अकाली राजनीति में बिखराव

माघी के ऐतिहासिक दिन पर मुक्तसर साहिब में बड़ी संख्या में एकत्रित हुई संगत ने उत्साह और भावना से इस गौरवमयी ऐतिहासिक दिन को याद किया तथा वह ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान में नतमस्तक हुए। इसी समय पंजाब के तीन अकाली दलों ने अपनी-अपनी कान्फ्रैंसें भी कीं। अकाली दल(ब) ने कुछ दिन पहले ही यहां भारी इकट्ठ करने की घोषणा की थी और यह भावना भी प्रकट की थी कि ऐसे इकट्ठ से दल को मिलने वाले समर्थन का सभी को एहसास हो जाएगा। इसी पक्ष से इस कान्फ्रैंस को सफल कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। अकाली दल (अमृतसर) जिसके नेता सिमरनजीत सिंह मान हैं ने हमेशा की भांति अपना इकट्ठ बुलाया था जिसमें मुख्य प्रवक्ता स. मान थे जो अक्सर अपने द्वारा निर्धारित कौम के लक्ष्य की बात करते हैं। तीसरी महत्त्वपूर्ण कान्फ्रैंस जेल में नज़रबंद भाई अमृतपाल सिंह के पिता और समर्थकों द्वारा आयोजित की गई, जिसे पंजाब में सिख राजनीति के लिए एक नया मोड़ कहा जा सकता है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में असम की डिब्रूगढ़ जेल में नज़रबंद होने के बावजूद भाई अमृतपाल सिंह का जीतना तथा उनके साथ ही इंदिरा गांधी मामले से संबंधित बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह की भारी जीत ने दूसरे अकाली दलों व अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी आश्चर्यचकित कर दिया था तथा कई राजनीतिक गलियारों की ओर से इसे प्रदेश में गर्म-दलीय राजनीति की वापसी का संकेत भी कहा गया था। ऐसे राजनीतिक क्षेत्र अब नई घोषित की गई पार्टी (अकाली दल वारिस पंजाब दे) को भी इस सन्दर्भ में देखते हैं। आगामी वैशाखी तक इस पार्टी के अन्य पदाधिकारियों की घोषणा भी कर दी जाएगी। इसके साथ ही अपनी विचारधारा को स्पष्ट करने के लिए इस पार्टी के नेताओं द्वारा मंच से 15 प्रस्ताव भी पारित किए गए। अकाली दल का गठन 104 वर्ष पहले 1920 में किया गया था, जिसने बाद में पंजाब की उस समय की राजनीति में अच्छा प्रभाव बनाया था तथा समय आने पर इसके द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़े जा रहे संघर्ष में भी अपना अहम योगदान डाला गया था, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया था तथा जिसकी प्रशंसा महात्मा गांधी एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने की थी।
देश की आज़ादी के बाद भी अकाली दल अपने स्तर पर समय-समय मिलती चुनौतियों को स्वीकार करता रहा था तथा बाद में इसने पंजाबी प्रदेश बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, परन्तु इसके साथ-साथ ही समय-समय पर अक्सर अकाली गलियारों में फूट भी पड़ती रही, जिस कारण अपने-अपने स्तर पर अनेकों ही स्वतंत्र रूप में अकाली दल अस्तित्व में आते रहे। ऐसे अलगाव से अकाली शक्ति समय-समय पर कमज़ोर होती भी दिखाई दी। पंजाबी प्रदेश बनने के बाद इसने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी भूमिका अदा की तथा राज्य में सरकारें बनाने में भी इसने अहम भूमिका अदा की तथा समय-समय पर प्रशासन पर भी अपनी पकड़ को मज़बूत बनाया तथा प्रदेश के विकास में भी अपना बनता योगदान डाला, परन्तु इस समय में ही अनेक कारणों के दृष्टिगत यह बचा छोटा-सा प्रदेश विकास के मार्ग से उतरता दिखाई दिया।  यहां अनेकानेक समस्याएं पैदा हुईं, जिन्हें तत्कालीन सरकारें प्रभावशाली ढंग से हल कर सकने में असमर्थ रहीं। इन समस्याओं के जटिल होने या हल न होने के पीछे ज्यादातर समकालीन सरकारों की ढिल-मुल तथा विफल कारगुज़ारी का भी हाथ माना जाता रहा है, जिस कारण अक्सर केन्द्र सरकार को प्रदेश में बड़ा हस्तक्षेप करने का अवसर भी मिलता रहा।
आज भी यह प्रदेश अनेक तरह की चुनौतियों में गुज़र रहा है। इसकी डावांडोल आर्थिकता को बड़ा सहारा दिये जाने की ज़रूरत है तथा इसके साथ ही इसके विकास की गति को भी तेज़ किया जाना बेहद ज़रूरी है। ऐसे और राज्य के कई अन्य सरोकारों के लिए पहले की तरह ही मज़बूत अकाली दल की ज़रूरत थी, जो आज कई टुकड़ों में बंटा हुआ और बिखरता दिखाई दे रहा है। जिस तरह के हालात बन रहे हैं उनसे फिलहाल यही महसूस होता है, कि आगामी लम्बी अवधि तक अकाली दल प्रदेश को दरपेश चुनौतियों को हल करने तथा इसके विकास में अपना योगदान डालने से असमर्थ ही रहेगा। ऐसी स्थिति गम्भीर सोच की मांग करती है। राज्य को दरपेश चुनौतियों के समकक्ष होना भी अकाली दल के लिए इस समय एक बड़ी चुनौती बनी दिखाई देती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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