कांग्रेस का चुनाव घोषणा-पत्र, मुस्लिम लीग तथा कच्चथीवू द्वीप

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, देश की वर्तमान सरकार के पांव उखड़ते प्रतीत हो रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में मुस्लिम लीग की छवि दिखाई देना, नई दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री को सलाखों के पीछे बंद करना तथा एक छोटे से द्वीप कच्चाथीवू का देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक दिखाई देना इसकी पुष्टि करते हैं। कांग्रेस के चुनाव घोषणा-पत्र वाला मुद्दा तो चुनाव आयोग तक पहुंच चुका है। इसने शांत स्वभाव के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यह कहने के लिए मजबूर कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेज़ों तथा मुस्लिम लीग का समर्थन किया था। यह भी कि 1942 में उन्होंने महात्मा गांधी तथा मौलाना आज़ाद के नेतृत्व वाले भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था और इससे पहले 1940 में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर बंगाल, सिंध तथा एनडीएफपी में सरकार भी बना चुके थे। वर्तमान सरकार पर आरएसएस की छाप को और उजागर करते हुए खड़गे ने यह भी कहा कि कांग्रेस के न्याय पत्र ने आरएसएस को उनके पूर्वजों की मुस्लिम लीग के साथ भागीदारी याद करवा दी है। 
नई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सलाखों  के पीछे रखे जाने पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी भी मोदी सरकार को परेशान कर रही है। भुलाए जा चुके द्वीप कच्चाथीवू का मोदी को ओर से मुद्दा उठाना तो बिल्कुल हास्यस्पद है। उन्हें यह भी नहीं पता कि श्रीलंका से हमारे राजनीतिक संबंध अगस्त 1983 के अतिरिक्त सदैव सुखद ही रहे हैं कि किसी समय जयप्रकाश नारायण के प्रभाव अधीन आए वर्तमान नेताओं के पूर्वज श्रीलंका के नेता फिलिप गुनावार देना को अंग्रेज़ों ने भारत का हमदर्द होने के कारण मुम्बई की जेल में बंद कर दिया था। यह बात सच है कि 1983 में श्रीलंका के लोगों ने अपने देश में रहते तमिलों की दुकानें लूट कर उन्हें जला दिया था। उन दिनों में मैं एक कांफ्रैंस में भाग लेने वहां गया हुआ था। मैंने आगज़नी का शिकार हुई तमिल सम्पत्ति ही नहीं देखी, हवाई अड्डे पर उन्हें भारत आने हेतु सीटों के लिए मिन्नतें करते भी देखा है। 
मैं अपने जीवन में इस प्रकार की हुल्लड़बाज़ी कई बार देख चुका हूं। सन् सैंतालीस में सीमा के इस ओर मुसलमानों का कत्लेआम तथा 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिखों पर आए संकट सहित। पंजाबी प्रांत की मांग के समय हरियाणा तथा पंजाब के बीच का राजनीतिक तनाव भी अनेक की जान को खतरा बना। मैंने यह सब कुछ अपनी आंखों से देखा है और इस संबंधी लिखा साहित्य भी पढ़ा है। पूछते हो तो मैंने यह भी देखा है कि किसी समय एक-दूसरे के दुश्मन बने यही लोग एक-दूसरे को पुन: गले से लगाते हैं। सच्ची बात तो यह है कि मनुष्य का यह पुत्र बहुत अच्छे काम भी करता है, परन्तु बुरे कामों से भी बाज़ नहीं आता। 
मैं 1998 की अपनी पाकिस्तान यात्रा के समय वहां के निवासियों से लाखों सलाम कबूल करके उनकी मेहमाननवाज़ी का भी आनन्द ले चुका हूं। 20-25 बुर्के वाली पाकिस्तानी महिलाओं की विनती पर उनके बीच खड़ा होकर खिंचवाई फोटो सहित। 
मोदी सरकार का कांग्रेस के चुनाव घोषणा-पत्र को मुस्लिम लीगी कहना, अरविंद केजरीवाल को स्लाखों के पीछे बंद करना तथा इंदिरा गांधी द्वारा कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका का भाग बनाये जाने को देश के लिए खतरा बताना आगामी चुनावों से बौखलाए होने का चिन्ह है। परिणाम क्या निकलता है, समय बताएगा। 
पंजाबी साहित्य सभा नई दिल्ली के नये फैलो
गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई पंजाबी साहित्य सभा की बैठक में डा. रवेल सिंह, कनवीर पंजाबी बोर्ड, साहित्य अकादमी नई दिल्ली से भापा प्रीतम सिंह मैमोरियल लैक्चर करवाने सहित पंजाबी के तीन लेखकों को फैलोशिप देने का फैसला लिया गया।  वे हैं—केवल धालीवाल, काना सिंह तथा प्रेम प्रकाश। केवल धालीवाल जाने पहचाने नाटककार हैं, जिन्होंने सन् सैंतालीस बारे कई नाटक लिखे हैं। रंग-मंच की सरदारी के कारण वह पंजाब संगीत नाटक अकादमी चंडीगढ़ के अध्यक्ष हैं। 
प्रेम प्रकाश ने कई वर्ष एक उर्दू अ़खबार में कार्य करने के बाद ‘लकीर’ नामक पंजाबी पत्रिका प्रकाशित की जो बड़ी लोकप्रिय हुई। उनके साथ बातचीत करने में बड़ा आनंद आता है। यह ज़रूरी नहीं कि वह जो भी बोलें सोलह आने सच्च हो। वैसे उनकी मुख्य पहचान कहानीकार के रूप में है।
काना सिंह पाकिस्तान में रह गए गुजरखाने में जन्मी हैं। वह कविता लिखती हैं, यादों के चित्र भी तथा बाल कहानियां भी। उनकी प्रशंसा भी उनके कद में नहीं, प्रभाव में है। हाल ही में उन्हें गुरु नानक खालसा कालेज फार वूमैन, गुजरांवाला कैम्पस, लुधियाना ने एक बड़ी कांफ्रैंस में 21,000 रुपये की थैली देकर सम्मानित किया है। 
निक-सुक की ओर से तीनों को मुबारकबाद।
अंतिका
—तजम्मल कलीम (पाकिस्तान)—
पहिलां सारे विहले बैठे हुंदे सी,
उसदे रूप ने शहर नूं आहरे ला दित्ता।
दिल करदा ए सदके जावां पोते दे,
मेरे पिछले पहिर ने आहरे ला दित्ता।
यार कलीम पाणी रुकिया होया सी,
उहदे पैरां नहिर नूं आहरे ला दित्ता।