कहानी-बदलाव
(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
नानी से मयंक को कुछ खास लगाव भी था। वो अपने ननिहाल में सबसे छोटा भी था। बस चल पड़ी थी। खिड़की से खूबसूरत मीठी धूप मयंक के चेहरे पर फैल रही थी। कत्थई स्वेटर पर धूप पड़कर मयंक के शरीर को एक अलहदा से सुकून पहुंचा रही थी। अभी उसका सफर भी बहुत लंबा था। मीठी धूप और स्वेटर की गर्मी ने मयंक को अपने आगोश में ले लिखा था। मयंक अपने बचपन में चला गया था। उसका ननिहाल, उसके गांव के घर में नानी छोटे-छोटे चूजे पालती थी। नन्हें-नन्हें चूजे एक-दूसरे के पीछे भागते तो मयंक उनको हुलस कर देखता। वो अपनी थाली की रोटी और कभी चावल के टुकड़े नानी और मां-मौसी से छुपाकर उन चूजों को खिला देता। उसके शहर वाले घर में एक मछलियों से भरा पॉट था। उसमें मछलियों को तैरते देखता तो उसे बड़ा अच्छा लगता। देखो लाल वाली मछली आगे तैरकर काली वाली मछली से आगे बढ़ गई है। औरेंज वाली मछली कैसे बहुत धीरे-धीरे चल रही है। अचानक से बस कहीं झटके से रूकी और मयंक की नींद खुल गई। उसका स्टाप आ गया था। मयंक बस से नीचे उतरा। तो उसको वही छोटे-छोटे चूजे और पॉट की मछलियों की याद आने लगी। एक बारगी वो बड़ा होकर भी अपने बचपन को याद करने लगा। उसको वो आगे-पीछे भागते रंग-बिरंगे चूजे बहुत प्यारे लगते थे। उसको पॉट की रंग-बिरंगी और एक-दूसरे के आगे-पीछे भागती हुई मछलियां भी बहुत भाती थी। वो सोचने लगा आज कितना शुभ दिन है। आज उसका जन्मदिन है। और आज वो उन चूजों को उन रंग-बिरंगी मछलियों को खायेगा। अपने जन्मदिन पर वो किसी की हत्या करेगा। इस शुभ दिन पर। नहीं-नहीं वो ऐसा बिल्कुल नहीं करेगा। वो आज क्या कभी भी अब किसी जानवर की हत्या केवल अपने खाने-पीने के लिये कभी नहीं करेगा। नहीं-नहीं ऐसा वो बिल्कुल भी नहीं करेगा। बल्कि आज क्या वो आज से कभी-भी जीव की हत्या नहीं करेगा। चूजों के साथ-साथ उसे नानी भी याद आ गयी। वो कुछ सालों पहले एक बार नानी से मिला था। नानी के पैर अच्छे से काम नहीं कर रहे थे। वो बहुत धीरे-धीरे बिल्कुल चुजों की तरह चल रही थी। रंग-बिरंगी मछलियों की तरह रेंग रही थी।
मयंक के आंखों के कोर भींगने लगे। उसने रूमाल निकालकर आंखों को साफ किया।
फिर फोन निकालकर कादंबरी मौसी को लगाया- ‘मौसी, आप पूछ रही थीं ना कि मैं, मेरे जन्मदिन पर क्या खाऊंगा।’
‘हां, मयंक तुम इतने दिनों के बाद हमारे घर आ रहे हो। तुम्हारी पसंद का ही आज खाना बनेगा। तुम्हारे मौसाजी, मछली या चिकन लेने के लिए निकलने ही वाले हैं। बोलो बेटा क्या खाओगे? आज तुम्हारी पसंद का ही खाना बनेगा।’
‘मौसी मेरी बात मानोगी। आज मेरा जन्मदिन है। और मैं अपने जनमदिन पर किसी की हत्या नहीं करना चाहता। और अपने ही जन्मदिन क्यों बल्कि किसी के जन्मदिन पर भी मैं किसी की हत्या करना या होने देना पसंद नहीं करूंगा। आज से ये मैं प्रण लेता हूँ। किए कभी भी अपने जीभ के स्वाद के लिए किसी भी जीव-जंतु की हत्या नहीं करूंगा।’
दूसरी तरफ कादंबरी सकते में थी। उसको कोई जबाब देते नहीं बन रहा था।
उसने फिर से एक बार मयंक को टटोलने की गरज से पूछा- ‘अच्छा ठीक है। आज भर खा लो। तमको तो पसंद है ना नानवेज। अपने अगले जन्मदिन पर अगले साल से मत खाना।’
‘नहीं मौसी। मैनें आज से ही प्रण लिया है। कि मैं अब अपने स्वाद के लिये किसी जीव की हत्या नहीं करूँगा।’
‘ठीक है, तब क्या खाओगे?’
‘खीर-पूड़ी...।’
‘ठीक है, तुम घर आओ, नानी से मिलो। तुम्हारे लिये खीर पुड़ी बनाती हूँ।’ (समाप्त)
-मेघदूत मार्किट पुसरो
बोकारो, झारखंड, पिन 829144