अब महानगर भी बन रहे हैं कृषि के केन्द्र

पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ते शहरीकरण, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच अगर शहरी खेती यानी अर्बन फार्मिंग को 21वीं सदी में कृषि के भविष्य के रूप में देखा जा रहा है तो इसके वाजिब कारण हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी से ज्यादा आबादी शहरों में रह रही होगी। इस बढ़ते शहरीकरण के कारण खाद्य पदार्थों की मांग भी बहुत ज्यादा बढ़ जायेगी। इसलिए शहरी खेती को इस मांग को पूरा करने के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में पूरी दुनिया में विकसित किया जाना शुरु हो चुका है। दुनिया के कुछ बड़े शहरों में तो यह सिलसिला दो दशक पहले से ही शुरु हो चुका है।
आज दुनिया के कई बड़े शहर अपनी ऊंची-ऊंची इमारतों औद्योगिक गतिविधियों और कारोबारी चहल पहल के लिए ही नहीं बल्कि खेती के नये-नये तरीकों, वर्टिकल फार्मिंग, हाइड्रोपोनिक्स और एक्वापोनिक्स खेती के नये नये प्रयोगों, घनी शहरी आबादी के बीच खेती और मछलियों के परिपूर्ण इकोसिस्टम और ऊंची इमारतों में पौधों की हवा में लहराती जड़ों से खींचे जाने वाले पोषक तत्वों के साथ एरोपोनिक्स खेती के चमत्कारिक से लगने वाले प्रयोगों के लिए भी जाने जा रहे हैं। इस समय अमरीका के न्यूयार्क, लॉस एंजिल्स, शिकागो और डेट्रॉइट में हज़ारों कृषि फॉर्म हैं, जहां कम्युनिटी फॉर्मिंग हो रही है। अकेले न्यूयार्क में 550 से ज्यादा कम्युनिटी गार्डन हैं, जहां शहर के लिए ताजे, रसीले फल पैदा हो रहे हैं। इन दिनों अमरीका में 5000 से ज्यादा शहरी खेती परियोजनाएं अस्तित्व में हैं जिसमें 50,000 से ज्यादा लोग कार्यरत हैं।
न्यूयार्क और शिकागो की तरह ही मुम्बई, बेंग्लुरु, शंघाई, बीजिंग, सिंगापुर, लंदन, पेरिस, बर्लिन, एम्स्टर्डम, नैरोबी, काहिरा, लागोस, हवाना, साओपालो और बोगोटा जैसे महानगर भी शहरी खेती के नये केंद्र बन कर उभर रहे हैं। विश्व बैंक और फूड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (एफ एओ) के अनुसार 100 से अधिक देशों के 1000 से ज्यादा शहरों में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए धुर महानगरों के भीतर 18 करोड़ टन ताज़ी सब्ज़ियां, रसीले फल और सैकड़ों तरह की जड़ी बूटियां व दूसरे कृषि उत्पाद पैदा किए जा रहे हैं। यूरोप और अमरीका की तरह भारत में भी तेज़ी से शहरी खेती की तरफ  रुझान बढ़ा है। चाहे मुम्बई जैसा घनी आबादी वाला शहर हो या बंग्लुरु जैसा सिलिकन सिटी हो अथवा दिल्ली जैसा डिप्लोमेटिक शहर या हैदराबाद जैसा पारम्परिक शहर हो। यहां तक कि चेन्नई, पुणे, जयपुर और कोलकाता में भी शहरी खेती की ज़बरदस्त संभावनाएं पैदा हो रही हैं, लेकिन सबसे व्यवहारिक और मात्रात्मक नतीजे लेकर आये हैं, केरल के तिरुवंनपुरम, कोच्चि और कोझिकोड जैसे शहर जहां सरकारी प्रोत्साहन और प्रयासों के चलते हर साल 40,000 टन से ज्यादा हरी सब्ज़ियां और 10,000 टन से ज्यादा विभिन्न तरह के फल शहरों में पैदा किए जा रहे हैं, जो कि शहरी फलों और सब्जियों के मांग का 30 से 35 फीसदी तक पूरा करते हैं। भारत में पिछले एक दशक में तेज़ी से अपनी जगह बना रही शहरी खेती में इन दिनों दो लाख से तीन लाख टन सब्ज़ियां और फलों का उत्पादन हो रहा है। सब्जियों में जहां पालक, धनिया, मिर्च, टमाटर, बैंगन, आलू, तोरी, लौकी, सीताफल, परवल, खीरा, भिंडी, गाजर और कई तरह की गोभियां बड़े पैमान पर पैदा की जा रही हैं, वहीं फलों में पपीता, अनार, संतरा, चीकू, आम, कई तरह के बेर, नींबू, केला और लीची पैदा हो रहे हैं। घनी आबादी वाले मुम्बई शहर में इस सदी की शुरुआत में ही कई एनजीओ शहरी खेती की योजनाओं को मूर्त रूप देना शुरु कर दिया था, जो आज इस शहर की लाखों छतों पर हाइड्रोपोनिक्स और वर्टिकल फार्मिंग का रूप ले चुकी हैं। कुछ प्रोजेक्ट्स तो मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स की छतों पर भी मौजूद हैं, जहां जैविक तरीकों से फल और सब्जियां उगाए जा रहे हैं, जबकि गार्डन सिटी के नाम से मशहूर बंग्लुरु में घरों और अपार्टमेंट्स की छतों पर बड़े पैमाने पर सब्जियां और फलों के साथ-साथ जड़ी बूटियों की भी खेती हो रही है। आईटी हब के रूप में मशहूर बंग्लुरु में छतों पर की जा रही इस खेती को भी कई तरह के स्टार्टअप्स और एप्स सपोर्ट कर रहे हैं। हाइड्रोपोनिक्स इंडिया, फर्मीजेन और सैफ्रे नस्टेज जैसे छत में की जाने वाली खेती के स्टार्टअप्स बंग्लुरु के लोगों को खेती करने के आधुनिक तौर तरीके सिखा रहे हैं। 
बंग्लुरु में बड़े पैमाने में टैरेस गार्डन में आर्गेनिक फार्मिंग हो रही है। शहर में ‘माई ड्रीम गार्डेन’ जैसी पहलें पिछले कई सालों से लोगों का मन बदल रही हैं कि अपने घर में उगाकर हरी सब्ज़ियां और तरह तरह की जड़ी बूटियों का सेवन किया जाए। दिल्ली में भी शहरी खेती जहां दिल्ली के बीच बीच में बसे गांवों और यमुना के किनारे बड़े पैमाने पर हो रही है, वहीं अब दक्षिण और पश्चिम दिल्ली में टैरेस गार्डनिंग एक नये सोशल स्टेट्स के रूप में उभरी है। हैदराबाद में भी रूफ टॉप गार्डनिंग नये विस्तार हासिल कर रहे हैं और अपनी बालकनी के टमाटर, मिर्च, पालक व धनिया खाने का नया चलन बढ़ रहा है।  दरअसल मुम्बई हो या बेंग्लुरु, कोलकाता हो या पुणे भारत में तेजी से उभर रही शहरी खेती कई वजहों से एक मजबूत गतिविधि बनकर सामने आयी है। कोच्चि मेट्रो पॉलिटन क्षेत्र में सरकारी योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर घरों में की जाने वाली खेती को ज़बरदस्त रूप से प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि यहां 40 फीसदी से ज्यादा लोग जहां अपनी फलों और सब्ज़ियों की ज़रूरत अपने घरों से पूरी कर ले रहे हैं, वहीं हज़ारों लोगों को इससे अच्छा खासा रोज़गार मिला है। फिलहाल भारत के विभिन्न शहरों में दो से तीन लाख टन फलों और सब्ज़ियों का उत्पादन हो रहा है, जिसके 2030 तक 40 से 50 लाख टन होने की संभावना है। जब यह मात्रा वास्तव में पैदा होने लगेंगी, तब यह महज शौक नहीं रह जायेगा बल्कि शहरी खेती रोज़मर्रा की कृषि संबंधी ज़रूरतों का बड़ा हल होगी।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर