प्रियंका गांधी के गांधीवादी थैले की राजनीति
राजनीतिक सेलिब्रिटी कांग्रेस महासचिव और वायनाड सांसद प्रियंका गांधी का ‘बौद्धिक गांधीवादी थैला’ अब एक नहीं बल्कि दो अंतर्राष्ट्रीय विवादों की ओर लोगों का ध्यान बरबस खींच चुका है जिसमें इज़रायल द्वारा फलस्तीनी सुन्नी मुसलमान उत्पीड़न और बांग्लादेशी हिन्दू/ईसाई उत्पीड़न का मसला प्रमुख है। इस बीच सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स के सवालों और जवाबों के बीच उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यूपी-इज़रायल से जुड़ी रोज़गार परक टिप्पणी ने इस मामले पर देशी तड़का जड़ दिया है।
इससे सोशल मीडिया पर शुरू हुईं सांप्रदायिक बहसों के साथ-साथ पापी पेट के सवाल को भी एक नया दूरदर्शी आयाम मिल चुका है। वहीं यदि राजनीतिक नज़रिए से देखें तो पहले सुन्नी मुस्लिम बहुल फलस्तीन से जुडे सवालों पर गांधीवादी थैला संसद में जाते ववक्त प्रदर्शित करके और उस पर विवाद उत्पन्न होने के बाद दूसरे दिन बांग्लादेशी हिंदुओं और ईसाइयों के उत्पीड़न से जुड़ा दूसरा थैला प्रदर्शित करके युवा सांसद प्रियंका गांधी ने अपने पूर्वज प्रधानमंत्रियों-जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कांग्रेसी मध्य मार्ग पर पुन: लौटने का दूरदर्शिता पूर्ण संकेत दिया है।
ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि जहां पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने कांग्रेस को दक्षिण मुखी बनाने के चक्कर में उत्तर भारतीयों को पार्टी से दूर कर दिया, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अल्पसंख्यक प्रथम की बात छेड़कर बहुसंख्यकों को नाराज़ कर दिया। जानकार बताते हैं कि ऐसा करके इन लोगों ने भले ही अपना-अपना गठबंधन कार्यकाल पूरा कर लिया, लेकिन कांग्रेस खोखली होती गई। हालांकि उसके बाद पार्टी का जनाधार इतना लुढ़का कि 2014 और 2019 में उसे नेता प्रतिपक्ष का तमगा भी नहीं मिला। हां, राहुल गांधी के जुझारूपन ने 2024 में यह तमगा हासिल कर लिया और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अपनी बहन प्रियंका गांधी को भी सेफ सियासी मोड में अपनी छोड़ी हुई सीट से लोकसभा ले आए। वहीं, लोकसभा में आते ही प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ वाले तेवर दिखाने शुरू कर दिए।
सर्वप्रथम उन्होंने भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लोकसभा में आयोजित विशेष बहस पर प्रथम विपक्षी सम्बोधन देते हुए और उसके बाद बैग पॉलिटिक्स को हवा देकर जनमानस को यह संकेत दे दिया कि भाई-बहन की यह जोड़ी कोई न कोई नया सियासी गुल खिलाती रहेगी जो कि राजनीति की पहली शर्त समझी जाती है। वहीं बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के बीच ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगियों को अपनी हद में रहने के परोक्ष संकेत देकर भाई-बहन की जोड़ी ने अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को भी स्पष्ट कर दिया है क्योंकि उन्हें पता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प केवल कांग्रेस है जिसे जमीनी स्तर पर मज़बूत करने के लिए चुनावी वैशाखियों को उनकी हद में रखना होगा ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रहे।
वहीं मोदी के प्रबल विरोधों के बीच राहुल गांधी की अल्पसंख्यक समर्थक और उद्योगपति विरोधी छवि बनने से भी कांग्रेस भीतर ही भीतर चिंतित है। इसलिए उसने प्रियंका गांधी को आगे करके अपना मध्यम मार्ग वाला कांग्रेस कार्ड फिर फेंका है ताकि ‘इंडिया’ गठबंधन में नेतृत्व के सवाल पर यदि कांग्रेस अलग-थलग भी पड़ जाए तो उसका मध्यममार्गी स्वरूप जनमानस को रिझाए, जिसके दम पर वह लगभग 6 दशकों तक वामपंथियों और दक्षिणपंथियों को पछाड़ती रही है। यही वजह है कि राहुल गांधी के साथ-साथ प्रियंका गांधी ने भी खुद को सियासी चर्चा का विषय बनाये रखने के लिए अपने नवप्रयोगों को हवा दी जिससे राजनीतिक चर्चाओं का कोर्स ही बदल गया। बताते चलें कि संसद के मौजूदा सत्र से अपनी संसदीय पारी की शुरुआत करने वाली कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी के बैग इन दिनों खासी चर्चा और विवाद का केंद्र बन रहे हैं। इससे उनकी इंदिरा गांधी वाली छवि भी परिपुष्ट हुई है। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी की रणनीति यह है कि 2029 में मोदी-योगी के मुकाबले राहुल-प्रियंका के फेस को इतना मजबूत बना दिया जाए कि उन्हें ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगी मनमाफिक नचाने की जुर्रत ही नहीं कर सकें क्योंकि वह इस बात को समझती हैं कि पीएम फेस के लिए राहुल का मुकाबला मोदी, योगी, फडणवीस, सम्राट आदि से कम और अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल जैसों से ज्यादा होगा। इसलिए उन्होंने कांग्रेस को अपने बूते आगे बढ़ाने का निश्चय किया है और रणनीतिक रूप से गठबंधन सहयोगियों के लिए अपने दरवाजे खोल रखे हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर!
यही वजह है कि कांग्रेस ने अदाणी मुद्दे पर विरोध करने के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन के सपा और टीएमसी जैसे सहयोगियों के साथ छोड़ते ही विगत सोमवार को प्रियंका गांधी ने अपनी बैग पॉलिटिक्स शुरू कर दी ताकि ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगियों पर भी नैतिक दबाव बड़े। समझा जाता है कि अपने बैग को लेकर वह उस समय चर्चा का केंद्र बन गईं, जब उन्होंने फिलिस्तीन लिखा बैग अपने कंधे पर लटकाया हुआ था और संसद में प्रवेश कर रही थीं। हालांकि इस विवाद के बाद प्रियंका गांधी ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं क्या पहनूंगी, यह कौन तय करेगा? यह पैतृक समाज ही है जो यह तय करता है कि महिलाएं क्या पहनेंगी? उनका कहना था कि मैं कई बार बता चुकी हूं कि इस बारे में मेरी क्या मान्यताएं हैं। अगर आप मेरा ट्विटर हैंडल देखेंगे तो वहां आपको मेरा बयान मिलेगा। वहीं भाजपा नेताओं ने इस पर तल्ख टिप्पणी की कि एक्स (ट्वीटर), बैग और बयानों से वह लोगों का ध्यान चाहे जितना खींच लें, लेकिन अपनी पार्टी में कार्यकर्ताओं के अकाल को दूर करने के लिए उन्हें सड़कों की धूल फांकनी ही पड़ेगी। राष्ट्रवादी मुद्दों की ओर लौटना ही पड़ेगा अन्यथा विपक्षियों की नेत्री बनने की सियासत वो करती रहें, सत्ता की दिल्ली अभी उनके लिए बहुत दूर है!