क्या नसरल्लाह की मौत हिज्बुल्ला के अंत की शुरुआत है ?

गत 27 सितम्बर को इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक को संबोधित करते हुए ईरान को सख्त और साफ  लहजे मे चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर तुम हम पर हमला करोगे तो हम भी तुम पर हमला करेंगे। ईरान मे ऐसी कोई भी जगह नहीं हैं जो इज़रायली सेना की पहुंच से दूर हो और ये बात  समस्त मध्य पूर्व का  भी सच है। मै एक और संदेश दे रहा हूँ कि हम निश्चित ही जीत रहे हैं।’ संयुक्त राष्ट्र के संबोधन के चंद घंटों के बाद ही इज़रायल ने एक सटीक हवाई हमले में अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक आतंकी संगठन हिजबुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्लाह को मार गिराया। इस हमले मे नसरल्लाह के  साथ उसके लगभग 100 अन्य साथी कम्मांडर भी इस अप्रत्याशित हमले में मारे गये। 64 वर्षीय लेबनानी नागरिक नसरल्लाह ने फरवरी 1992 से लेकर अपनी मुत्यु तक शिया मुस्लिम राजनीतिक दल और आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह के महासचिव के रूप में कार्य किया। 1982 मे जब इज़रायल ने लेबनान पर आक्रमण किया था, तब हिजबुल्ला संगठन अस्तित्व में आया था। एक शिया मुस्लिम आतंकी गठन होने के कारण इसके प्रमुख हसन नसरल्लाह पर अनेकों सुन्नी मुस्लिमों की हत्या के आरोप लगे। यही कारण है कि सुन्नी बाहुल्य प्रमुख देश सऊदी अरब सहित अन्य सुन्नी शासक देशों ने नसरल्ला की मौत पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस घटना से दो माह  पूर्व इज़रायल ने हमास आतंकी संगठन के प्रमुख इस्माइल हानिया को भी ठीक इसी तरह ईरान स्थित उसके सुरक्षित ठिकाने पर एक मिसाइल हमले में मार गिराया था। ईरान ने हर बार की तरह अपने पोषित आतंकी संगठन के मुखिया की हत्या पर इज़रायल से बदला लेने की कसमें तो खाईं, परन्तु कभी सीधे कार्यवाही नहीं की लेकिन इस बार उसने इज़रायल पर सीधा हमला करके मध्य-पूर्व के क्षेत्र मेें अशांति की शुरुआत तो कर ही दी है। 
भले ही इस विषय पर लोगों के विचारों में भिन्नता हो सकती है लेकिन एक बात बिल्कुल स्पष्ट हैं कि दुनियां में मात्र इज़रायल ही एक ऐसा देश हैं जिसने अपने दुश्मनों को दुनियां के किसी भी कोने से ढूंढ निकाल कर मौत के घाट उतारा है। इज़रायली सेना का ईरान में डर और दहशत का माहौल इस तरह हैं कि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई भी हिजबुल्ला प्रमुख नसरल्ला के हवाई हमले मेें मारे जाने के बाद किसी अज्ञात और सुरक्षित ठिकाने पर चले गये हैं। वैसे ऊी ईरान के आंतरिक हालात इस समय अच्छे नहीं हैं और कभी भी ईरानी जनता में अशांति और अंसन्तोष की चिनगारी भड़क सकती है। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पिछले दिनों ईरानी जनता को सीधे संभोधित करते हुए भड़काने की कोशिश की। ईरानी सरकार की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि ईरान को अपनी जनता की बिल्कुल भी चिंता नहीं, हम आपके साथ खड़े हैं। ईरान बेवजह युद्ध में पैसा खर्च कर अपने देश को आर्थिक संकट में डाल दुनियां में अराजकता फैला रहा  है।   
मज़बूत राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में यमन, फिलिस्तीनी और लेबनान जैसे देश दो पाटों के बीच घुन की तरह पिस रहे हैं। इज़रायल में अशांति फैलाने वाले देश यमन में हूती विद्रोहियों, लेबनान में हिजबुल्ला लड़ाकों और फिलिस्तीन में हमास जैसे आतंकवादियों को ईरान द्वारा पोषित और पराश्रय देने के कारण इन संगठनों ने अपने ही देश में एक समानान्तर सेना खड़ी कर ली हैं। इन आतंकवादियों का एक मात्र मकसद इज़रायल के विरुद्ध सशस्त्र, हिंसक संघर्ष कर उसके अस्तित्व को समाप्त करना हैं। इस हेतु शिया मुस्लिम बहुल ईरान सरकार आर्थिक रूप से भरपूर सहायता दे रही है। हिजबुल्ला, हूती और हमास जैसे आतंकी संगठनों के कारण कमज़ोर राजनीतिक इच्छा शक्ति के चलते यमन, लेबनान और फिलिस्तीन में अशांति और अराजकता के चलते वहां के नागरिकों को आए दिन कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं और इज़रायली हमलों के कारण इन देशों के आम जनों को अपनी जान गंवानी पड़ रही हैं।
एक बात तो तय है कि शिया मुस्लिम बहुल ईरान इज़रायल से दुश्मनी की आड़ मे अपने हितों को साध रहा हैं और वह इज़रायल से स्वयं युद्ध न कर हिजबुल्ला, हमास और हूती जैसे आतंकियों को बलि का बकरा बना रहा है। इज़रायल के विरुद्ध संघर्ष में ईरान अपनी ज़मीन और अपनी जनता को सीधे युद्ध में धकेले बिना लेबनान, फिलिस्तीन और यमन के नौजवानों को शामिल करवा कर सिर्फ अपने धन और संसाधनों का दुरुपयोग कर दुनियां में अशांति फैलाना चाहता हैं। (अदिति)