अब पिछेती बिजाई वाले गेहूं से अधिक उत्पादन कैसे लिया जाए ?
धान के मंडीकरण में किसानों को मुश्किलें आने के कारण कटाई पिछेती हो जाने तथा डी.ए.पी. की उपलब्धता में रुकावटों का सामना करने के कारण गेहूं की बिजाई में देरी हो गई, परन्तु फिर भी किसानों ने प्रयास करके धान, बासमती तथा कपास-नरमा की मुख्य फसलें सम्भाल कर लगभग 99 प्रतिशत रकबे पर बिजाई 10 दिसम्बर तक कर ही ली थी। चाहे बिजाई नवम्बर में हो जानी चाहिए थी, परन्तु इस वर्ष कुछ ठंड देरी से पड़ने के कारण लेट बोए गए गेहूं का उत्पादन भी कुछ ठीक ही रहने की सम्भावना है। कुल बिजाई वाले 35 लाख हैक्टेयर रकबे में से जो 1-1.5 प्रतिशत रकबा शेष बचा है, वह आलू, मटर या गन्ने की गांठों का है या कुछ रकबा कपास पट्टी में है। इस रकबे पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) के उपकुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल ने परामर्श देते हुए किसानों को पिछेती बिजाई के लिए पी.बी.डब्ल्यू.-752, पी.बी.डब्ल्यू.-771 तथा पी.बी.डब्ल्यू.-757 किस्मों की बिजाई करने की सिफारिश की है। पी.बी.डब्ल्यू.-771 किस्म पकने को लगभग 133 दिन लेती है और पी.बी.डब्ल्यू.-752 किस्म 130 दिन। पहली किस्मों की औसत ऊंचाई क्रमश: 80 सैंटीमीटर तथा 89 सैंटीमीटर है। दिसम्बर के अंत में तथा जनवरी के शुरू में बिजाई के लिए पी.बी.डब्ल्यू.-757 किस्म सिफारिश की गई है, जो पकने को 114 दिन लेती है और इसकी औसत ऊंचाई 82 सैंटीमीटर है। बहुत देरी से दिसम्बर के अंत तथा जनवरी के शुरू में बिजाई के लिए एच.डी.-3298 किस्म भी किसानों को उपलब्ध है, जो आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा सिफारिश की गई है।
डा. गोसल ने देरी से बोई जाने वाली इन किस्मों में 40 किलो प्रति एकड़ बीज डालने की सिफारिश की है। पौधों में 15 सैंटीमीटर की दूरी रखी जानी चाहिए और नदीनों को प्रभावशाली विधियों एवं नदीन-नाशक इस्तेमाल करके काबू किया जाना चाहिए। किसानों को इन किस्मों में 45 किलो प्रति एकड़ यूरिया बिजाई के समय तथा पूरा फास्फोरस और पोटाश भी बिजाई के साथ ही डाल देने चाहिएं। डी.ए.पी.-55 किलो या इससे अधिक डाले जाने की स्थिति में बिजाई के समय फास्फोरस डालने की ज़रूरत नहीं। पहली सिंचाई के समय यूरिया की 45 किलो प्रति एकड़ की खुराक दे देनी चाहिए। अब 15 दिसम्बर के बाद बोए गए गेहूं को यूरिया की खुराक 25 प्रतिशत कम कर देनी चाहिए। यूरिया नीम-कोटिड ही इस्तेमाल किया जाए।
चाहे पिछेती बिजाई में उत्पादन कम होता है, परन्तु तापमान ठीक होने के कारण तथा किसानों द्वारा इन सिफारिशों को अपनाए जाने के कारण उत्पादन में आम तौर पर स्वाभाविक कमी 1.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से कम होने की संभावना है। अधिक उत्पादन लेने के लिए बिजाई के समय किसानों को बीज साफ तथा ग्रेड कर लेना चाहिए। छोटे झुर्रियों वाले बीज तथा नदीनों के बीज पूरी तरह निकाल देने चाहिएं। दीमक के हमले वाली ज़मीनों में बीज को क्लोरोपाइरोफास से संशोधित करके रैक्सल या वीटावैक्स पावर 75 डब्ल्यू.एस. या प्रोवैक्स से संशोधित कर लेना चाहिए। बीज बिजाई के समय ही संशोधित किया गया हो। बीज का संशोधन बिजाई से एक माह या इससे पहले का नहीं होना चाहिए। संशोधक ड्रम का इस्तेमाल करके बीज का संशोधन अच्छी तरह से कर लेना चाहिए। पिछेती बिजाई में गेहूं के उगने की शक्ति बढ़ाने के लिए बीज को भिगो कर बाद में अच्छी तरह सूखा कर बिजाई करनी चाहिए। अधिक उत्पादन लेने के लिए दो-तरफा ढंग अपना कर बिजाई करनी चाहिए। बिजाई के बाद थोड़ा-सा सुहागा चला देना चाहिए। फसल को नाइट्रोजन नीम-कोटिड यूरिया के माध्यम से समय पर दे देनी चाहिए। पिछेती बिजाई वाले गेहूं को सही विकास तथा वृद्धि के लिए तत्वों की भी ज़रूरत पड़ती है। किसान प्राथमिक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि तो विभिन्न खादों के रूप में डाल लेते हैं, परन्तु लघु एवं सैकेंडरी तत्वों की कमी आम तौर पर फसल को आती है। मैगनीज़ तथा गंधक की कमी भी अक्सर फसल को आ जाती है। पूरा उत्पादन लेने के लिए इन खुराकी तत्वों का ज़रूरत के अनुसार इस्तेमाल कर लेना चाहिए। इन तत्वों संबंधी विशेष तौर पर मैगनीज़ तथा गंधक की कमी संबंधी फसल का सर्वेक्षण करते रहना चाहिए।