श्रीलंका के नये राष्ट्रपति की पहल

श्रीलंका हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत का सबसे निकटतम पड़ोसी देश है। भारत के साथ इसके सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने हैं। अशोक महान के समय में भारत से ही बुद्ध धर्म यहां पर गया था। भारतीय मूल के तमिल लोग यहां सैकड़ों वर्षों से  बसे हुए हैं। दोनों के व्यापारिक संबंध भी सदियों पुराने हैं। श्रीलंका की आर्थिक निर्भरता बड़ी सीमा तक भारत पर ही निर्भर करती है। हिन्द महासागर विश्व भर के देशों को व्यापारिक एवं अन्य संबंधों के लिए जोड़ने वाला समुद्री क्षेत्र है, जिसमें अक्सर अनेक प्रकार की चुनौतियां बनी रहती हैं। दोनों पड़ोसी देशों को इस बात का एहसास है। इसीलिए कोलम्बो सुरक्षा सम्मेलन, जिसमें समुद्र के अन्य निकटतम पड़ोसी देश मालदीव एवं मारीशस भी शामिल हैं, ने आपसी समझौतों द्वारा इन चुनौतियों का मुकाबला करने की योजनाबंदी की हुई है। लगभग दो वर्ष पहले श्रीलंका को एक बड़े आर्थिक संकट में से गुज़रना पड़ा था। वहां बेहद परेशानी वाले हालात में लोग गलियों-बाज़ारों में उतर आये थे। तत्कालीन सरकार के लिए वहां शांति बहाल करना बेहद कठिन हो गया था। उस समय भारत ने ही 127 करोड़ रुपए (15 मिलियन डॉलर) की आर्थिक सहायता देकर जहां उसे एक बड़ा सहारा दिया था, वहीं लगातार इस देश के आधार-भूत ढांचे को मज़बूत एवं विकसित करने के लिए भी अपनी पूरी सहायता दी थी।
वर्ष भर पहले वहां मज़बूत हुई नैशनल पीपुल्स पॉवर पार्टी ने चुनावों में भारी जीत प्राप्त की थी और अनुरा कुमार दिसानायके के नेतृत्व में मार्क्सवादी सरकार का गठन किया गया था। चीन ने भी श्रीलंका को ब्याज पर भारी राशि दी हुई है। नये हालात के दृष्टिगत यह भी महसूस होने लगा था कि दिसानायके की सरकार का अधिक झुकाव चीन की ओर होगा परन्तु उनकी 15 से 17 दिसम्बर तक की भारत यात्रा ने कई बातों को स्पष्ट कर दिया है। दिसानायके की अपना पद ग्रहण करने के बाद की यह पहली यात्रा थी। उन्होंने यहां आकर यह प्रभाव देने का यत्न किया है कि श्रीलंका पहले की भांति ही भारत के साथ अपने परम्परागत रिश्तों को महत्त्व देता है। यह भी कि वह भारत के साथ अधिक से अधिक व्यापारिक संबंध बनाये रखने का इच्छुक है और देश के पुनर्निर्माण के लिए भारत की पूरी सहायता चाहता है। सरकार बनने से पहले भी अपनी पार्टी की ओर से दिसानायके भारत आये थे। उन्हें श्रीलंका के भारत के साथ नज़दीकी संबंधों का पूरा एहसास है। उन्होंने अपनी इस यात्रा के दौरान भारत को विश्वास दिलाया है कि उनकी विदेश नीति में भारत तरजीही देश है। भारत ने कठिन समय उसकी लगभग 34,000 करोड़ रुपए की सहायता की थी। अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों में भी भारत ने श्रीलंका के लिए लगातार गवाही दी है।
दिसानायके की यह यात्रा जहां दोनों देशों में हर तरह के सन्देहों को दूर करने में सहायक होगी, वहीं आपसी व्यापार दोनों देशों की मुद्रा में करने का समझौता आदान-प्रदान के अधिक मार्ग खोलने में सहायक होगा। भारत की विदेश नीति अपने पड़ोसियों के साथ सुखद संबंध बनाने की रही है। यह भी कि वह अपने पड़ोसियों के साथ समानता वाला व्यवहार करने का इच्छुक रहा है, न कि किसी तरह के आधिपत्य वाला। श्रीलंका की भारत के प्रति ऐसी नीति उसके सामने खड़ी हर तरह की चुनौतियों को दूर करने में सहायक हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

#श्रीलंका के नये राष्ट्रपति की पहल