रोज़गार के लिए महत्वपूर्ण है कांग्रेस का मिशन -2024 का घोषणा-पत्र

नई दिल्ली में 5 अप्रैल, 2024 को कांग्रेस ने वर्तमान लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा-पत्र जारी किया, जिसे उसने ‘न्यायपत्र’ का नाम दिया है। इसे पढ़ते हुए सहज ही यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस मुख्यत: दो बिन्दुओं पर चुनाव लड़ने का प्रयास कर रही है, विचार धारा और रोज़गार। उसने ध्रुवीकरण के मुकाबले में जनकल्याण नीतियों का प्रस्ताव रखा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राज्यसभा सदस्य सोनिया गांधी के साथ ‘न्यायपत्र’ जारी करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यह चुनाव बुनियादी तौर पर पिछले चुनावों से बहुत भिन्न हैं, क्योंकि लोकतंत्र व संविधान आज से पहले इतना खतरे में कभी नहीं थी। उनके अनुसार, लोकसभा चुनाव ऐसे दो गुटों के बीच में हैं, जिनमें से एक देश में संविधान व लोकतंत्र को ‘नष्ट’ करने पर तुला हुआ है और दूसरा इन्हें सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहा है। कांग्रेस ने वायदा किया है कि अगर उसे सत्ता में आने का अवसर मिलता है तो वह ‘जॉब्स, जॉब्स, जॉब्स’ के सिद्धांत का पालन करेगी ताकि रोज़गार की स्थितियों को सुधारा जा सके, जो भाजपा के शासन में एकदम निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। 
कांग्रेस को विश्वास है कि एनडीए के (400 पार) अभियान का वही हाल होगा जो 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान का हुआ था और ‘इंडिया’ गठबंधन को सरकार गठन करने का अवसर मिलेगा, जिसके प्रधानमंत्री का चयन चुनाव बाद गठबंधन में शामिल दल आपसी सहमति से करेंगे। कांग्रेस को शासन करने व जनता का प्रतिनिधित्व करने का अनुभव है, इस बात में तो कोई विवाद है ही नहीं, विशेषकर इसलिए भी कि अधिकतर संस्थाओं का निर्माण उसने ही किया है, वह ही आर्थिक उदारवाद लेकर आयी और उसने ही मनरेगा, नेशनल फूड सिक्यूरिटी एक्ट जैसे सामाजिक सुरक्षा कवच बनाये, जिनसे कोविड व अन्य आपदाओं के दौरान भारत सुरक्षित रहा। इसलिए ‘न्यायपत्र’ में दर्ज कांग्रेस के विचारों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जो इस लिहाज़ से अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं कि इनका जन्म राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान आम जनता से हुई वार्ता के दौरान हुआ है। 
अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी की मुलाकात बड़ी संख्या में बेरोज़गार युवकों व युवतियों से हुई। इन बेरोज़गारों को जॉब उपलब्ध कराना वर्तमान दौर की सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती है। अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने पीएलएफएस (पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे) डाटा के आधार पर अनुमान लगाया है कि बेरोज़गारों की संख्या जो 2012 में एक करोड़ थी, वह 2022 में बढ़कर चार करोड़ हो गई। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023’ में कहा गया है कि 25 वर्ष की आयु से कम के 42 प्रतिशत युवा बेरोज़गार हैं। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में बेरोज़गारी संकट के समाधान के दो तरीके बताये गये हैं। अल्पकालीन समाधान में सरकारी रोज़गार का विस्तार किया जायेगा, जिसमें भारतीय भरोसा योजना के तहत केन्द्र सरकार, केन्द्र की शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों, हेल्थकेयर सेंटरों व अर्धसैनिक बलों में 30 लाख पद सृजित किये जायेंगे। प्रचलित धारणा यह है भारत में सरकारी नौकरियां आवश्यकता से अधिक हैं, लेकिन यह सही नहीं है। अर्थशास्त्री कार्तिक मुरलीधरन का कहना है कि भारत में प्रति 1000 व्यक्ति केवल 16 सरकारी कर्मचारी हैं, जबकि अमरीका में 77, चीन में 57 व नॉर्वे में 159 हैं। 
बहरहाल, बेरोज़गारी का समाधान केवल सरकारी नौकरियां सृजित करने से नहीं हो सकता। इसलिए इस संदर्भ में कांग्रेस का दूसरा प्रस्ताव प्राइवेट सेक्टर रोज़गार से संबंधित ‘पहली नौकरी पक्की योजना’ है, जिसके तहत 25 वर्ष से कम के स्नातकों व डिप्लोमा होल्डर्स को एक-वर्ष की अपरेंटिसशिप का अधिकार दिया जायेगा। उन्हें एक लाख रूपया दिया जायेगा, जिसमें से आधा सरकार व आधा एम्प्लायर देगा। गौरतलब है कि 1961 के अपरेंटिसशिप एक्ट के तहत जिन कम्पनियों में 30 से अधिक कर्मचारी हैं उन्हें अपरेंटिस तो रखने ही पड़ते हैं; ‘पहली नौकरी पक्की योजना’ के तहत इसे मूर्त अधिकार में परिवर्तित करने का प्रस्ताव है। इन दो समाधानों के अतिरिक्त कांग्रेस के घोषणा-पत्र में एम्प्लॉयमेंट-लिंक्ड इंसेंटिव (ईएलआई) गठित करने का भी प्रस्ताव है, जिसके तहत उन कम्पनियों को कर में छूट दी जायेगी, जो सुरक्षित, अच्छी गुणवत्ता के जॉब्स क्रिएट करेंगी। ध्यान रहे कि वर्तमान में जो प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) है, उसके तहत अधिकतर कैपिटल-इंसेंटिव सेक्टर्स जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल्स व फर्मास्यूटिकल्स को ही सब्सिडी दी गई है, जिनमें अतिरिक्त जॉब्स बहुत कम क्रिएट किये जाते हैं। 
अपनी शारीरिक सुरक्षा की चिंताओं के मद्देनज़र बहुत सी महिलाएं एक नागरिक व वर्कर के रूप में पूरी तरह से हिस्सा नहीं ले पाती हैं। इस समस्या का समाधान कांग्रेस के अनुसार यह है कि सरकारी निर्णय लेने वालों महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ा दिया जाये। कांग्रेस न सिर्फ 2025 से विधानसभाओं व 2029 से लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू कर देगी बल्कि 2025 से केन्द्र सरकार के जॉब्स में जो भी नई भर्तियां होंगी उनमें 50 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए रहेगा। आईपीएस के लिए भी महिला आरक्षण 50 प्रतिशत रहेगा और अर्धसैनिक बलों में 33 प्रतिशत महिलाएं होंगी। यह वायदे उचित प्रतीत होते हैं क्योंकि उच्च शिक्षा पर आल इंडिया सर्वे से मालूम होता है कि 2021-22 में महिलाओं का हायर सैकेंडरी शिक्षा में प्रतिशत 48 और स्नातक में 54 था। महिला आरक्षण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि श्रम बल में उनकी हिस्सेदारी, पीएलएफएस के अनुसार कम हुई है कि 2004-05 में 40 प्रतिशत से गिरकर 2017-18 में 23 प्रतिशत रह गई। 
हालांकि उसके बाद 2022-23 में 34 प्रतिशत हुई, लेकिन अधिकतर स्वरोज़गार या ‘अनपेड वर्कर्स’ के रूप में। अधिकतर महिलाएं अपने विरुद्ध अपराध को रिपोर्ट नहीं कर पाती हैं, उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए कांग्रेस हर पंचायत में अधिकार मैत्री की नियुक्ति करेगी। कांग्रेस ने दो टूक शब्दों में हर बिज़नेस, नागरिक व संस्था से ‘डर से आज़ादी का वायदा’ तो किया है, नोटबंदी, इलेक्टोरल बांड्स, राफेल आदि की जांच का भी वायदा किया है, लेकिन पीएमएलए, यूएपीए आदि के दुरूपयोग पर वह खामोश है। वैसे कुल मिलाकर कांग्रेस का ‘न्यायपत्र’ देश की बुनियादी चुनौतियों के हल हेतु अहम दस्तावेज़ है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर