देर आयद, दुरुस्त आयद
किसान आन्दोलन के मंच पर लम्बी अवधि बाद एक अच्छा समाचार आया है। 17 जनवरी को केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के ज्वाइंट सचिव प्रिया रंजन के नेतृत्व में कुछ केन्द्रीय अधिकारियों पर पंजाब के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और सेवानिवृत्त अधिकारियों ने खनौरी की सीमा पर जगजीत सिंह डल्लेवाल तथा अन्य किसान नेताओं के साथ किसान आन्दोलन की मांगों संबंधी लम्बी बातचीत की है। इस बातचीत के परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार और आन्दोलनकारी किसान संगठनों के बीच बातचीत का रास्ता खुल गया है। बनी सहमति के अनुसार अब चंडीगढ़ में 14 फरवरी को केन्द्र सरकार के अधिकारियों और आन्दोलनकारी किसानों के बीच कृषि फसलों के समर्थन मूल्य तथा अन्य कृषि मांगों संबंधी चंडीगढ़ में बातचीत होगी और इस बातचीत में पंजाब सरकार के प्रतिनिधि भी भाग लेंगे। इसके परिणामस्वरूप खनौरी की सीमा पर पंजाब और हरियाणा के जो 121 किसान आमरण अनशन पर बैठे थे, उन्होंने अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया है। दूसरी तरफ पिछले 55 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे प्रसिद्ध किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चाहे अभी अपना आमरण अनशन समाप्त नहीं किया, परन्तु उन्होंने मैडीकल सहायता लेना स्वीकार कर लिया है तथा उन्हें ड्रिप भी लगा दी गई है। इस समाचार से देश भर के किसानों तथा खास तौर पर पंजाब के किसानों को एवं समूचे तौर पर हरियाणा एवं पंजाब के लोगों को कुछ राहत ज़रूर मिली है। हम समझते हैं कि चाहे देर से ही सही, परन्तु केन्द्र सरकार ने आन्दोलनकारी किसान संगठनों से पुन: बातचीत की पहल करके एक अच्छा कदम उठाया है।
इस सन्दर्भ में हमारा भी यह विचार है कि अब 14 फरवरी को जब संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) तथा किसान मज़दूर मोर्चा के नेताओं और केन्द्र सरकार के अधिकारियों के मध्य पुन: बातचीत शुरू हो तो सभी संबंधित पक्षों को तर्क-संगत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ताकि पिछले लम्बे समय से कृषि उपज के समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी तथा कुछ अन्य किसानी मांगों को लेकर जो आन्दोलन चल रहा है, उसका कोई सुखद एवं सार्थक हल ढूंढा जा सके। इसके साथ ही हमारा यह भी विचार है कि संयुक्त किसान मोर्चा एवं अन्य किसान संगठन, जो अपने ढंग से इस किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे थे, उन्हें भी इस पुन: शुरू हो रही बातचीत के संबंध में सकारात्मक समर्थन भरना चाहिए, क्योंकि कृषि मांगें सांझी हैं। उनमें आन्दोलन की रणनीति संबंधी चाहे कुछ अलगाव पाये जा रहे थे, परन्तु मांगों संबंधी कोई मतभेद नहीं था। इसलिए उन्हें भी इस बात का समर्थन करते हुए सकारात्मक समर्थन देना चाहिए। यहां यह भी वर्णनीय है कि 2020 से लेकर 2024 तक कृषि मांगों संबंधी जो आन्दोलन चलता आ रहा है, उस कारण पंजाब और हरियाणा के लोगों को भी बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। बार-बार सड़क एवं रेल यातायात ठप्प होने से उद्योगपतियों एवं व्यापारियों की भी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। इस कारण किसान पक्षों के साथ-साथ अन्य सभी ़गैर-कृषि सामाजिक वर्ग यह चाहते हैं कि किसान आन्दोलन का कोई सुखद और सार्थक हल निकले। अब एक बार फिर जब ऐसी सम्भावनाएं बनी हैं तो प्रत्येक पक्ष को को इसका स्वागत करना चाहिए तथा यह उम्मीद करनी चाहिए कि यह गम्भीर मामला सभी पक्षों की सहमति से हल हो जाए। यहां हम केन्द्र सरकार को भी यह अपील करना चाहते हैं कि भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश है तथा 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष ढंग से आज भी कृषि के धंधे पर निर्भर है। केन्द्र सरकार ़गरीब लोगों की आर्थिक स्थिति के दृष्टिगत 80 करोड़ से अधिक लोगों को अभी भी अनाज उपलब्ध करवा रही है। देश की यह कठोर हकीकतें मांग करती हैं कि कृषि संकट को शीघ्र से शीघ्र हल किया जाए। ऐसा तभी हो सकता है, यदि किसानों को उनकी फसलों पर सुनिश्चित तौर पर लाभदायक मूल्य मिलें। केन्द्र सरकार को इस बात का भी एहसास करना चाहिए कि कृषि देश की आर्थिकता का भी एक अहम क्षेत्र है। 2020 में जब कोरोना महामारी ने देश में व्यापक स्तर पर उथल-पुथल पैदा कर दी थी, तो कृषि के क्षेत्र ने ही देश की आर्थिकता का सहारा दिया था तथा इस विशाल देश के लोगों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाई थी।
हम केन्द्र सरकार को यह भी कहना चाहते हैं कि कृषि मांगों के साथ-साथ पंजाब एवं हरियाणा की सीमाओं पर हरियाणा की ओर से हरियाणा सरकार के निर्देश पर जो स्थायी अवरोध लगाये गये हैं तथा जिसके कारण पंजाब एवं हरियाणा के बीच सड़क यातायात के पक्ष से दोनों राज्यों के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उन अवरोधों को भी शीघ्र से शीघ्र खुलवाया जाये ताकि दोनों राज्यों के बीच यातायात सामान्य की भांति बहाल हो सके। हमें पूरी उम्मीद है कि आगामी समय में जहां किसान आन्दोलन का कोई सुखद हल निकलेगा, वहीं पंजाब एवं हरियाणा के बीच सड़क यातायात भी जल्द से जल्द सामान्य की भांति बहाल हो सकेगा।