भगवत् गीता से उत्तम कुछ भी नहीं !

गीता जयन्ती पर विशेष

गीता सभी शास्त्रों का सार है, इसलिए इसको उपनिषद भी कहा जाता है। उपनिषद का अर्थ है जो पास बैठकर सुनाया जाता है। जब तक बोलने वाला और सुनने वाला दिल के निकट नहीं आते, उनमें बहुत दूरी बनी रहती है। बोलने वाला कुछ कहता है, और सुनने वाला उससे अपना मतलब निकाल लेता है। पहले आओ और निकट बैठो-अर्जुन बनो। अर्जुन का अर्थ है- जिसको ज्ञान की प्यास है, जो कुछ सीखना चाहता है, जानना चाहता है और आज़ाद होना चाहता है। जब आप अर्जुन बनोगे, तभी आप कृष्ण को मिलोगे।
हम सभी की ज़िन्दगी एक सवाल से शुरू होती है। बच्चे तीन वर्ष की आयु से ही सवाल पूछना शुरूकर देते हैं। कहा जाता है कि बिना पूछे कुछ कहना अक्ल की निशानी नहीं है। इसी तरह महाभारत का अंग भगवत् गीता भी एक सवाल के साथ शुरू होती है। जंग के मैदान में जब अर्जुन पूरी तरह उदास था और चारों ओर से अन्धेरों में घिरा हुआ था तो भगवान श्री कृष्ण ने उसको गीता का ज्ञान दिया। इसलिए आज के समय में जब चारों ओर दु:ख, दर्द और संघर्ष है, तो भगवत् गीता और भी प्रासंगिक हो जाती है।
महाभारत युद्ध के बाद एक बार अर्जुन ने भगवान कृष्ण को कहा, ‘हे कृष्ण! युद्ध के दौरान बहुत शोर शराबा था। मैं उदास था और उस युद्ध के माहौल में आपने गीता का पाठ किया था, लेकिन उस समय मुझे पता नहीं था कि कितना मैं समझ पाया। अब सबकुछ शांत है, और मेरा गीता को सुनने का मन है। आप अब मुझे गीता सुनाओ।
भगवान श्री कृष्ण ने जवाब दिया, ‘महाभारत के समय गीता का जन्म मुझ से हुआ था। मैंने उस समय जो भी कहा था, अब मैं उसको दोहरा नहीं सकता।’
गीता को बहुत महत्व दिया गया है। जैसे संत का जन्म होता है, गीता का जन्म भी इसी प्रकार हुआ था। यही कारण है कि गीता जयन्ती मनाई जाती है। गीता परमात्मा की आवाज़ है, पूर्ण ब्रह्म की आवाज़ है। गीता को योग का ज्ञान भी कहा जाता है। भगवत् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने योग के तीन मार्गों- भक्ति, क्रिया और ज्ञान- को मुक्ति के साधन के तौर पर दर्शाया है। 
आजकल हम योगा को सिर्फ शारीरिक व्यायाम समझते हैं, पर योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम नहीं है। इसी प्रकार प्राणायाम भी सिर्फ सांस लेना और बाहर निकालने की प्रक्रिया नहीं है। व्यायाम और प्राणायाम दोनों जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर जाने वाले मार्ग हैं। ये मानसिक तनाव को दूर करने और एकाग्रता बढ़ाने के साधन हैं।
भगवान का शब्द-गीता- हमारे देश में पांच हज़ार वर्षों से है। यदि आप अमरीका या अन्य देशों में जाकर बाईबल के बारे में पुछें तो लोग कहेंगे कि उन्होंने यह पढ़ी है लेकिन हमारे देश में जब हम लोगों को पूछते हैं, ‘क्या आपने गीता पढ़ी है?’ तो कई लोग चुप हो जाते हैं। जीवन में से दु:खों को दूर करने के लिए ज्ञान से उत्तम और कोई चीज़ नहीं है। इसलिए गीता पढ़ो और इसको सिर्फ एक बार पढ़ना ही काफी नहीं है, इसको बार-बार पढ़ो।

#भगवत् गीता से उत्तम कुछ भी नहीं !