राजनीति में झूठ बना है लोकतंत्र के अस्तित्व को खतरा

लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी सरकारें अक्सर सोचती हैं कि उनके मतदाता मूर्ख हैं। उनके पास ऐसी धारणा बनाने के अच्छे कारण हो सकते हैं क्योंकि उनमें से बहुत-से लोग अपनी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि और चारित्रिक विशेषताओं के मामले में वहां रहने के लायक नहीं हैं। उनमें से कई पर तो जघन्य आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। मतदाताओं के पास उम्मीदवारों के चयन में बहुत कम विकल्प होते हैं। वे मतदान केंद्रों पर ऐसे उम्मीदवारों को वोट देने जाते हैं, जो राजनीतिक रूप से झूठे या जोड़-तोड़ करने वाले हो सकते हैं। उम्मीदवारों को अक्सर उनके मतदाता झूठे वायदों पर विश्वस करके चुनते हैं।
कल्पना करें कि अगर राजनीति में झूठ बोलना प्रतिबंधित कर दिया जाये तो सरकार में बैठे उन आदतन झूठ बोलने वालों का क्या होगा जो अर्थव्यवस्था और प्रशासन की झूठी छवि बनाने के लिए आंकड़ों में हेराफेरी करते हैं। लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ग्रेट ब्रिटेन के हिस्से वेल्श की नवनिर्वाचित लेबर सरकार ने राजनीति में झूठ बोलने को अवैध बनाने का संकल्प लिया है। वेल्श सरकार ने कहा कि 2026 में अगले सेनेड ;वेल्श संसदद्ध चुनावों से पहले श्विश्व स्तर पर अग्रणीश् कानून बनाया जायेगा। सेनेड के सदस्यों ने इसे लोकतंत्र में राजनीति में झूठ बोलने से उत्पन्न ष्अस्तित्वगत खतरेष् से निपटने के अपने प्रयास में एक ऐतिहासिक क्षण बताया। 
झूठ बोलने वाले राजनेताओं की पहचान की जा सकती है और उन्हे पकड़ा जा सकता है, लेकिन ऐसे राजनेताओं द्वारा चलायी जाने वाली झूठ बोलने वाली सरकार के बारे में क्या, जो अक्सर झूठ बोलते हैं और तथ्यों को गलत तरीके से पेश करते हैं। भारत में स्थिति की कल्पना करें, जहां राजनीतिक शासक अपने राजनीतिक और आर्थिक एजंडे को आगे बढ़ाने के लिए जनता या मतदाताओं को गुमराह करने के लिए सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों से अक्सर महत्वपूर्ण संख्याओं में हेराफेरी करवाते हैं। यह बढ़ती महंगाई या घटते रोज़गार या संदिग्ध वित्तीय लेन-देन के समय में झूठी खुशी को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। 
ऐसे सरकारी कार्यों के बारे में क्या जो राष्ट्र की कीमत पर केवल कुछ चुने हुए व्यक्तियों या समूहों को लाभ पहुंचाते हैं? ऐसे कार्यों के पीछे व्यक्तियों की पहचान कैसे की जाये? सरकार अपने सार्वजनिक संचार इरादे के अनुरूप संबंधित टोकरियों को बड़ा या छोटा करके आधिकारिक सूचकांकों में हेराफेरी कर सकती है। उदाहरण के लिए ऐसे समय में जब खाद्य पदार्थों, सब्जियों, दवाओं और फार्मास्यूटिकल्स, संचार और यात्रा लागत, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय और उसकी कीमतें आसमान छू रही हैं, भारत में थोक और खुदरा मूल्य सूचकांक दोनों में बड़ी गिरावट बतायी जा रही है। कोई उन्हें उन टोकरियों के आकार पर दोष दे सकता है जिनमें उन दैनिक आवश्यकताओं को शामिल किया गया है। इस तरह के सरकारी धोखे से कैसे निपटें?
लोकतांत्रिक समाज में सरकारी धोखे पर कई बार बहस हुई है जिससे लोकतांत्रिक दुनिया भर में सार्वजनिक क्षेत्र में झूठ का प्रसार हुआ है। लोग एक चुनी हुई सरकार पर भरोसा करते हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि लोग अपनी चुनी हुई सरकार के भ्रामक कार्यों और बयानों पर भी भरोसा कर लेते हैं। वास्तव में सरकार के झूठ लोकतांत्रिक व्यवस्था के कामकाज के लिए किसी एक राजनेता के सार्वजनिक झूठ से भी ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। सरकार के झूठ का असर विधायिका और न्यायपालिका पर भी पड़ता है।धोखा एक संक्रामक बीमारी की तरह फैलता है। सरकारी झूठ को नियंत्रित करना सबसे मुश्किल होता है। जब कोई सरकार झूठ बोलती है, तो वह सत्ता में बैठे राजनेताओं से लेकर भरोसेमंद नौकरशाहों और कर्मचारियों तक पूरी शासन प्रणाली में फैल जाती है। 
2022 में इस विषय पर अमरीका स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय के नाइट फर्स्ट अमेंडमेंट इंस्टीट्यूट द्वारा किये गये विचार-विमर्श ने कुछ प्रासंगिक प्रश्न उठाये थे। उनमें शामिल हैं—क्या संवैधानिक, विधायी या संस्थागत सुधार हैं, जो सरकार की झूठ बोलने की क्षमता को सीमित करने या सरकार के झूठ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए किये जा सकते हैं? संघीय और राज्य नौकरशाही द्वारा उत्पादित जानकारी की अखंडता को बनाये रखने के लिए यह क्या कर सकता है? एक बेहद पक्षपातपूर्ण राजनीतिक माहौल में क्या सरकार के झूठ को रोकना या उनके नुकसान को सीमित करना संभव है? सरकार व्यवस्था में सबसे शक्तिशाली कार्यकारी निकाय, जिसका उपयोग निर्वाचित राजनेताओं द्वारा छल के साधन के रूप में किया जाता है,  सत्ता में पार्टी के लिए राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए झूठ बोलना या सच्चाई को छिपाना जारी रख सकती है। 
यह कोई आश्यर्य की बात नहीं है कि 20वीं सदी के मध्य में एक प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनीतिक दार्शनिक और लेबर पार्टी के नेता प्रोफेसर हेराल्डलास्की ने अंतत: मार्क्सवादी बनने से पहले धन शक्ति और झूठ पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अविश्वास किया था। सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए झूठ और धोखे को भुनाने की बात आने पर लोकतांत्रिक सरकार के पीछे असली राजनीतिक अभिनेता अज्ञात बने रह सकते हैं। (संवाद)