भारत-रूस संबंधों की सार्थकता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय रूस ने यात्रा कई पक्षों से बहुत महत्वपूर्ण कही जा सकती है। खास तौर पर उस समय जब रूस की अपने पड़ोसी देश यूक्रेन के साथ पिछले दो वर्ष से भीषण लड़ाई चल रही है। आज़ादी के बाद भी भारत के उस समय के सोवियत संघ के साथ संबंध बहुत मधुर और सुखद रहे। समय व्यतीत होने के साथ सोवियत संघ विश्व की एक महाशक्ति बन गया था। आज़ादी के बाद भारत अपनी अनेक समस्याओं में से बाहर निकलने का यत्न कर रहा था। उस समय सोवियत संघ ने भारत के साथ दोस्ती निभाई थी और इसके नवनिर्माण के लिए हर पक्ष से मदद की थी। यहां तक कि जब कम्युनिस्ट चीन के साथ सीमावर्ती मामले पर भारत की लड़ाई हुई तो भी कम्युनिस्ट सोवियत संघ ने भारत को पीठ नहीं दिखाई थी। सोवियत संघ टूटने के बाद भी भारत के साथ रूस के संबंध हमेशा सार्थक बने रहे हैं, जो आज तक भी उसी तरह जारी हैं। चाहे इन दोनों देशों की सीमाएं नहीं मिलतीं लेकिन ये हमेशा अच्छे पड़ोसी ज़रूर बने रहे हैं।
उस समय में पाकिस्तान की अमरीका ने बहुत मदद की थी लेकिन भारत के साथ उसके संबंध बहुत सुखद नहीं थे। पाकिस्तान ने कश्मीर के मामले पर हमेशा ही भारत को चुनौती दी और अमरीकी हथियार हासिल करके पाकिस्तान हमेशा भारत को हमले की धमकियां देता रहा लेकिन उस समय सोवियत संघ डट कर भारत की मदद के लिए आता रहा। आज भी भारतीय सेना में सोवियत संघ के हर प्रकार के हथियार प्रयोग के लिए मौजूद हैं। 
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगभग पिछले अढ़ाई दशकों से देश का शासन चला रहे हैं। उन्होंने भी हमेशा भारत के साथ खड़े रहने को प्राथमिकता दी है। इसलिए दोनों देशों के अध्यक्षों में वार्षिक मिलनी का सिलसिला चलता रहा है। पिछली बार पुतिन दिसम्बर, 2021 में इसी वार्षिक मिलनी की कड़ी में नई दिल्ली आए थे लेकिन उसके बाद हुई अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के कारण और दोनों देशों की घरेलू समस्याओं के कारण इन वार्षिक बैठकों का सिलसिला कुछ वर्ष के लिए रुक गया था। अब प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा से इन मुलाकातों में 22वीं कड़ी जुड़ गई है। यूक्रेन तथा रूस के युद्ध में चाहे अमरीका तथा यूरोपियन यूनियन के दर्जनों ही देश यूक्रेन के साथ खड़े दिखाई देते हैं और वे आधुनिक हथियारों सहित प्रत्येक तरह से उसकी मदद भी कर रहे हैं, परन्तु भारत ने इस संबंधी अपनी विदेश नीति को पूरी तरह संतुलित बना कर रखा है। भारत द्वारा चाहे यूक्रेन की हथियारों के अतिरिक्त अन्य प्रत्येक तरह की मदद की जाती रही है, परन्तु इसके साथ-साथ रूस के साथ भी अपने सहयोग एवं व्यापारिक संबंधों को पूरी तरह बनाए रखा है। वैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के गम्भीर मामले के समाधान के लिए भारत ने हमेशा बातचीत के माध्यम से कोई सुखद रास्ता ढूंढने की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वकालत की है। 
प्राप्त सूचनाओं के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा के दौरान आपसी सहयोग को और भावपूर्ण बनाने के लिए 28 समझौतों पर दस्तख्त किए जा रहे हैं। इनमें ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग, खुराक संबंधी समझौते, खनिज पदार्थों तथा कच्चे माल में सहयोग, स्वास्थ्य तथा दवाइयों के क्षेत्र में सहयोग, आधारभूत ढांचे जैसे रेलवे, स्टील, विज्ञान तथा टैक्नालोजी में मिल कर आगे बढ़ना तथा इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष की खोज में एक साथ चलना तथा पर्यटन एवं शैक्षणिक क्षेत्र के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में दोनों देशों के लोगों के आपसी सहयोग की योजनाओं को और आगे बढ़ाने के लिए भी फैसले लिए जाएंगे। भारत से रूस की सेना में भर्ती होकर लगभग 50 नौजवान यूक्रेन में रूस की ओर से लड़ने गए हुए हैं। इनमें से अमृतसर का तेजपाल सिंह तथा एक अन्य नौजवान मारे जा चुके हैं। इनके शव लाने तथा शेष नौजवानों की सही सलामत वापिसी के लिए भी भारत द्वारा यत्न किये जाएंगे। भारत ने अपनी तथा रूस की ज़रूरतों के अनुसार उससे पिछले समय में अधिकाधिक कच्चा तेल खरीदा है। वर्ष 2022 में भारत ने पश्चिमी देशों की पाबंदियों के बावजूद दो अरब डालर का तेल खरीदा था। दो वर्षों अर्थात 2024 तक रूस से भारत द्वारा खरीदे जा रहे तेल की राशि बढ़ कर 61 अरब डालर तक हो गई है। इसी प्रकार वर्ष 2025 तक दोनों देशों में आपसी निवेश का लक्ष्य 50 अरब डालर तक निर्धारित किया गया है। 2023-24 के दौरान दोनों देशों के बीच कुल 65.70 अरब डालर का व्यापार हुआ है। भारत का रूस को निर्यात 4.26 अरब डालर का रहा है और रूस से आयात 61.44 अरब डालर का रहा है। नि:संदेह यह दो दिवसीय यात्रा जहां दोनों देशों के सहयोग को और भी बढ़ाने वाली सिद्ध होगी, वहीं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा विशेष तौर पर रूस तथा यूक्रेन का युद्ध रुकवाने के लिए भारत की ओर से अच्छा प्रभाव डालने में भी सहायक हो सकेगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द