अब लद्दाख पर बुरी नज़र, चीन ने फिर दिखाया अपना असली चेहरा

पिछले साल अक्तूबर में कई सालों के सैन्य गतिरोध के बाद जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हुआ था, तो  माना जाने लगा था कि शायद अब चीन प्रौढ़ता के साथ सरहद पर तनाव के मुद्दे को हल करने की कोशिश करेगा। लेकिन चीन पहले भी कई बार इस तरह की झूठी भाव-भंगिमाएं दिखाकर जल्द ही अपने असली और विश्वासघाती इरादों पर लौटता रहा है। इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पिछले साल रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मलेन के दौरान मोदी और शी जिनपिंग की 5 सालों बाद जो 50 मिनट तक सौहार्दपूर्ण मुलाकात हुई थी, उसके तीन महीने बाद ही फिर से चीन अपना विश्वासघाती दांव चल दिया है।
दरअसल पिछले दिनों चीन ने अपने होटन प्रांत में दो नये ज़िलों (काउंटी) की घोषणा की है और इन ज़िलों के भौगोलिक क्षेत्रफल में हमारे लद्दाख के भी कुछ हिस्सों को शामिल कर लिया है, जिसका भारत ने गत 3 जनवरी 2025 को कड़ा विरोध किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयसवाल ने कहा कि चीन अपने होटन प्रांत के दो नये ज़िलों में लद्दाख के जिन कुछ हिस्सों को शामिल करने की कोशिश की है, भारत उसकी कड़ी भतर्सना करता है,भारत चीन के ऐसे अवैध कब्ज़ों को कभी  स्वीकार नहीं करेगा। भारतीय प्रवक्ता ने यह भी कहा कि चीन के इस तरह नये काउंटीज़ का ऐलान करने से भारत की संप्रभुता पर कोई असर नहीं होगा।
दरअसल चीन ने होटन प्रांत में जो दो नये ज़िले हेआन और हेकांग बनाने का ऐलान किया है, उनमें भारत के केंद्र शासित प्रदेश के लद्दाख के कुछ हिस्सों को भी शामिल दिखाया है, साथ ही पिछले दिनों चीन ने, तिब्बत से निकलने वाली यारलुप त्यांगपो नदी जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानते हैं, उसमें एक बड़ा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट शुरु किया है। इस पर भी भारत ने आपत्ति जतायी है, जिसके उत्तर में चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह प्रोजेक्ट बिल्कुल सुरक्षित है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मांओ निंग ने कहा है कि दशकों के गहन अध्ययन के बाद इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, लेकिन चीन कहने को कुछ भी कहता रहे, वह विश्वास के योग्य नहीं है। दरअसल 1962 के युद्ध में विजय हासिल करने के बाद वह एक मनोवैज्ञानिक हैंगओवर से चिपका हुआ है। उसे लगता है कि वह भारत और चीन के बीच अस्पष्ट सीमांकन को अपनी मज़र्ी से अपने पक्ष में तय कर लेगा। इसीलिए चीन बार बार धोखे की रणनीति अपनाते हुए कभी किसी समझौते के लिए राज़ी हो जाता है और कभी उसे बिना किसी वजह के तोड़ देता है।
दरअसल 2020 में गलवान घाटी में 1962 के बाद जो भारत और चीन की सेनाओं के बीच खूनी झपड़ हुई थी, वह भी चीन के इसी विश्वासघात का नतीजा थी । 1962 के बाद से दोनो देशों के बीच यह समझौता मौजूद था कि दोनो देशों की सेनाएं एक दूसरे से फिजिकल टकराव मोल नहीं लेंगी। लेकिन चीन ने 2020 में यह समझौता तोड़ दिया। वह भारत के साथ दरअसल स्लाइसिंग रणनीति अपना रहा है। वह धीरे से पहले भारतीय क्षेत्रों पर दावा करता है, फिर वहां बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की कोशिश करता है। चीन का यह भू-राजनीतिक विस्तारवाद है। साल 2020 में उसकी इसी ओछी हरकत के कारण दोनो देशों की सेनाओं में खूनी झड़प हुई थी, जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गये थे। उस समय भी चीनी सैनिकों ने मनमानी ढंग से सीमा के उल्लंघन की कोशिश की थी। सिर्फ  लेह लद्दाख की तरफ ही नहीं चीन सालों से अरुणाचल प्रदेश को भी अपना दक्षिणी तिब्बत बताता रहा है और इस तरह वह अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है।
भारत के साथ चीन के एक नहीं करीब आधा दर्जन सीमा विवाद हैं, जो लेह लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं। उत्तराखंड और सिक्किम में भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। सवाल है आखिर यह सब करते हुए चीन चाहता क्या है? वह चाहता है कि दक्षिण एशिया में उसका दबदबा बने, जिससे उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट, वन रोड’ सफल हो और इसके ज़रिये वह इस पूरे इलाके की बड़ी अर्थव्यवस्था पर कुंडली मारकर बैठ जाए। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक भारत मज़बूत है। इसलिए वह अपनी हरकतों से भारत को कमज़ोर करना चाहता है, लेकिन आज भारत चीन से कमज़ोर नहीं है, हाल के सालों में भारत ने चीन को ‘जैसे को तैसा’ जवाब देते हुए सीमा क्षेत्र में जो निर्माण किया है, चीन उससे परेशान है और वह भारत को मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव में रखने की कोशिश कर रहा है। चीन सोचता है कि अगर भारत उसके साथ सीमा मसलों पर उलझा रहा तो हमारी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होगी और इसका फायदा उठाकर वह भारत पर दबदबा बना लेगा, लेकिन भारत चीन के इन मंसूबों को बहुत अच्छी तरीके से समझता है। यही वजह है कि पिछले पांच सालों में चीन से सटे सीमांत क्षेत्र में भारत ने बड़े पैमाने पर आधारभूत विकास किया है। स्थायी आरसीसी सड़कों का जाल बिछाया है और सेना को भी चीन से लगने वाली सीमा पर एलर्ट मोड पर रखा है। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले दो सालों से भारत की अर्थव्यवस्था जहां 6 से 6.5 फीसदी वार्षिक दर से बढ़ रही है, वहीं भारी भरकम आधार और मज़बूत बाज़ार सपोर्ट के बाद भी चीन की अर्थव्यवस्था सही मायनों में सिर्फ  2 से 2.5 फीसदी की रफ्तार से ही बढ़ रही है, भले ही आंकड़ों की कुछ बाजीगरी करके वह इसे 4 से 4.5 फीसदी में दिखाने की कोशिश कर रहा हो। 
चीन नहीं चाहता कि भारत तेज़ी से विकास के रास्ते में आगे बढ़ता रहे। इसीलिए वह कभी सीमा पर सैनिकों के बीच झपड़ों का माहौल बनाता है और कभी भारतीय क्षेत्रों को अपने नाम और नक्शे में शामिल करने की दुष्टतापूर्ण रणनीति अपनाता है। वास्तव में भारत एक ही क्षेत्र में मात खाता है, वह है कई मामलों में हमारी चीन पर तकनीकी निर्भरता। अगर भारत चीन के साथ पाकिस्तान की तरह अपने आर्थिक और कारोबारी रिश्ते तोड़ दे तो चीन को बहुत नुक्सन होगा, क्योंकि भारत और चीन के बीच 119 अरब डॉलर के कारोबार में सारा पलड़ा चीन की तरफ झुका हुआ है। चीन से हम 101 अरब डॉलर का आयात करते हैं जबकि हमारा निर्यात महज 19 अरब डॉलर है। अमरीका के साथ जिस तरह से उसे कारोबार में झटका लगने की पूरी भूमिका बन चुकी है, उसके बाद भारत अगर चीन के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को सीमित कर दे तो जल्दी पता चल जायेगा कि तकनीकी रूप से चीन को इस विश्वासघात की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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