शरणार्थियों को लेकर केंद्र और मिज़ोरम सरकार के बीच गतिरोध जारी

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण वहां के चटगांव पहाड़ी इलाकों से बड़ी संख्या में आदिवासी भाग कर भारत आ रहे हैं, जिससे भारत सरकार और मिज़ोरम राज्य के अधिकारियों के लिए लगभग 40,000 शरणार्थियों को रखने का खर्च बढ़ रहा है। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान, अशांत चटगाव क्षेत्रों से पहले की तुलना में बहुत अधिक आदिवासी भारत में आ रहे हैं, जो बांग्लादेश में अभी भी व्याप्त तनाव का एक निश्चित संकेत है, जिससे भारत के सीमावर्ती राज्य में आधिकारिक चिंताएं बढ़ गयी हैं। 
जैसे कि हालात हैं, बांग्लादेश या म्यांमार से अवैध आदिवासी प्रवासी जो वर्तमान में भारत में शरण लिए हुए हैं, मुख्य रूप से मिज़ोरम में, के जल्द ही वापिस लौटने की बहुत कम संभावना है। भारत के पूर्वोत्तर में मिज़ोरम को अपने राजनीतिक अभयारण्य के रूप में पसंद करने का मुख्य कारण मिज़ो लोगों के साथ उनके पारम्परिक जातीय संबंध हैं। दक्षिण एशियाई जनजातियों में राष्ट्रीय सीमाओं की परवाह किए बिना, रक्त संबंध स्पष्ट रूप से अन्य जगहों की तुलना में अधिक मायने रखते हैं। मणिपुर के कुकी/ज़ोकी तो बात ही छोड़ दें, भारत में मिज़ो लोग म्यांमार में सीमा पार बसे चिन या चटगांव पहाड़ियों के बावमको अपने जातीय रिश्तेदार मानते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि मिज़ोरम सरकार के अधिकारियों ने केंद्र के निर्देशानुसार शरणार्थियों के बारे में आधिकारिक रूप से बायोमेट्रिक विवरण एकत्र करने से परहेज़ किया है। कारण जटिल हैं, लेकिन संभवत: सत्तारूढ़ एनडीए शासन के साथ टकराव से बचने के लिए ही स्थानीय अधिकारी पर्याप्त धन की कमी की ओर इशारा करते हैं। सूत्रों ने शरणार्थियों के बीच अपने व्यक्तिगत विवरण भारत सरकार के अधिकारियों को सौंपने के लिए खुद की अनिच्छा की रिपोर्टों की भी पुष्टि की है। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के बारे में रिपोर्ट और अफवाहों ने कई जनजातीय समूहों को भारत सरकार के दीर्घकालिक उद्देश्यों के बारे में असहज कर दिया है और इसके डेटा संग्रह के तरीकों को लेकर भी बहुत संदेह पैदा हो गया है।
केंद्र और असम सरकार के बाहर के लोगों का निकाल बाहर करने के दृढ़ संकल्प से उत्पन्न भय के कारण भारत में रहने वाले लोग भी जो अपने पूर्वजों के बारे में बहुत अधिक सहायक दस्तावेज (साक्ष्य) प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं, डरे हुए हैं। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में बड़ा जनजातीय समुदाय कुछ हद तक भ्रमित और विखंडित हो गया है। सबसे अच्छे समय में भी ईसाई जनजातियां भाजपा-प्रभुत्व वाली एनडीए सरकार के राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति बहुत अविश्वास रखती थीं, जिसे वे एक दक्षिणपंथी हिंदू पार्टी के रूप में देखते हैं।
असम में एनआरसी पंजीकरण को लेकर हुई गड़बड़ी से कोई सबक नहीं लेते हुए, जहां केवल कुछ ही लोग आधिकारिक तौर पर मांगे गये दस्तावेज़ के अनुसार अपनी नागरिकता के निर्णायक सबूत देने में विफल रहे, मुख्यमंत्री हिमंत विसव शर्मा ने एक और एनआरसी अभियान शुरू करने की धमकी दी है। यह तब हुआ जब केंद्र और असम सरकार ने इस गलत तरीके से की गयी कवायद पर करीब 1600 करोड़ रुपये खर्च कर दिये, जिसके आधार पर भी बांग्लादेश या कहीं और लोगों को बड़े पैमाने पर निर्वासित नहीं किया गया।
यह देखना बाकी है कि क्या भारत सरकार भी एनआरसी अभियान के नये दौर के लिए शर्मा के उत्साह को साझा करती है या नहीं, खासकर पड़ोसी मणिपुर राज्य में नागरिक शासन के पतन का आकलन/नियंत्रण करने में उनकी पूरी तरह विफलता के बाद। क्षेत्र में इसके सबसे प्रमुख चेहरे के रूप में शर्मा को एक रणनीतिकार के रूप में खुली छूट दी गयी थी ताकि वह एक नये राजनीतिक क्षेत्र में एक नयी नीति का खाका तैयार कर सकें। मणिपुर और संबंधित मुद्दों पर उनके अभियान जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री और केंद्रीय भाजपा नेताओं के साथ कई बैठकें शामिल हैं, हल्के ढंग से कहें तो बिल्कुल भी सफल नहीं हुए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि मिज़ोरम में शरणार्थियों का वर्तमान समूह भारत सरकार के प्रस्तावित बायोमेट्रिक डेटा संग्रह के बारे में शायद ही उत्साहित है। वे इसे म्यांमार या बांग्लादेश वापिस भेजे जाने की संभावना की दिशा में पहला कदम मानते हैं। मिज़ोरम ने शुरू में प्रवासियों का बायोमेट्रिक पंजीकरण करने के लिए दिल्ली के साथ सहमति जतायी थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव पर आपत्ति जतायी क्योंकि स्थानीय लोगों को अपने जातीय रिश्तेदारों के भविष्य की संभावनाओं और वर्तमान कल्याण की चिंता थी। म्यांमार में राजनीतिक उथल-पुथल जारी है और अब यह बांग्लादेश तक फैल गयी है। राज्य सरकार ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए शरणार्थियों के विवरण की आधिकारिक रिकॉर्डिंग के साथ आगे नहीं बढ़ने के अपने फैसले के बारे में केंद्र को सूचित किया है। मिज़ोरम सरकार ने घोषणा की है कि चिन और अन्य समूहों को म्यांमार या बांग्लादेश वापिस भेजने के लिए दिल्ली की ओर से कोई भी आधिकारिक कदम पूरे दक्षिण एशियाई पड़ोस में शांति बहाल होने के बाद ही उठाया जाना चाहिए। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मिज़ोरम में विभिन्न शिविरों में रहने वाले अवैध आप्रवासियों की संख्या वर्तमान में 42,000 से अधिक है, जो इस साल फरवरी से 1500 से अधिक लोगों की वृद्धि दर्शाता है। हाल के हफ्तों में अधिकांश आगमन बांग्लादेश से हुए हैं, जहां इस साल 5 अगस्त से अशांति है। (संवाद)