अमरीका में लगी आग तो बुझने वाली है, मगर साख तो खाक हो गई

अंतरिक्ष से देखा जा सकने वाला कैलिफोर्निया का दावानल दस दिन से धधक रहा है। अमरीका के जंगलों में पहले भी भीषण आग लगती रही है, पर इस बार इसने जिस इलाके को चपेट में लिया है, वह इतना खास है कि अमरीका को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। व्यापक स्तर पर की जा रही अग्नि शमन की कोशिशें देर सवेर कामयाब होंगी और आग बुझेगी, रह जायेंगी तो बस राख हुई वनस्पतियां, उजड़े हुए मकान, पिघले एटीएम, जली दीगर संपत्तियां, भस्मीभूत मवेशी, पालतू जानवर वगैरह। साथ ही इस कथित प्राकृतिक आपदा, उसके कारणों, सरकारी, प्रशासनिक प्रयासों तथा तकनीकि और संसाधनों वाली अमरीकी श्रेष्ठता की विफलता से जुड़े तमाम सवाल लंबे अर्से तक अमरीकियों को परेशान करेंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपनी तकनीकि दक्षता, तत्परता तथा संसाधनों की प्रचुरता की डींग हांकता अमरीका हर ऐसे मौकों पर बुरी तरह विफल क्यों रहता है, जब इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है? वह चाहे वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे सैन्य मामले हों, कोरोना से होने वाली मौतें हों अथवा कैलीफोर्निया या दूसरे इलाकों के जंगलों में लगी भीषण आग। इस आग के बुझ जाने के बाद कोई गारंटी नहीं कि कहीं और ऐसी आग नहीं लगेगी। लगी तो इस घटना से सबक सीखा अमरीकी इतना सतर्क होगा कि वह आग इस कदर नहीं फैलेगी, इतनी बड़ी बर्बादी नहीं होगी।
यहीं लॉस एंजिल्स के ग्रिफिथ पार्क में 1933 में लगी आग ने कैलिफोर्निया के करीब 83 हजार एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था, जिससे 3 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। यही नहीं इससे पहले कैलिफोर्निया में पिछले 50 सालों में 78 से ज्यादा बार आग लग चुकी है, पर अमरीका ने इससे कितना सबक लिया, उसकी क्या तैयारी थी, यह आज सबके सामने है। इस बार कैलिफोर्निया में लगी आग की पिछले साल की आग से तुलना करें तो यह पांच गुना अधिक विकराल है। निकट भविष्य में अमरीका ऐसी आग बुझाने के लिये पर्यावरण प्रिय तरीकों का इस्तेमाल करेगा, आग बुझाने के क्रम में और लगी हुई आग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों की वह पर्याप्त भरपाई कम से कम समय में कर सकेगा, यह उम्मीद भी तब संदेह के घेरे में आती है, जब यह देख जा रहा हो कि वह समुद्री पानी और गुलाबी रसायन से आग को बुझाने तथा नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है जो घोषित तौर पर एक पर्यावरण विरोधी प्रयास हैं। अमरीकी दावा कि वह उसकी तकनीक कुशलता सर्वश्रेष्ठ है, पर यह खामख्याली ही है क्योंकि अमरीका में इससे पहले भी कई बार जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई है और उसने पिछली बार से अधिक नुकसान उठाया है। 
सवाल यह कि यदि धरती के महाशक्ति महाबली अमरीका का इस मामले में यह हाल है, तो पूर्वी ऑस्ट्रेलिया जैसे अग्नि प्रवण क्षेत्रों अथवा बाकी विकसित और भारत जैसे विकासशील देशों का हाल क्या होगा और क्या वे एक अगुआ के बतौर संसार के देश अमरीका से सीख ले भविष्य में इस जैसी परिस्थिति से निबटने के लिये पूरी तरह तैयार हो सकेंगे? बड़ी बात यह है कि तमाम तकनीक और विशेषज्ञों के साथ-साथ समुचित निगरानी व्यवस्थाओं के होते हुए भी अमरीका अब तक तय नहीं कर पाया है कि आग लगी कैसे? उसके पास इस बात का कोई साफ जवाब नहीं है। एक व्यक्ति को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उसने ही जंगल में आग लगाना शुरू किया। बताते हैं कि यह एक अवैध अश्वेत घुसपैठिया है। हालांकि पुलिस मानती है कि उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है, जांच जारी है। एक कम्पनी बता रही है कि उसके सेंसर जो बिजली आपूर्ति के दौरान पेड़ की शाखाओं के तारों को छूने या हवा के चलते तारों के टकराने से उड़ने वाली चिंगारी की वजह से हुयी खराबी का पता देते हैं, बताते हैं कि पैलिसेड्स में आग लगने से कुछ ही घंटे पहले 63 ऐसी खामियां थीं, और पूरे इलाके में 317 मामले दिखे जो सामान्य से बहुत ज्यादा हैं। 
सबब यह कि बिजली के शार्ट सर्किट के चलते यह आग लगी। स्थानीय अधिकारियों ने लॉस एंजिल्स में आग लगने के पीछे सूखे मौसम की तरफ इशारा किया तो यहां के लोग इसके लिए तेज़ हवाओं को दोष दे रहे हैं, जिसकी रफ्तार कई बार 80 से 100 मील प्रति घंटा तक पहुंच जाती है। उधर अमरीकी सरकार के रिसर्च में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पश्चिमी अमरीका में बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी भीषण आग का संबंध ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से है। उधर दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन सीधे दोषी नहीं, उसकी वजह से अमूमन अतिशय वर्षा भी होती है, असल बात यह कि जलवायु परिवर्तन हालात को बदल रहे हैं। इसकी वजह से आग लगी। आज भी अमरीका इस समस्या और घटना के कारणों के प्रति स्पष्ट नहीं है तो स्थायी समाधान का क्या ही कहा जाए। विमानों से घरों और पहाड़ियों पर चमकीले गुलाबी रंग के अग्निरोधी रसायनों का छिड़काव किया जाना जो पानी की तरह तुरंत वाष्पित न होकर सतह पर बने रहकर आग लगने या जलने की प्रक्रिया को मंद कर देता है, इसमें अमोनियम पॉलीफास्फेट, कुछ दूसरे रसायनों के साथ उर्वरक मिला होता है। यह रसायन बाद में इंसानों और पर्यावरण पर बुरा असर डालेगा यह तय है। दूसरी तरफ आग बुझाने के लिये समुद्री खारे पानी का अतिशय इस्तेमाल सरल, सुलभ उपाय भले लगे लेकिन यह कालांतर में जंगल की जमीन को इतना नमकीन बना देगा कि वहां की रोगाणुरोधी जमीन में फिर कुछ और उगना मुश्किल होगा। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे बढ़े हैं। नि:संदेह हमको लांस एंजिल्स के दावानल से सबक लेते हुए आग का पता लगाने में रिमोट सेंसिंग को महत्व देने और अग्नि पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। यूं तो आग की रोकथाम, पता लगाना राज्य की ज़िम्मेदारी है पर केंद्र को भी इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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