रेपो रेट स्थिर, ईएमआई में नहीं मिलेगी कोई राहत
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने 6 दिसम्बर 2024 को लगातार 11वीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया। इसका मतलब यह है कि पिछले तीन सालों से गाड़ी, घर और कई दूसरी मदों के लिए जिन लोगों ने बैंक या वित्तीय संस्थानों से कज़र् ले रखा है और उसकी भारी भरकम ईएमआई चुका रहे हैं, उन्हें इससे कोई राहत नहीं मिलेगी। पिछले तीन सालों से बढ़ी हुए ब्याज दरों से पिस रहे करीब 20 करोड़ भारतीय अभी लगातार जानलेवा बने ईएमआई के फंदे से जकड़े रहेंगे। लेकिन आरबीआई के अधिकारियों का खिलाड़ीपना तो देखिए, वे रेपो रेट कम न किये जाने का नतीजा लोगों के सामने कुछ इस तरह से रख रहे हैं, मानों यह उनके लिए राहत की बात हो। अपने इस फैसले पर आरबीआई कहती है, ‘आपके लोन की ईएमआई नहीं बढ़ने वाली है’।
मतलब यह कि इस बात पर कोई अफसोस दिखाने के कि कोरोना के बाद लगातार बढ़ी हुई ब्याज दरों से पिस रहे लोगों को कोई राहत नहीं मिली, उल्टे आरबीआई इसी बात को राहत बनाकर पेश कर रही है कि आपकी ईएमआई और नहीं बढ़ेगी। सवाल है आखिर आरबीआई और कितना बढ़ाना चाहती है? कोरोना के बाद करीब डेढ़ साल के भीतर लगातार रेपो रेट बढ़ाकर जो ईएमआई की किस्तें अमूमन 6 से 7 हजार रुपये के बीच थीं, वो 8.5 से 9.5 हज़ार रूपये तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन आरबीआई के अधिकारी और गवर्नर बड़ी मासूमियत से लोगों को उल्टे राहत देने का भ्रम देते हुए, यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि खुश हो जाइये, फिलहाल आप जो ईएमआई दे रहे हैं, वही देते रहेंगे। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और नेशनल हाउसिंग बैंक की अलग अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक मार्च 2024 में 4 करोड़ भारतीयों ने सभी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से अकेले होम लोन ही करीब 25 लाख करोड़ रुपये का ले रखा है। इसमें से 60 से 65 फीसदी होम लोन तो अकेले दो सरकारी बैंकों—स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक द्वारा लिया गया है।
हर महीने इन होम लोन के कारण ही आम लोगों को कोरोना के बाद से करीब 10 से 12 हज़ार करोड़ रुपये का ब्याज ज्यादा चुकाना पड़ रहा है। देश में करीब 15 करोड़ लोग हर महीने विभिन्न तरह की ईएमआई का भुगतान करते हैं। इनमें 15 से 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो एक साथ तीन-तीन, चार-चार ईएमआई भर रहे हैं। ऐसे लोगों को 2021 के बाद से लगातार ब्याज की बढ़ी दरों के कारण हर महीने अगर वो 70 से 80 हज़ार रुपये की ईएमआई दे रहे हैं तो 15 से 21 हज़ार रुपये तक उन्हें कोरोना के समय से ज्यादा देना पड़ रहा है। इसका मतलब यह है कि ऐसे लोग साल में बढ़ी हुई ब्याज दरों के कारण डेढ़ से पौने दो लाख रुपये ज्यादा दे रहे हैं। लेकिन आरबीआई को लोगों के गले में ईएमआई का यह जानलेवा दर्द महसूस ही नहीं हो रहा। आरबीआई अपनी सारी ताकत खाद्यान्नों के चलते बढ़ने वाली महंगाई को अंकुश लगाने पर भिड़ी हुई है और इसके लिए वह आम लोगों से सहानुभूति की भी उम्मीद कर रही है। आरबीआई का मानना है कि अगर रेपो रेट घटा दिये गये तो महंगाई 7 से 8 फीसदी तक जा सकती है। लेकिन वह यह नहीं देख रहे कि महंगाई से निपटने की तो फिर भी एक जुगत यह है कि लोग खरीदारी में कटौती करके किसी सूरत से इससे निपटने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जिन लोगों ने घर और वाहन खरीद रखे हैं, अगर उनकी बढ़ी हुई ईएमआई में किसी तरह की राहत नहीं मिल रही तो उनके साथ कितनी नाइंसाफी हो रही है।
मालूम हो कि बैंकों से लोगों ने जितना कज़र् ले रखा है, उसमें 60 फीसदी से ज्यादा होम लोन और ऑटो लोन ही हैं। जिन्हें चाह कर भी कज़र् लेने वाले लोग सरेंडर नहीं कर सकते और बढ़ी हुई ईएमआई के फंदे से लगातार अपनी हालत बद से बदतर बनाते जा रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों को इस बार उम्मीद थी कि कम से कम 11वीं बार यथास्थिति की तंद्रा से आरबीआई की गवर्नर शक्तिकांत दास जागेंगे और कम से कम 25 बेसिस प्वाइंट रेपो दरों को कटौती तो करेंगे ही। इससे मझोली ईएमआई देने वालों को कुछ सौ से लेकर 5-7 हज़ार रुपये तक की हर महीने राहत तो मिलती। लेकिन आरबीआई ने अपना वही पुराना राग दोहराया है कि अगर रेपो रेट कम कर दिया गया तो, बाज़ार में पूंजी की भरमार हो जायेगी और महंगाई पर काबू पाना मुश्किल हो जायेगा। हालांकि बैंक ने अपनी तिमाही समीक्षा में यह भी पाया है कि जीडीपी का ग्रोथ रेट 6.7 फीसदी से घटकर 5.4 फीसदी तक पहुंचना, एक बड़ा झटका है। इससे साफ मतलब है कि घरेलू बाज़ार में निजी मांग में बेहद कमज़ोरी आयी है। इससे सालाना ग्रोथ रेट भी 1 से 1.5 फीसदी तक प्रभावित हुई है।
ऐसा होना स्वाभाविक है। जब लगातार पहले से कज़र् की किस्तें दे रहे लोगों को कोई राहत नहीं मिलेगी तो आखिर वे अपनी मांग को कम नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? रियल एस्टेट के बाज़ार में महंगे मकानों की मांग भले 4 से 10 फीसदी तक बनी हुई हो, लेकिन छोटे और मझौले मकानों की मांग में बेहद गिरावट आ चुकी है। प्रॉपर्टी का सैकेंडरी बाज़ार तो लोन की दरों के कारण लगभग ठप ही पड़ा है। छोटे मकान बिक ही नहीं रहे, क्योंकि 15 से 20 लाख तक का लोन लेने पर इन दिनों 12 से 14.5 हज़ार रुपये तक प्रतिमाह ब्याज में चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि बाज़ार में इससे भी कम में दो बीएचके का किराये में मकान उपलब्ध है, तो भला लोग अपने के नाम पर ब्याज का इतना जानलेवा फंदा डालकर क्यों मकान लेंगे? यह अकारण नहीं है कि मुम्बई के रियल एस्टेट बाज़ार में 10 से 20 लाख वाले मकानों की मांग दो फीसदी भी नहीं है।
दरअसल यह सरकार का अपना निजी विवेक है कि वह पहले से कज़र् ले चुके लोगों को लगातार ब्याज की दरों पर सख्त पहरा बिठाकर उनकी आर्थिक हालत कमज़ोर करे या नये लोगों को ब्याज लेने के लिए प्रोत्साहित करके अपनी आय को बढ़ाए। इसके लिए कज़र् की दरों को कम करना होगा, जिससे पहले से कज़र् लिए लोगों को भी थोड़ी राहत महसूस हो। मगर आम लोगों का ही बहाना बनाकर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया लगातार मिडल क्लास लोगों से, जिन्होंने करीब 60 से 70 लाख करोड़ रुपये का विभिनन वजहों से कज़र् ले रखा है, उनसे हर महीने भारी भरकम ब्याज दरों के कारण औसतन 60 से 70 हज़ार करोड़ रुपये ज्यादा वसूल रही है। पिछले तीन सालों में एक बार भी रेपो रेट की दरें कम नहीं हुईं, पहले करीब सवा साल तक लगातार बढ़ती रहीं और बढ़ते बढ़ते जब खतरनाक ऊंचाई तक पहुंच गई हैं तो आरबीआई की पिछली 11 समीक्षा बैठकों के समयांतराल में पहले से ही बढ़ी हुई ये ब्याज दरें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं। सरकार को और आरबीआई को आम लोगों को राहत देने के नाम पर विभिन्न तरह का कज़र् लिए देश के करीब 25 करोड़ लोगों को इस तरह ईएमआई के शिकंजे में नहीं कसना चाहिए। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर