महाकुम्भ : ऐसा अद्भुत आयोजन संकल्प से ही संभव

प्रयागराज त्रिवेणी संगम से आ रहे दृश्य अद्भुत हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर भारत ही एकमात्र देश है जहां इस तरह के अद्भुत आयोजन संभव हैं। केवल भारत नहीं, संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए यह न भूतो वाली स्थिति है, न भविष्यति। इसलिए नहीं कह सकते कि एक बार जब देश और नेतृत्व अपनी प्रकृति को पहचान कर आयोजन करता है तो वह एक मानक बन जाता है और आगे ऐसे आयोजनों को और श्रेष्ठ करने की प्रवृत्ति स्थापित होती है। यह मानना होगा कि 144 वर्ष बाद पौष पूर्णिमा पर बुधआदित्य योग जिसे, महायोग युक्त कह रहे हैं, उस महाकुंभ का श्री गणेश उसकी आध्यात्मिक दिव्यता के अनुरूप करने की संपूर्ण कोशिश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है। भारत में दुर्भाग्यवश राजनीतिक विभाजन इतना तीखा है कि ऐसे महान अवसरों, जिससे केवल भारत और विश्व नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण का भाव पैदा होने की आचार्यों की दृष्टि है, उसमें भी नकारात्मक वातावरण बनाया जा रहा है। होना यह चाहिए था कि राजनीतिक मतभेद रहते हुए भी संपूर्ण भारत और विशेष कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल ऐसे शुभ और मंगलकारी आयोजन पर साथ खड़े होते, आने वालों का स्वागत करते और संघर्ष, तनाव, झूठ, पाखंड, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा से भरे विश्व में भारत से शांति की आध्यात्मिक सलिला का मूर्त अमूर्त संदेश विस्तारित होता। हमारे देश का संस्कार इतना सुगठित और महान है कि नेताओं के वक्तव्यों की अनदेखी करते हुए करोड़ों लोग अपने साधु-संतों, आचार्यों के द्वारा दिखाए रास्ते का अनुसरण करते हुए जाति, पंथ, क्षेत्र, भाषा, राजनीति सबका भेद भूलकर संगम में डुबकी लगाते, आवश्यक अपरिहार्य कर्मकांड करते आकर्षक दृश्य उत्पन्न कर रहे हैं, अन्यथा समाजवादी पार्टी और उनके नेता जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं उनसे केवल वातावरण विषाक्त होता।
थोड़ी देर के लिए अपनी दलीय राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर विचार करिए। क्या स्वतंत्र भारत में पूर्व की सरकारों ने ऐसे अनूठे उत्सव या आयोजन को उसके मूल संस्कारों और चरित्र के अनुरूप भव्यता प्रदान करने, संपूर्णता तक पहुंचाने एवं सम्पूर्ण विश्व को बगैर किसी शब्द का प्रयोग किए भारत के आध्यात्मिक अनुकरणीय शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए इस तरह केंद्रित उद्यम और व्यवस्था की थी। इसका ईमानदार उत्तर है, बिल्कुल नहीं। कहने का तात्पर्य यह नहीं कि पूर्व सरकारों ने कुंभ के लिए कुछ किया ही नहीं। लाखों करोड़ों व्यक्ति और संपूर्ण भारत के सारे संत, संन्यासी, साधू, महंत आचार्य दो महीने के लिए वहां उपस्थित हों तो सरकारों के लिए उसकी व्यवस्था और अपरिहार्य हो जाती है। सच यह है कि जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार ने कुम्भ को उसकी मौलिकता के अनुरूप वर्तमान देश, काल, स्थिति के साथ तालमेल बिठाते हुए कार्य कियाक वैसा पहले कभी नहीं हुआ। वास्तव में हमारे शीर्ष नेतृत्व में देश और प्रदेश दोनों स्तरों पर एक साथ कभी ऐसे लोग नहीं रहे जिन्हें, महाकुम्भ या हमारे धार्मिक-सांस्कृतिक- आध्यात्मिक आयोजनों, मुहूर्तों, कर्मकांडों का महत्व, इसका आयोजन कैसे, किनके द्वारा, किस-किस समय पर होना चाहिए, न इसका पूरा ज्ञान रहा और न लेने के लिए कभी इस तरह प्रयत्न हुआ। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इसका ज्ञान है। उनके मंत्रिमंडल में भी ऐसे साथी हैं जो इन विषयों को काफी हद तक समझते हैं, जिनकी निष्ठा है। निष्ठा हो और संकल्प नहीं हो तो ज्ञान होते हुए भी साकार नहीं हो सकता। 
2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद प्रयागराज में ही 2019 में अर्धकुम्भ आयोजित हुआ था और वहां से नया स्वरूप सामने आना आरंभ हुआ। पहली बार लोगों ने केंद्र व प्रदेश का संकल्प देखा तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पानी को अधिकतम संभव शुद्ध और स्वच्छ बनाने के लिए मिलकर दिन रात एक किया। 2019 में पहली बार राज्य सरकार ने 2406.65 करोड़ व्यय किया जिसकी पहले कल्पना नहीं थी। इस बार सरकार की ओर से 5496.48 करोड रुपये व्यय अभी तक हुआ और केंद्र ने भी इसमें 2100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त सहयोग दिया है। 
कुम्भ के आयोजन के साथ गंगा और यमुना दोनों में शून्य डिस्चार्ज सुनिश्चित करने की कोशिश हुई है। सभी 81 नालों का स्थाई निस्तारण सुनिश्चित करने की तैयारी की गई। यह तो नहीं कह सकते कि गंगा, यमुना और त्रिवेणी संगम का जल शत-प्रतिशत शुद्ध और स्वच्छ हो गया, किंतु अधिकतम कोशिश कर हरसंभव परिणाम तक ले जाने के परिश्रम से हम इन्कार नहीं कर सकते। कुम्भ को हरित कुम्भ बनाने की दृष्टि से पहली बार मोटा-मोटी 3 लाख के आसपास पौधों के रोपण का आंकड़ा है। पहले भी वृक्षारोपण होते थे किंतु संख्या अत्यंत कम होती थी। ऐसे आयोजनों में स्वच्छता के अभाव में लोगों में अनेक स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा होती हैं। केवल रिकॉर्ड संख्या में डेढ़ लाख शौचालय बनाए गए बल्कि 10 हज़ार से अधिक सफाई कर्मचारियों की तैनाती की गई। शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए लगभग 1230 किलोमीटर पाइपलाइन, 200 वाटर एटीएम तथा 85 नलकूप अधिष्ठान की व्यवस्था है। 

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