कितना उचित है जनगणना को स्थगित करते रहना ?

सरकार जनगणना पर गंभीर है। इस महीने जनगणना का काम शुरू होने की बात है, लेकिन इस तरफ  फिलहाल कोई विशेष सक्रियता नहीं दिखती। अर्थव्यवस्था और विकास की योजनाएं बनाने के लिये आंकड़े लगातार पुराने और अव्यवहारिक होते जा रहे हैं। ऐसे में 2035 तक के चक्र वाली डिजिटल जनगणना अत्यंत आवश्यक हो गई है और यह भी कि अब इसे और विलंबित रखना देशहित में नहीं होगा।
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्डोमीटर के अनुसार 2 सितम्बर 2024 तक देश की वर्तमान जनसंख्या 1,45,31,5,173 है, जो साल बीतते बीतते डेढ अरब के करीब पहुंच जायेगी। यह महज एक अनुपयोगी आंकड़ा और सामान्य सूचना भर है। इस आंकड़े को किसी काम का बनाना है तो देशव्यापी जनगणना ज़रूरी है। अपना देश नियमित जनगणना कराने वाले 233 देशों में से है। जबकि ऐसे 44 चुनिंदा देशों में से भी है, जिन्होंने जनगणना समय पर नहीं करायी। बेशक कोविड के दौरान जनगणना असंभव थी, लेकिन उस दौरान भी कुछ छोटे देशों ने यह काम निबटाया। बेशक भारत जैसे देश में यह नामुमकिन था। लेकिन उस दौरान और उसके बाद आजतक देश में बहुत से चुनाव हो चुके हैं, सियासी गतिविधियां और कार्यक्त्रम जारी हैं, तब फिर जनगणना को टालना कहां तक ठीक है।
हालांकि कहा जा रहा है कि चार साल बाद ही सही पर इसी महीने इसी महीने जनगणना शुरू हो जायेगी और 2026 के आखीर तक इसके आंकड़े सार्वजनिक कर दिये जाएंगे, लेकिन अधिकतर को ऐसा लगता है कि यह इस साल भी टलेगी। अगले साल इस पर कवायद शुरू होगी और चूंकि इसके आंकड़े जारी करने के लिये कोई समय निर्धारित नहीं है। सो, अगले आम चुनावों के बरस भर पहले इसके आंकड़े जारी किए जायेंगे ताकि सरकार उन्हें चुनावानुकूल बनाया जा सके। संभव है कि इस तरह की दलीलें देने वाले सदैव आशंकाओं से ग्रस्त रहने वाले लोग हों पर इस आशंका के पीछे कुछ पुख्ता दलीलें भी हैं। 
पहली बात कि इस ओर जमीनी स्तर पर सरकारी सक्रियता नदारद है। जो प्रशासनिक कवायद होनी चाहिये वह सितम्बर के शुरुआत में शुरू नहीं हुई है। दूसरे जिसको इस काम को अंजाम देना है यानी गृह मंत्रालय उसके मुखिया अमित शाह ने पखवारे भर पहले यह संकेत तो दिया कि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर, एनपीआर और जनगणना करायी जायेगी, लेकिन इस बात का चौतरफा शोर होने के बावजूद कि यह सितम्बर में आरंभ होगी उन्होंने कोई साफ संकेत नहीं दिए हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय भी 2026 तक इसके नतीजे जारी करने की घोषणा को लेकर खामोश है।
 इस धारणा के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि जनगणना के लिए साल 2024-25 के बजट में महज 1,309.46 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं। जब यह प्रस्तावित था, तो साल 2021-22 के बजट में इसके लिए 3,768 करोड़ यानी तकरीबन तिगुनी राशि रखी गई थी। 24 दिसम्बर, 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की हुई बैठक में 8,754.23 करोड़ रुपये की लागत से 2021 की जनगणना कराने और 3,941.35 करोड़ रुपये की लागत से एनपीआर को पूरा कराने का प्रस्ताव पास किया था। साफ है कि जनगणना और एनपीआर प्रक्रिया पर 12,000 करोड़ रुपये से कहीं अधिक खर्च होना लाज़िमी है, तो इतनी सी रकम में क्या होगा? जवाब हो सकता है कि आवश्यक राशि चरणों में जारी की जा सकती है और पूरा बजट अगले साल दिख सकता है लेकिन फिलहाल इतने कम आवंटन से इस बात का इशारा तो मिलता है कि जनगणना प्राथमिकता में नहीं है और 1881 के बाद से जारी जनगणना का रुका चक्त्र अब इस बरस सितंबर में शुरू नहीं हो पायेगा।   गृह मंत्रालय और उसके तहत आने वाले भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय का दावा है कि उसने जनगणना के लिये पहचान, चयन और प्रशिक्षण, हाउस लिस्टिंग और वास्तविक डेटा संग्रह उससे प्राप्त विस्तृत रिपोर्ट को संसाधित करने जैसे विभिन्न चरणों की योजना तैयार कर ली है, परन्तु यह जब तक धरातल पर नहीं दिखती कागज़ी ही कही जायेगी। राज्य सरकारों को प्रशासनिक सीमाओं (राजस्व गांवों, विकास खंडों, उप-मंडलों और जिलों) सीमाओं का पुनर्गठन, उसमें बादलाव को भविष्य के लिए स्थगित करने का काम कहां तक पहुंचा है, हाउस लिस्टिंग की प्रक्रिया से पहले प्रशासनिक सीमाओं को स्थिर करना पहली शर्त है। यह जनगणना का पहला कदम माना जा सकता है। पर इस बावत कोई जानकारी नहीं है। हाउस लिस्टिंग के तहत स्थायी, अस्थायी मकानों उनके प्रकार, मूल्य और सुविधाओं वगैरह का विवरण दर्ज किया जाता है, लेकिन मजबूत एड्रेस सिस्टम न होने के कारण एक चुनौती है। पिछले दिनों सरकार ने इस पर काम करने का दावा किया था, पर अब जब काम लेने का समय आया तो चुप्पी है।
जनगणना होगी तो पता चलेगा कि देश में कितने गरीब, अमीर हैं, कितने पक्के और अस्थाई घरों में रहते हैं और कितने बेघर। घरेलू सुविधाओं, पानी, बिजली, इंटरनेट तक कितनों की पहुंच किस स्तर तक है, साक्षरता दर और शिक्षा, शहरीकरण, प्रवासन, वैवाहिक स्थिति, सामाजिक सांस्कृतिक स्तर, प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर, भाषा, धर्म और विकलांगता और बीसियों प्रकार के आंकड़े, जानकारियां सामने आयेंगी। यह देश के लोगों के विभिन्न आंकड़ों का  विशालकाय भंडार और गांव, कस्बे और वार्ड स्तरों पर प्राथमिक आंकड़ों का स्रोत भी है। गहन जनसांख्यिकी कवायद बेहद जरूरी है। इन सबके शोध अध्ययन के बाद सैकड़ों तथ्य सूचनाएं मिलेंगी। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर