किसानों को दिल्ली जाने के लिए किसी की अनुमति की ज़रूरत नहीं

पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पिछले नौ महीने से धरना दे रहे किसान दिल्ली जाना चाहते हैं और वे जब दिल्ली की ओर कूच करते है तो हरियाणा की पुलिस उन पर लाठी चला कर या पानी की बौछार मार कर या आंसू गैस के गोले छोड़ कर उनको रोक दे रही है। पुलिस वाले उनसे पूछ रहे हैं कि क्या उनके पास दिल्ली जाने की अनुमति है? सवाल है कि किसी को भी दिल्ली जाने के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत क्यों होनी चाहिए? क्या भारत सरकार ने कोई नया नियम बनाया है कि दिल्ली जाने के लिए पहले से अनुमति लेनी होगी? दिल्ली देश की राजधानी है और इस देश का कोई भी नागरिक, कहीं से और कभी भी दिल्ली जा सकता है और उसे किसी की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। जिस राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार की जानकारी में सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए रह रहे हैं और जिन पर भाजपा राजनीति कर रही है, वहां जाने के लिए अपने देश के किसानों से पूछा जा रहा है कि उनके पास अनुमति है या नहीं! कोई किसान अकेले आए या 101 किसानों का जत्था, दिल्ली जाना चाहे, कोई भी सरकार या पुलिस उन्हें नहीं रोक सकती। दिल्ली पहुंचने के बाद उनको किसी खास जगह पर प्रदर्शन करने या जुलूस निकालने के लिए पुलिस और स्थानीय प्रशासन की अनुमति की ज़रूरत होगी। किसानों से दिल्ली प्रवेश की अनुमति की कॉपी मांगने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
जज का विवादित ब्यान
इलाहबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव के पूरे 35 मिनट के भाषण का एक-एक वाक्य नफरती और संविधान विरोधी है, जिसके लिए उनकी व्यापक आलोचना हो रही है और सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके भाषण का संज्ञान लेते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट से रिपोर्ट तलब की है, लेकिन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जस्टिस शेखर यादव के समर्थन में खुल कर आगे आए हैं। उन्होंने कहा है कि जस्टिस शेखर यादव ने जो कुछ कहा, उसमें कुछ भी गलत नहीं है। सामूहिक ज़िम्मेदारी के सिद्धांत के तहत मंत्री का बयान एक तरह से पूरी सरकार का बयान होता है, इसलिए प्रधानमंत्री भी अगर जस्टिस यादव के बयान को आपत्तिजनक मानते हैं तो उन्हें गिरिराज सिंह से इस्तीफा ले लेना चाहिए। जज और मंत्री दोनों का ही नियोक्ता राष्ट्रपति होता है। जज के खिलाफ तो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकते, क्योंकि संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक उसे महाभियोग के ज़रिये ही हटाया जा सकता है, लेकिन केंद्रीय मंत्री को तो प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति ही नियुक्त करते हैं। इसलिए अगर प्रधानमंत्री अपने मंत्री से इस्तीफा नहीं लेते हैं तो राष्ट्रपति को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उस मंत्री को बर्खास्त कर देना चाहिए। यही संवैधानिक व्यवस्था है। अगर ऐसा नहीं होता है तो यही माना जाएगा कि जस्टिस शेखर यादव और मंत्री गिरिराज सिंह ने जो कुछ कहा है उससे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी पूरी तरह सहमत हैं।
भाजपा पुन: ‘घुसपैठ’ के भरोसे
भाजपा ने पिछले दिनों झारखंड का चुनाव घुसपैठ के मुद्दे पर लड़ा और बुरी तरह हारी, लेकिन इस मुद्दे से उसे इतना ज्यादा लगाव है कि अगले साल होने वाले दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भी उसने घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बना दिया है। दिल्ली में तो दिल्ली पुलिस घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें निकालने के अभियान में जुट गई है। पहले चरण में शाहीन बाग से लेकर जामिया के इलाके में और पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों में यह अभियान चला है। पुलिस कागज़ देख रही है और संदिग्धों की पहचान कर रही है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि संदिग्धों की पहचान करके और उनके कागज़ात जांच कर उन्हे डिटेंशन सेंटर में भेजा जाएगा। हालांकि यह तय है कि भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर कांग्रेस और एमआईएम के चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोट बंटने की ज़रा भी संभावना है तो वह दिल्ली पुलिस के इस अभियान से खत्म हो जाएगी। इसी तरह बिहार में भी भाजपा ने घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाया है। उसके नेता घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें निकालने की बात कर रहे हैं जबकि वहां नितीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ते समय इस तरह के मुद्दे की ज़रूरत नहीं होती है। फिर भी अगर भाजपा वहां यह मुद्दा चलाए रखती है तो जैसे झारखंड में नुकसान हुआ वैसा ही नुकसान बिहार में भी हो सकता है।
दिल्ली जैसा टकराव कश्मीर में भी
जम्मू-कश्मीर अब भी केंद्र शासित प्रदेश है। यह सही है कि उसका राज्य का दर्जा बहाल करने के मामले में केंद्र सरकार सैद्धांतिक रूप से सहमत है। कहा जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इसका प्रस्ताव आ सकता है, लेकिन क्या राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद भी जम्मू-कश्मीर की सत्ता संरचना में कोई बदलाव होगा या दिल्ली की तरह उप-राज्यपाल ही असली सरकार बने रहेंगे? यह संसद में लाए जाने वाले प्रस्ताव से कुछ हद तक पता चलेगा, लेकिन अभी तो दिल्ली की तरह ही वहां भी उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव शुरू हो गया है। पहला विवाद राज्य के एडवोकेट जनरल को लेकर हुआ है। राज्य के एडवोकेट जनरल डी.सी. रैना को राज्यपाल रहते सतपाल मलिक ने नियुक्त किया था और उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने उनको बरकरार रखा था। जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने तो रैना ने पद से इस्तीफा दे दिया, परन्तु उमर चाहते हैं कि रैना पद पर बने रहे जबकि उप-राज्यपाल उन्हें नहीं रखना चाहते हैं। दूसरा विवाद चार अधिकारियों के तबादले पर हुआ है। उप-राज्यपाल ने तीन आईएएस और एक प्रदेश सेवा के अधिकारी का तबादला कर दिया। राज्य सरकार का कहना है कि राज्य सेवा के अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार उसके पास है। आने वाले दिनों में यह विवाद और बढ़ेगा। हालांकि उमर अब्दुल्ला मिलजुल कर काम करने वाले मिज़ाज के नेता हैं। फिर भी सत्ता का क्या स्वरूप बनता है, वह राज्य का दर्जा बहाल होने पर ही तय होगा।
सरकारों का अंतर
महाराष्ट्र और झारखंड दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव लगभग एक तरह के मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया। दोनों राज्यों में ‘बंटोगे तो कटोगे’ का नारा ज़ोर-शोर से उठाया गया। इसी तरह दोनों राज्यों में खुले हाथ से ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटी गई और नई सरकार बनने पर मुफ्त की ढेर सारी और चीजें व सेवाएं देने का वादा किया गया, लेकिन चुनाव नतीजों के बाद दोनों राज्य सरकारों के कामकाज से इसका फर्क दिखने लगा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पहली कैबिनेट मीटिंग में जहां अपने वादे के मुताबिक ‘मइया सम्मान योजना’ की राशि को 1100 रुपये महीना से बढ़ा कर अढ़ाई हज़ार कर दिया है। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसला टाल दिया। हैरानी की बात है कि महाराष्ट्र राजस्व के मामले में देश के सबसे अमीर राज्यों में शामिल है, लेकिन शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने ‘माझी लाड़की बहिन योजना’ की राशि में बढ़ोतरी का फैसला टाल दिया और साथ ही इस योजना की समीक्षा करने की भी बात कही। गौरतलब है कि राज्य में इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने डेढ़ हज़ार रुपये दिए जा रहे हैं, जिसे बढ़ा कर 2100 रुपये करने का वादा किया गया था, लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री ने कह दिया है कि बढ़ी हुई राशि अगले वित्त वर्ष यानी मार्च 2025 के बाद मिलेगी। सरकार ने यह भी कहा है कि योजना की समीक्षा की जाएगी और उन लोगों की पहचान की जाएगी जो पात्र नहीं होने के बावजूद इसका लाभ ले रहे हैं।  

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