकते हैं।  यदि 2019 से 2024 की मुख्य घटनाओं का आकलन करें तो हालात एकदम से खुशगवार भी नहीं रहे हैं। विपक्ष के अनेक नेता ईडी और सी.बी.आई. जैसे संस्थान के दुरुपयोग की बात विभिन्न मंचों से उठा रहे हैं और जनता को सावधान कर रहे हैं कि लोकतंत्र की व्यवस्था ़खतरे में है। गलवान में चीन की आक्रामकता के कारण हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न-चिन्ह लगाये जा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से कार्पोरेट्स द्वारा इलैक्ट्रोरल बान्डस के माध्यम से पैसा देने के बाद उन्हें छूट प्रदान करने का मामला ज़ोर-शोर से उठाया जा रहा है। युवा पीढ़ी के सामने बेरोज़गारी का बड़ा सवाल विपक्ष द्वारा बार-बार उठाया जा रहा है। इस सब के बावजूद भाजपा के नेता और मतदाता भाजपा की जीत को सुनिश्चित बताने के दावे पेश कर रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को विजय मिलने ही वाली है। कहीं -कहीं तो विपक्ष के लोग भी मान रहे हैं कि जीत भाजपा की ही होगी। मोदी सरकार ने सभी बाधाओं को अपने लिए पार किया है और जीत के प्रति आशा का बिगुल लगातार बजाया है जिसमें मीडिया ने भी अपना ज़बरदस्त रोल निभाया है। क्या हिन्दुत्व की राजनीति एक कारण हो सकता है? जी हां। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का वायदा पूरा हुआ। अयोध्या शहर का कायापल्ट हो गया। वहां की सड़कें, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट सभी पर सरकार ने समय रहते काम कर दिखाया। विपक्ष के पास इस कदम की जवाबदेही का एक मौका था जो उन्होंने खो दिया। विपक्ष असमंजस में रहा कि कहीं मुस्लिम वोट न खो दें। इसीलिए उनके बयान भी नकारात्मक भूमिका निभाते रहे। भाजपा को लगने लगा है कि हिन्दुत्व की राजनीति पर लोगों की प्रतिक्रिया उम्मीद से परे है। भाजपा का दावा है कि उनके कोर वोटर पार्टी के दायरे से बाहर कभी नहीं गये हैं। भाजपा जीत रही है। इसके पीछे जो माहौल बना है या बनने दिया गया है, उसका बड़ा फैक्टर है। मोदी सरकार ने 1962 के युद्ध के दौरान पंडित नेहरू द्वारा तैनात किये सैनिकों की तुलना में अधिक सैनिक तैनात करने का फैसला लिया। मोदी को भी चीन से गम्भीर चुनौती का सामना करना पड़ा लेकिन सीमा पर बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती को लोगों ने मोदी की दृढ़ता के रूप में देखा और स्वीकार किया। वैल्फेयर योजनाओं द्वारा अपने गरीब वोटरों और राम मंदिर द्वारा मध्य वर्गीय वोटरों को साधे रखा। भाजपा ने विरोधियों को कमजोर करने में कोई कमी नहीं आने दी। यहीं सबसे पुरानी लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रेस कमज़ोर रही है। 2014 के बाद भाजपा ने यह जान लिया कि उनके प्रतिद्वन्द्वी का जनाधार आगे ज्यादा न बढ़ पाये। 2024 के चुनाव में लगभग 30 प्रतिशत नये मतदाताओं को जोड़ने का निर्देश मोदी ने दिया। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन अपनी मोर्चाबंदी को सम्भाल नहीं पाया। विश्वसनीयता बनी न रह पाई जो ज़रूरी थी। बंगाल में ममता, पंजाब में आम आदमी पार्टी का रवैया अलग सा रहा। बिहार में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने पहले ही पल्ला झाड़ लिया और भाजपा के साथ आ गये। पार्टी अपने साथियों को भी सम्भाल न पाई।