प्रकृति की गोद में बसी शिव की नगरी शिवपुरी
मध्य प्रदेश अपनी प्राकृतिक छठा व नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए विख्यात हैं, जहां कई रमणीय स्थल हैं तो कई धार्मिक स्थान भी हैं जो जनास्था के प्रतीक है। उत्तरी विन्ध्याचल की पहाड़ियों में बसा ऐतिहासिक शहर ‘सीपरी’ जहां ईसा पूर्व नरवर के समीप नलपुर नामक स्थान पर ‘नर’ राजा का साम्राज्य था। कालान्तर में यहां शुंग गौतमी पुत्र सतकर्णी, नागराज कुषाण व चंदेलों के अलावा दिल्ली राजवंश के राजाओं ने भी राज किया था। सन् 1804 में जब सिंधिया परिवार ने यहां का शासन संभाला तब सीपरी का नाम बदलकर ‘शिवपुरी’ रख दिया गया। यहां भगवान शिव के अनेकों प्राकृतिक मंदिर पाए गये हैं। आज यह स्थल शिवपुरी के नाम से विख्यात है।
शिवपुरी सुन्दर स्थापत्यकुला से निर्मित मंदिरों व झरनों से सटा पड़ा है। यहां पर महाराजा सिंधियावंशों की अनेकों गढ़ाईदार नक्काशी युक्त छतरियां देखने को मिलती हैं। जहां राजवंश परिवारों का अंतिम संस्कार किया गया था। छतरियों का कलात्मक सौन्दर्य मुगल कालीन स्थापत्य से मिलता जुलता है। 81 स्वर्णकलश से सुसज्जित छतरियों में राजपति मंडप अपनी भव्यता हेतु प्रसिद्ध है। राजवंश की छतरियों से थोड़ी दूर भदैया कुंड नामक पानी का झरना है, जिसक बहता पानी एक गुफानुमा शिवमंदिर पर गिरता है, जिसमें श्रद्धालु प्राकृतिक रूप से निर्मित चट्टानी सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मन्दिर में पहुंचते हैं। कमल के फूलों से आच्छादित झरने का पानी सांख्य सागर झील में गिरता है। प्राचीन काल में यहां राजा सैर-सपाटे व शिकार करने आते थे। चांदनी रात में इस झील का सौन्दर्य दुगुना हो जाता है। इसे यहां चूदापाठा भी कहते हैं। झील में वर्षों पूर्व नौकायन भी होता था लेकिन अब इसमें मगरमच्छों की बढ़ती तादाद को देखते हुए रोक लगा ही है। शिवपुरी में सन् 1911 में जार्ज पंचमजब यहां आए थे तब महाराज जीवाजीराव सिंधिया ने यहां एक किले का निर्माण करवाया था जो जार्ज पंचम फोर्ट के नाम से जाना जाता है। यह किला अपनी खूबसूरती की वजह से कम नहीं आंका जाता है। हरे-भरे वनों के आगोश में बना भरखो एक झरने व सुन्दर शिवमंदिर के कारण चर्चित है। शिवमंदिर के सैंकड़ों प्राकृतिक मंदिर तो यहां पग-पग पर है। यहां के टपकेश्वर नामक शिवमंदिर में पहाड़ों से बूंद-बूंद टपकता जल मंदिर के भीतर बने शिवलिंग पर गिरता है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने यहां कुछ दिन विश्राम किय था अज्ञातवास में जब पाण्डवों को प्यास लगी थी तब अर्जुन ने अपने बाण को जमीन पर मारकर पानी का सोता निकाला था। बान गंगा नामक इस कुंड में वर्षभर पानी भरा रहता है। टपकेश्वर मंदिर के समीप ही कभी तांत्याटोपे ने अंग्रेजों से लोहा लिया था, जिनकी स्मृति में यहां भव्यमूर्ति लगी हुई है। यहीं पर मां राजेश्वरी देवी का भी प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिसमें वनराज सिंह देवी के दरबार में आते थे। यहां करीब 18 प्राकृतिक शिवमंदिर हैं तो कई अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर है। शिवरात्री के दौरान यहां शिवभक्त करीब दो सौ सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के भीतर बने शिवलिंग के दर्शन करने हेतु आते हैं। शिवपुरी में बना राष्ट्रीय माधव उद्यान की प्राकृतिक छठा में यहां आने वाले पर्यटकों को विचरते शेर, जंगली सूअर, नीलगाय, हिरण, खरहा, व मोर, सोन चिरैया जैसे पक्षीं यहां के अनुपम सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा समूचे प्राकृतिक क्षेत्र का रखरखाव किया जाता है। शिवपुरी आने वाले दर्शनार्थियों व पर्यटकों को यहां आवागमन के साधन भी सुगमतापूर्वक मिल जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा होने की वजह से यहां वर्षभर आगन्तुकों की भरमार रहती है।