पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह की कांग्रेस में वापिसी क्यों हुई ?

दस साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने फिर घर वापसी कर ली है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने दिल खोल कर बीरेन्द्र सिंह के साथ उनकी पत्नी पूर्व विधायक प्रेमलता का स्वागत किया है। उनके बेटे बृजेंद्र सिंह पिछले महीने भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। हिसार क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुने गए बृजेंद्र सिंह ने कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही सांसद के पद से भी इस्तीफा दे दिया था। बृजेंद्र सिंह आईएएस की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए थे। इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर हिसार क्षेत्र से फिर किस्मत आज़माते दिखेंगे। बीरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भी आने वाले विधानसभा चुनावों में हरियाणा के उचाना कलां क्षेत्र से चुनाव लड़ सकती हैं। राजनीति के गलियारों में ऐसा माना जा रहा है कि बीरेन्द्र सिंह और उनके परिवार का कांग्रेस में शामिल होना, भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है। हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और कई बार कैबिनेट मंत्री रह चुके बीरेन्द्र सिंह राज्य की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं। उनके भाजपा छोड़ने के बाद जाट समुदाय इस पार्टी से और दूर होगा। जींद में थोड़ा समय पहले एक रैली कर बीरेन्द्र सिंह ने चेताया था कि अगर जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबंधन नहीं तोड़ा गया तो वह भाजपा छोड़ देंगे। भाजपा-जजपा गठबंधन टूट जाने के बाद भी उन्होंने भाजपा छोड़ दी है। ऐसा इसलिए कि भाजपा नेतृत्व ने न किसानों के मुद्दे पर उनकी सलाह पर ध्यान दिया और न महिला खिलाड़ियों के आन्दोलन के दौरान उनके सुझावों पर गौर किया गया। ऐसे में भाजपा से उनका मन खिन्न हो गया था।
लौट चुके हैं माजरा भी
पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रामपाल माजरा भी वापस इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) में लौट आए हैं। पिछले विधानसभा चुनावों से पहले रामपाल माजरा इनेलो छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन उन्हें कलायत क्षेत्र से टिकट नहीं मिली। कलायत से टिकट मिली कमलेश ढांडा को। वह न केवल जीत गईं, बल्कि खट्टर सरकार में मंत्री भी बन गईं। जाहिर है, इससे रामपाल माजरा को भाजपा में अपना राजनीतिक भविष्य नजर नहीं आया। टिकट नहीं मिलने और कमलेश ढांडा के मंत्री बन जाने के बाद रामपाल माजरा ने खुद को भाजपा की गतिविधियों से अलग कर लिया था। किसानों की नाराजगी के चलते भी वह खुद को भाजपा के साथ नहीं जोड़ पाए। बीच- बीच में माजरा के दोस्त उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की सलाह देते रहे, लेकिन वह वक्त पास करते रहे। इस दौरान इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी की बहादुरगढ़ में बदमाशों ने गोलियां मार कर हत्या कर दी। ऐसी परिस्थितियों में उन्होंने इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला के साथ आना ही ठीक समझा। कई बार विधायक रह चुके रामपाल माजरा के पास लम्बा राजनीतिक अनुभव है। इनेलो में लौटते ही पार्टी ने उन्हें हरियाणा की कमान सौंप दी। कहा जा सकता है कि माजरा की गाड़ी एक बार फिर से पटरी पर आ गई है।
निशान सिंह क्यों गए?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि निशान सिंह ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) क्यों छोड़ी? क्या वह जजपा के सत्ता में साझेदार होने के बावजूद किसी बोर्ड-निगम की चेयरमैनी नहीं मिलने से नाराज थे? क्या जजपा नेतृत्व ने उन्हें सम्मान नहीं दिया? क्या उन्हें जजपा में अपना राजनीतिक भविष्य धुंधला दिखाई दे रहा था? क्या वह अगले पांच साल इंतजार करने के पक्ष में नहीं थे? यह भी कि क्या किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने के बाद वह आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत कर सदन में पहुंच पाएंगे? कुछ कहा नहीं जा सकता। निशान सिंह ने पार्टी छोड़ने को लेकर जो कहा है, उससे सारी बातें साफ़ नहीं होती हैं। उन्होंने कहा, अगर आपकी सुनवाई नहीं हो रही हो तो पद पर बने रहना बेमानी हो जाता है। मैं 30 साल तक चौटाला परिवार के साथ रहा हूं। जजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी पूरी तन्मयता से निभाई है। कोई भी व्यक्ति व्यथित होकर ही पार्टी छोड़ने जैसा निर्णय लेता है। जन भावनाओं का हनन हो रहा हो तो ऐसे फैसले लेना मजबूरी हो जाती है लेकिन पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी छोड़ने वालों को लेकर सधी हुई प्रतिक्रिया सामने आई है। उनका कहना है, लोग आएंगे, लोग जाएंगे, लेकिन हम घबराने वाले नहीं हैं। विपरीत हवाओं में भी हम मेहनत कर जजपा को और मजबूत करेंगे। 
अभी भी खफा हैं विज
खुद को भाजपा का अनन्य भक्त बताने वाले पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हरियाणा में पार्टी के फैसलों को लेकर अभी भी खफा हैं। अपनी नाराजगी को उन्होंने कभी छुपाया भी नहीं। जब भी बोलते हैं, बेबाक बोलते हैं। विज ने अब एक बार फिर कहा है कि जब मुझ पर भरोसा ही नहीं है तो साथ काम क्यों करना है? मुख्यमंत्री पद से मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे और नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से ही अनिल विज नाराज चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बदले जाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। जब खट्टर इस्तीफा देने राज्यपाल के पास गए, उस वक्त भी वह गाड़ी में उनके साथ थे, लेकिन हरियाणा में भाजपा का सबसे वरिष्ठ विधायक होने के बावजूद यह बात उनसे छुपाई गई। मुख्यमंत्री बदलने की क्यों जरूरत पड़ी, किसने और क्यों ऐसा तय किया, इस बारे में विज को पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया। यही वजह रही कि नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए बुलाई गई भाजपा विधायक दल की बैठक को वह बीच में ही छोड़ कर बाहर आ गए थे। विज कहते हैं कि जब मुझ पर भरोसा ही नहीं तो फिर आप के साथ बैठ कर काम क्यों करना? मंत्रिमंडल में भी शामिल क्यों होना? खुद को भाजपा का छोटा-सा कार्यकर्ता बताते हुए विज कहते हैं, मैंने अपने आपको अब सिर्फ अम्बाला तक ही सीमित कर लिया है।
भूत लेते रहे पेंशन
हरियाणा में भूत भी पेंशन लेते हैं। भूत कई करोड़ की पेंशन ले चुके हैं। इस मामले में हरियाणा सरकार का रुख अब कुछ सख्त दिखाई दिया है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री बिशंभर बाल्मीकि ने इस संबंध में रिपोर्ट मांग ली है। करीब 162 करोड़ रुपए के इस पेंशन घोटाले की जांच सीबीआई ने की है। अधिकारियों से बैठक में बाल्मीकि ने कहा कि पेंशन घोटाले के आरोपियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश जारी किए हैं। डिप्टी कमिश्नर्स की अगुवाई में गठित समितियों की जांच के दौरान पाया गया था कि 50 हजार 312 ऐसे लोगों को बुढ़ापा पेंशन दी गई, जो इस दुनिया में ही नहीं थे। इसके साथ ही 13 हजार 477 ऐसे पेंशनधारी पाये गए, जो इसके पात्र नहीं थे। जांच के दौरान 17 हजार 94 ऐसे भी पेंशनधारी पाये गए, जिनका कहीं कोई अस्तित्व नहीं था। यह मामला बाद में जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने सामाजिक न्याय विभाग के अफसरों के साथ ही अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की सिफारिश की है। 

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