दक्षिण भारत के कश्मीर ‘लंबासिंगी’ में स्नोफॉल का आनंद
मुझे दक्षिण भारत अनेक कारणों से पसंद है। ऐसा नहीं है कि मुझे उत्तर भारत या फिर पूर्वी व पश्चिमी भारत पसंद नहीं हैं। मैं एक देश प्रेमी व्यक्ति हूं और मैं कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत से प्रेम करता हूं। लेकिन दक्षिण भारत की बहुत सी चीज़ें मुझे अचरज में डाल देती हैं। उसका शानदार द्रविड़ इतिहास, मंत्रमुग्ध करने वाले समुद्री तट, स्वादिष्ट व्यंजन और न जाने क्या क्या, जिनको गिनवाने लगूं तो पूरा लेख खत्म हो जाये और फिर भी बात अधूरी रह जायेगी। दरअसल दक्षिण भारत एक अलग ही दुनिया है। शायद इसी वजह से विख्यात शायर दाग देहलवी ने अपने एक शेर में कहा था कि दिल्ली से दक्षिण में आने पर उन्हें यह एहसास हुआ कि ‘हम रहते हैं हिंदुस्तान में, हिंदुस्तान से दूर/होता है ये भी दर्द वतन में कभी कभी’। उनकी इस बात में मुझे उस समय सच्चाई नज़र आयी जब आंध्रप्रदेश के एक छोटे से गांव में मैंने स्नोफॉल होते हुए देखी। यह दक्षिण भारत में एकमात्र जगह है, जहां बर्फबारी होती है।
आमतौर से आप दक्षिण भारत को बर्फबारी से कभी नहीं जोड़ते हैं। जब भारत में स्नोफॉल का ज़िक्र आता है, तो गुलमर्ग, नैनीताल व मनाली जैसी जगह ही जहन में आती हैं, जो सभी उत्तर भारत में हैं। दक्षिण भारत की ख्याति सूखे व नमी से जुड़ी हुई है। लेकिन कुदरत के खेल निराले हैं। मैं विशाखापत्तनम एयरपोर्ट पर था और मुझे श्रीनगर के लिए फ्लाइट बुक करनी थी; क्योंकि इस बार मैं गुलमर्ग की स्नोफॉल को मिस नहीं करना चाहता था। तभी मेरी मुलाकात एक पुराने परिचित से हो गई। बातों बातों में उन्होंने मुझे बताया कि स्नोफॉल देखने के लिए इतनी दूर क्यों जा रहे हो, विशाखापत्तनम से मात्र 115 किमी के फासले पर एक छोटा सा गांव है, लम्बासिंगी, वहां जाकर स्नोफॉल का आनंद लो। आंध्र प्रदेश के गांव में स्नोफॉल! मैं आश्चर्य में पड़ गया।
लम्बासिंगी दक्षिण भारत में एकमात्र जगह है, जहां स्नोफॉल होती है। मैं इस कुदरत के करिश्मे को देखने के लिए उतावला हो गया। मैंने तुरंत ही अपने कार्यक्रम में परिवर्तन किया और लम्बासिंगी जाने के लिए टैक्सी हायर कर ली। रास्ते में चालक ने मुझे बताया कि सीधे अनाकापल्ले के लिए भी ट्रेन मिलती है, जहां से लम्बासिंगी मात्र 72 किमी के फासले पर है। मैं जब लगभग दो घंटे की ड्राइव के बाद लम्बासिंगी पहुंचा तो संयोग से वहां हल्की-हल्की स्नोफॉल हो रही थी। लम्बासिंगी में गुलमर्ग की तरह स्नोफॉल नहीं होती है कि आप जाएं और कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद आपको स्नोफॉल का आनंद उठाने का अवसर मिल ही जायेगा। लम्बासिंगी में अगर आपको स्नोफॉल मिल जाये तो आप स्वयं को किस्मत का धनी समझें। किस्मत से मुझे लम्बासिंगी का स्नोफॉल देखने का मौका मिल गया। लेकिन मेरी उत्सुकता यह जानने में अधिक थी कि ‘आंध्रप्रदेश का कश्मीर’ के नाम से विख्यात लम्बासिंगी में स्नोफॉल की वजह क्या है? लम्बासिंगी समुद्र की सतह से मात्र 1,000 मीटर ऊंचा है। उसके पास हिमालय भी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद उसके पास एक विशिष्ट फीचर है कि हरियाली और महकते खिलते फूलों के बीच में कभी-कभी स्नोफॉल का नैसर्गिक अनुभव किया जा सकता है बशर्ते आप किस्मत के धनी हों।
यह स्नोफॉल लम्बासिंगी की ऊंचाई के कारण होता है। उसकी ऊंचाई विशिष्ट वातावरण उत्पन्न करती है, जो तापमान कम करने में काम आती है। जाड़ों के महीनों में यहां तापमान माइनस 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक नीचे चला जाता है। विशाखापत्तनम के चिंतापल्ली कस्बे में स्थित लम्बासिंगी दक्षिण भारत में एकमात्र जगह है, जहां स्नोफॉल को अनुभव किया जा सकता है। लम्बासिंगी में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए और भी जगह हैं। इनमें से एक कोथापल्ली झरनों को देखते हुए मुझे प्रकृति की सुंदरता व शक्ति का एहसास हुआ। झरना रॉक्स से होता हुआ एक तालाब में गिरता है। यह स्थानीय लोगों और बाहर से आने वाले लोगों के लिए पॉपुलर पिकनिक स्पॉट बन गया है। जब मैं लम्बासिंगी आ रहा था, तो मेरा ‘स्वागत’ पीले व काले सूसन फूलों के गार्डेंस ने किया था और शाम को वापस लौटते हुए मैंने ऐसा गज़ब का सनसेट देखा जो मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। जैसा कि मैंने बताया कि लम्बासिंगी में स्नोफॉल का अनुभव किस्मत के धनी ही कर पाते हैं, लेकिन अगर आप नवम्बर व जनवरी के बीच यहां की यात्रा करेंगे तो स्नोफॉल देखने की संभावना बढ़ जायेगी। लम्बासिंगी की यात्रा का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता इसके आकर्षण में चार चांद लगा देती है। लम्बासिंगी सिर्फ स्नोफॉल का ही वंडरलैंड नहीं है बल्कि यह भारत की विशिष्ट सुंदरता और छुपे हुए आश्चर्यों का भी प्रतीक है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर