धारा-370 की बहाली का सपना केन्द्र से टकराव को न्यौता
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पैंतरा बदलते हुए राज्य में धारा-370 की बहाली के लिए विधानसभा में प्रस्ताव लाकर यह बता दिया है कि राजनीति में देश से अधिक अपने वोट बैंक और स्वार्थ को पहल देनी पड़ती है। इस कदम से उनकी कथनी और करनी में फर्क अभी से सामने आ गया है। उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम करने का दावा करने वाले उमर अब्दुल्ला ने नई पहल के साथ अपने कदम पीछे खींच लिये हैं। ये मसला केन्द्र सरकार और उप राज्यपाल तक तो अभी नहीं पहुंचा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जो नजारा दिखा है, उससे बहुत कुछ साफ हो गया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का सत्र 4 नवम्बर को शुरू हुआ था और चौथा दिन आते आते हंगामे से हालात इतने बेकाबू हो गये कि विधायकों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल बुलाने पड़े। असल में सत्र के तीसरे दिन ही विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया जिसमें फिर से जम्मू-कश्मीर में धारा 370 बहाल करने की मांग की गई है। 5 अगस्त, 2019 को संसद ने प्रस्ताव के जरिये जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अनुच्छेद 370 खत्म करते हुए राज्य को दो हिस्सों में बांट कर केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया था। सूबे के क्षेत्रीय दल फिर से जम्मू-कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल करने की मांग करते रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से शुरू से ही आश्वस्त किया जा रहा है कि जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से वहाल कर दिया जाएगा। राज्य के क्षेत्रीय दलए जिसमें कांग्रेस नेता भी शामिल थेए पहले स्टेटहुड फिर चुनाव कराने की मांग करते आ रहे थे जिसे केन्द्र सरकार ने नामंजूर कर दिया था। चुनाव भी हो गया और जम्मू-कश्मीर में नई सरकार भी बन गई। अब लग रहा था कि केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू.कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य के रूप में बहाल कर दिया जाएगा, लेकिन जिस तरह से बवाल शुरू हुआ, लगता नहीं कि यह सब निकट भविष्य में होने वाला है।
भाजपा नेता कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला फाइनल है, लेकिन अब्दुल्ला परिवार और नेशनल कॉन्फ्रैंस जम्मू-कश्मीर के लोगों को भावनात्मक तौर पर ब्लैकमेल करने के लिए यह प्रस्ताव पास किया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पास किये गये प्रस्ताव में कहा गया है, यह विधानसभा विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी के महत्व को पुष्टि करती है जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा की। लोगों के अधिकारों के एकतरफा खत्म करने पर सदन चिंता व्यक्त करता है। यहे विधानसभा भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर के लोगों के चुने हुए नुमाइंदों के साथ विशेष दर्जा, संवैधानिक गारंटी की बहाली के लिए बातचीत शुरू करने और प्रावधानों को बहाल करने के लिए संवैधानिक व्यवस्था चनाने की अपील करती है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव नेशनल कॉन्फ्रैंस और कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन के तहत लड़ा था। नेशनल कॉन्फ्रैंस ने अपने मैनिफेस्टो में पूर्ण राज्य का दर्जा वापिस लेने और धारा-370 को बहाल करने का वादा किया था। गठबंधन में साथ होने के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी धारा-370 के ज़िक्र से बच रहे थे और सिर्फ स्टेहुड की वापसी के बादे में शामिल दिखे, लेकिन विधानसभा में पेश प्रस्ताव का कांग्रेस विधायकों ने भी समर्थन किया है।
उमर अब्दुल्ला ने यह तो कहा था कि कि जम्मू-कश्मीर में नई सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाला प्रस्ताव पास किया जाएगा लेकिन धारा-370 को लेकर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा था। कम से कम चुनावों के बाद तो बिलकुल नहीं। बारामूला सांसद इंजीनियर राशिद ने धारा-370 को लेकर उमर अब्दुल्ला पर हमला भी बोला था। लोकसभा चुनाव में शिकस्त देने वाले इंजीनियर राशिद ने उमर अब्दुल्ला पर दिल्ली के सामने झुक जाने का आरोप भी लगाया था। तब इंजीनियर राशिद का कहना था कि धारा-370 की बहाली के नाम पर वह लोगों से वोट मांगते रहे और अब कहते हैं कि जिसने यह छीना, उससे इसे फिर से बहाल किये जाने की उम्मीद मूर्खता है। हो सकता है धारा-370 को लेकर प्रस्ताव पास किया जाना उमर अब्दुल्ला पर किसी तरह के दबाव का हिस्सा हो, लेकिन केंद्र के साथ बेहतर रिश्तों की उनकी बातें तो अब बेमानी लगती हैं।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले उमर अब्दुल्ला कहते थे कि केंद्र के साथ बेहतर रिश्ते कायम करने की उनकी पूरी कोशिश होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनको ऐसी अपेक्षा थी, लेकिन प्रस्ताव पास हो जाने के बाद तो केंद्र से किसी अपेक्षा का भी कोई मतलब नहीं रह जाता। यह भी उमर अब्दुल्ला का ही कहना था कि हमे यह समझने की ज़रूरत है कि हमारे पास कौन-कौन सा विभाग है, हमारे पास क्या शक्तियां हैं, कौन से फैसले हम ले सकते हैं। कहां तक हम अपना कदम बढ़ा सकते हैं, हमारी हदें कहां तक हैं?सवाल यह है कि विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के बाद उमर अब्दुल्ला कैसे कह सकेंगे कि ताली दोनों हाथों से बजती है। फिर तो जम्मू-कश्मीर में भी दिल्ली जैसी आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। सवाल यह भी है कि जिस धारा-370 को हटाने को लेकर देश भर के मतदाताओं ने भाजपा को जनमत दिया। किसी भी कीमत पर केंद्र की सत्तासीन सरकार धारा-370 बहाली के मुद्दे पर झुक नहीं सकती है। ऐसे में यह सिर्फ विवाद का मुद्दा बना कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश भर ही माना जा सकता हैं।
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