सहयोगी दलों की भावनाओं को समझे कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी इन दिनों अपने ही साथी दलों के निशाने पर है। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं द्धारा कांग्रेस पार्टी से ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व वापिस लेने की मांग की जा रही है। गठबंधन में शामिल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी खुले आम कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने प्रेस कांफ्रैंस करके कांग्रेस पार्टी को ‘इंडिया’ गठबंधन के नेता पद से हटाने की मांग कर चुकी हैं। ममता बनर्जी की मांग के समर्थन में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी अपनी सहमति जताई। इससे ‘इंडिया’ गठबंधन कमज़ोर हो रहा है।
जून 2023 में 26 विपक्षी दलों के साथ बना ‘इंडिया’ गठबंधन अब टूट के कगार पर खड़ा है। लोकसभा चुनाव में मिली हार और उसके बाद हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हुई पराजय ने इस गठबंधन को कमज़ोर कर दिया है। इसी के चलते कांग्रेस के सहयोगी दल उसकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाकर अलग राह पकड़ने के संकेत दे रहे हैं। हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने तो कांग्रेस को ‘इंडिया’ गठबंधन से बाहर निकलवाने तक की चेतावनी दी। कांग्रेस द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा के बाद से ही आम आदमी पार्टी कांग्रेस से खासी नाराज़ दिखाई दे रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस जिस तरह से चुनाव लड़ रही है, उससे भाजपा को लाभ मिल रहा है। कांग्रेस नेता अजय माकन व संदीप दीक्षित के बयान विपक्ष को कमज़ोर करने के लिए भाजपा के कहने पर दिए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), नेशनल कांफ्रैंस तो खुलकर कांग्रेस की मुखालफत करने लगी हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी जीत तय मान कर आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने से इन्कार कर दिया था। जिस कारण आम आदमी पार्टी ने कई सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ कर 1.8 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे जबकि हरियाणा में कांग्रेस को 39.34 प्रतिशत वोट व भाजपा को 39.94 प्रतिशत वोट मिले थे। यदि हरियाणा में कांग्रेस आम आदमी पार्टी से समझौता करके चुनाव लड़ती तो निश्चय ही सरकार बन सकती थी। मगर कांग्रेस ने अवसर गंवा दिया और वहां भाजपा ने आसानी से तीसरी बार पहले से भी अधिक बहुमत से सरकार बना ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा के उप-चुनाव में तो समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी थी जबकि लोकसभा चुनाव कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर ही लड़ा था।
महाराष्ट्र में कांग्रेस नीत महा विकास अघाड़ी की करारी हार के बाद शिवसेना (यूबीटी) ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधते हुए कहा था कि कांग्रेस ने हरियाणा में ‘आप’ और समाजवादी पार्टी को सीट न देकर गलती की थी। पार्टी के मुखपत्र सामना में भी लिखा गया कि कांग्रेस नेताओं के अति आत्मविश्वास और घमंड ने हरियाणा में हार के लिए भूमिका निभाई। पार्टी नेता संजय राउत ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस को लगने लगा था कि वह अकेले ही जीत सकती है। इसलिए किसी को भी सत्ता में भागीदार बनाना उचित नहीं समझा था।
कांग्रेस को यदि ‘इंडिया’ गठबंधन को बचाना है तो अपने सहयोगी क्षेत्रीय दलों की भावनाओं को समझ कर फैसला करना होगा। तभी कांग्रेस अपने राजनीतिक वजूद को बचा पाएगी। गठबंधन टूटने की स्थिति में कांग्रेस का भी कमज़ोर होना तय माना जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस अकेले भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकती है। गठबंधन के साथी दलों की मदद से ही कांग्रेस मजबूत हो सकेगी, इस बात से कांग्रेस नेता भी अच्छे से वाकिफ है।
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